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अधार्मिक कार्य से स्वयं को तत्काल हटा लेने का हो प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमण

- प्रतिभापुरुष की सन्निधि में प्रतिभाओं और विशिष्ट सेवा कार्यों को मिला सम्मान -
-आचार्यश्री ने सभी को अपने आशीर्वचनों से किया अभिसिंचित -


          31 जनवरी 2017 राधाबाड़ी, जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) (JTN) : जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य, प्रतिभापुरुष आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में मंगलवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्वावधान में मनोहरी देवी डागा समाज सेवा पुरस्कार, ज्ञानाशाला के ज्ञानार्थियों सहित विभिन्न कार्यों के लिए सभाओं और श्रेष्ठ और विशिष्ट सेवा प्रदाताओं को पुरस्कृत किया गया। आचार्यश्री ने सभी को मंगल प्रेरणा प्रदान कर उन्हें अपने क्षेत्रों में और अच्छा कार्य करने की प्रेरणा प्रदान की। 
मंगलवार को मर्यादा समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को सर्वप्रथम साध्वीवर्याजी ने शरीर रूपी प्रतिबिम्ब को छोड़ आत्मा रूपी बिम्ब को पकड़ने की प्रेरणा प्रदान की और लोगों को आचार्यश्री से प्रेरणा लेकर खुद को पापभिरू बना अपनी आत्मा को पुष्ट करने की भी उत्प्रेरणा प्रदान की। 
उसके उपरान्त तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को अपनी अमृतमयी वाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आदमी से जानते हुए या अनजाने में कोई अधार्मिक कार्य हो जाए तो उसे तत्काल वहां से खुद को हटाने का प्रयास करना चाहिए। एकबार कोई गलती हो गई तो उसका पुनरावर्तन न हो, इसका प्रयास करना चाहिए। मनुष्य से गलती हो सकती है। दुनिया में कोई प्राणी नहीं, जिससे कोई गलती न हो। साधु से भी संभवतया गलती या हिंसा भी हो सकती है, किन्तु साधु को यह सोचना चाहिए कि अब वह कार्य मैं कभी न करूं, जो प्रमादवश हो गया। गलतियों से विरत रहने का प्रयास करना चाहिए। जब कोई चलता है तो गिरता है, उठता है, संभलता है और पुनः चलता है, लेकिन कोई चलता ही नहीं तो वह कया गिरेगा। किसी गिरे को संभालना, या सहारा देना सज्जनता होती है। गिरे हुए या गिरते हुए को देख कर हंसना अच्छी बात नहीं। इस प्रकार आदमी को जो गलती एकबार हो गई, उसके पुनरावर्तन से बचने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए आदमी को जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने उपस्थित मुमुक्षु बाइयों को विशेष प्रेरणा करते हुए कहा कि उनमें साधना का अच्छा प्रयोग चले, सेवा की भावना जागृत हो, अहिंसा, प्रमाणिकता के संस्कार लाने का प्रयास करना चाहिए। 
मंगल प्रवचन के उपरान्त जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह का शुभारम्भ महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री किशनलाल डागलिया के अभिभाषण से हुआ। उन्होंने अपने अभिभाषण में अपने कार्यकाल में अपनी कार्ययोजना का वर्णन करते हुए कहा कि मेरे कार्यकाल की कार्य योजना केवल गुरु इंगित की आराधना का है। इस कार्यक्रम में सबसे प्रथम पुरस्कार मनोहरीदेवी डागा समाज सेवा का पुरस्कार श्री सवाईलाल पोखरना को प्रदान किया। प्रशस्तिपत्र का वाचन महासभा के मुख्य न्यासी श्री हंसराज बैताला ने किया और महासभा के अध्यक्ष और न्यासी ने संयुक्त रूप से यह पुरस्कार श्री पोखरना को प्रदान किया। इस पुरस्कार में प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह और एक लाख रुपए का चेक प्रदान किया गया। इस दौरान श्री पोखरना ने आचार्यश्री के चरणों में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी और प्राप्त धनराशि में 51 हजार अपनी ओर से जोड़ उस पैसे के ब्याज से तुलसी अमृत छात्रावास के होनहार विद्यार्थियों को पुरस्कृत किए जाने की घोषणा की। 
इसके उपरान्त दो ज्ञानशालाओं को श्रेष्ठ, दो को विशिष्ट तथा दो ज्ञानशालाओं को उत्तम ज्ञानशाला का पुरस्कार प्रदान किया। ज्ञानाशाला की कुल छह प्रशिक्षिकाओं को श्रेष्ठ प्रशिक्षक, तीन को वरिष्ठ प्रशिक्षक का पुरस्कार प्रदान किया गया। छह ज्ञानार्थियों को श्रेष्ठ ज्ञानार्थी का पुरस्कार प्रदान किया गया। दो लोगों को विशिष्ट आंचलिक संयोजक का पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसके उपरान्त ज्ञानशाला प्रशिक्षक प्रशिक्षण परीक्षा वर्ष 2015 में अखिल भारतीय स्तर पर प्रथम तीन स्थान प्राप्त करने वाले लोगों को भी पुरस्कार प्रदान किया गया। वहीं ज्ञानशाला ज्ञानार्थी परीक्षा वर्ष 2015 अखिल भारतीय स्तर पर प्रथम तीन स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को भी पुरस्कृत किया गया। 
आचार्यश्री ने पुरस्कार प्राप्त करने वालों को अपने आशीर्वचनों से अभिसिंचत करते हुए कहा कि श्री सवाईलालजी पोखरना मेवाड़ क्षेत्र के अच्छे श्रावक हैं, खूब अच्छा सेवा का क्रम चलता रहे। ज्ञानशाला का बहुत अच्छा उपक्रम महासभा के अंतर्गत चल रहा है। बच्चों में ज्ञान और संस्कारों के विकास का अच्छा माध्यम है, खूब अच्छा क्रम चलता रहे, मंगलकामना। 
वहीं नेपाल में चतुर्मास सम्पन्न कर आई साध्वी प्रमीलाकुमारीजी के सिंघाड़े ने भी आचार्यश्री के दर्शन किए और अपनी भावनाओं को गीत के माध्यम से अभिव्यक्त किया। आचार्यश्री ने उस सिंघाड़े को खूब अच्छा, धर्म, साधना का क्रम बनाए रखने मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।






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