- आचार्यश्री के आह्वान पर ग्रामीणों ने स्वीकार किया मद्यपान न करने का संकल्प -
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आचार्यश्री महाश्रमणजी |
पूर्वोत्तर की धरा को पावन करने के उपरान्त पश्चिम बंगाल की
धरा पर यात्रायित शांतिदूत आचार्यश्री जन-जन के हृदय में मानवता का संचार कर रहे
हैं। शनिवार को निर्धारित समय पर आचार्यश्री ने अपनी धवल सेना के साथ विहार किया।
विहार परिसर और नगर आज कोहरामुक्त दिखाई दे रहा था किन्तु नगर से बाहर निकलते ही
ओवरब्रिज पूरी तरह कोहरे से ढंगा हुआ था। कहीं कोहरा घना तो कहीं सूर्य की किरणों
ने कोहरे को भगा अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। यह द्वंद पूरे मार्ग में बना
रहा। लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री बुरीहाट स्थित प्राणेश्वर उच्च
विद्यालय पहुंचे।
यहां उपस्थित ग्रामीण
श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने विवेकपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करते हुए
कहा कि विवेक को धर्म कहा गया है। विवेक से आदमी धर्म की साधना कर सकता है जो
पशुओं को प्राप्त नहीं होती। यह कर्तव्य और अकर्तव्य का बोध आदमी और पशुओं के बीच
में अंतर बताता है। आदमी बोले या मौन धारण कर ले वह कोई खास बात नहीं होती, विवेकपूर्ण बोलना महत्त्वपूर्ण बात होती है। बोलने, खाने, सोने, उठने-बैठने का विवेक होना चाहिए। इसलिए आदमी को विवेकपूर्ण जीवन जीने का
प्रयास करना चाहिए ताकि उसका वर्तमान जीवन के साथ ही परलोक भी अच्छा और शांतिमय बन
सके।
आचार्यश्री ने बंगाल की धरा अपने विहरण का वर्णन करते हुए
कहा कि कभी इस बंगाल की धरा पर तेरापंथ धर्मसंघ के नवमें अधिशास्ता, गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी ने विचरण किया था। वर्तमान में हम अहिंसा यात्रा
लेकर विहरण कर रहे हैं। बंगाल के लोग गलत कार्यों या बुरी आदतों को छोड़
धार्मिकतापूर्ण जीवन जीने का प्रयास करें तो उनके जीवन का कल्याण हो सकता है। वे
सुखी और शांतिमय वातावरण में जीवनयापन कर सकते हैं।
3 Comments
Om Arham
ReplyDeleteOm arham
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