- उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने दिया सेवा धर्म का ज्ञान -
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आचार्यश्री महाश्रमणजी |
28 जनवरी 2017 फाटापुकुर, जलपाईगुड़ी (पश्चिम बंगाल) (JTN) : कुछ ऐसे भी धर्म जो शारीरिक सेवा के सापेक्ष होते हैं। सेवा रूपी धर्म शरीर के पराक्रम पर आधारित होता है। इसलिए आदमी को तब तक सेवा धर्म करने का प्रयास करना चाहिए, जब तक शरीर पराक्रम करने योग्य हो। जब तक शरीर में व्याधि न हो, बुढ़ापा पीड़ित न करने लगे, इन्द्रियां साथ न छोड़ें, तब तक आदमी को सेवा धर्म लेने का प्रयास करना चाहिए। उक्त सेवा धर्म की प्रेरणा जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता भगवान महावीर के प्रतिनिधि अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने फाटापुकुर स्थित आर्यन टी प्वाइंट परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं को बताई।
जन-जन को प्रेरित करती अहिंसा यात्रा शनिवार को राणीनगर स्थित पारख ल्यूब्स/पेट्रोल पंप से सुबह की प्रातः मंगल बेला में प्रस्थान किया। रास्ते में आने वाले विभिन्न गांवों के ग्रामीणों को अपने दर्शन और शुभाशीष से अभिसिंचत कर आचार्यश्री के चरणकमल लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे। जन कल्याणकारी अहिंसा यात्रा वर्तमान समय में पश्चिम बंगाल राज्य के जलपाईगुड़ी में विहरण कर रहे हैं। आचार्यश्री लगभग बारह किलोमीटर की यात्रा फाटापुकुर स्थित आर्यन टी प्वाइंट परिसर में पधारे।
फैक्ट्री परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने उत्प्रेरित करते हुए कहा कि किसी-किसी आदमी को अस्सी वर्ष के बाद भी चलने में, बोलने में या कोई काम करने में आसानी होती है। एक उम्र के बाद आदमी को आंखों से कम दिखाई देना, कानों से कम सुनाई देने लगता है बाल सफेद हो जाते हैं, मुख दंतविहीन हो जाते हैं। पैरों में दर्द और हाथ से कोई कार्य नहीं होता, इन्द्रियां साथ छोड़ने लगती हैं तो मानना चाहिए कि उस आदमी को बुढ़ा पीड़ित करने लगा। आदमी को ही नहीं साधु-साध्वियों को यह ध्यान देना चाहिए कि शरीर के सक्षम रहते ही सेवा धर्म कर लेने का प्रयास करना चाहिए। साधु-साध्वियों को भी तीन साल सेवाकेन्द्रों सेवा का भार शरीर के सक्षम रहते उतार लेने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने समुपस्थित मुमुक्षु बाइयों को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि इस छोटी अवस्था में अधिक से अधिक ज्ञानार्जन का प्रयास करना चाहिए। अच्छा ज्ञान का अर्जन कर समय का अच्छा उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने विकास का क्रम आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने युवावस्था को एक मोती बताते हुए कहा कि युवावस्था में आदमी को शरीर की शक्ति का अच्छा उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। सक्षम हैं तो दूसरों की सेवा करने का प्रयास करना चाहिए। कार्यक्रम के अंत में मुनि धु्रवकुमारजी ने लोगों को शनिवार की सामायिक करने की प्रेरणा प्रदान की।
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