Top Ads

विवेकपूर्ण जीवन जीने का प्रयास करे : आचार्यश्री महाश्रमणजी

- आचार्यश्री के आह्वान पर ग्रामीणों ने स्वीकार किया मद्यपान न करने का संकल्प -

आचार्यश्री महाश्रमणजी

          07 जनवरी 2017 बुरीहाट, कूचबिहार (पश्चिम बंगाल) (JTN) : आदमी के जीवन में विवेक का बहुत ऊंचा स्थान होता है। कर्तव्य और अकर्तव्य का विवेक ही मनुष्य और पशु में अंतर स्थापित करता है। विवेक चक्षु (आंख) के समान है, जिसके माध्यम से आदमी भले और बुरे कार्यों की पहचान करता है। जिसके पास विवेक रूपी चक्षु नहीं होता, वह गलत रास्ते पर भी जा सकता है। इसलिए आदमी को विवेकपूर्ण जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। उक्त जीवनोपयोगी ज्ञान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शनिवार को बुरीहाट स्थित प्राणेश्वर उच्च विद्यालय प्रांगण में उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रदान की।
        पूर्वोत्तर की धरा को पावन करने के उपरान्त पश्चिम बंगाल की धरा पर यात्रायित शांतिदूत आचार्यश्री जन-जन के हृदय में मानवता का संचार कर रहे हैं। शनिवार को निर्धारित समय पर आचार्यश्री ने अपनी धवल सेना के साथ विहार किया। विहार परिसर और नगर आज कोहरामुक्त दिखाई दे रहा था किन्तु नगर से बाहर निकलते ही ओवरब्रिज पूरी तरह कोहरे से ढंगा हुआ था। कहीं कोहरा घना तो कहीं सूर्य की किरणों ने कोहरे को भगा अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। यह द्वंद पूरे मार्ग में बना रहा। लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री बुरीहाट स्थित प्राणेश्वर उच्च विद्यालय पहुंचे।
        यहां उपस्थित ग्रामीण श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने विवेकपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि विवेक को धर्म कहा गया है। विवेक से आदमी धर्म की साधना कर सकता है जो पशुओं को प्राप्त नहीं होती। यह कर्तव्य और अकर्तव्य का बोध आदमी और पशुओं के बीच में अंतर बताता है। आदमी बोले या मौन धारण कर ले वह कोई खास बात नहीं होती, विवेकपूर्ण बोलना महत्त्वपूर्ण बात होती है। बोलने, खाने, सोने, उठने-बैठने का विवेक होना चाहिए। इसलिए आदमी को विवेकपूर्ण जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए ताकि उसका वर्तमान जीवन के साथ ही परलोक भी अच्छा और शांतिमय बन सके।
        आचार्यश्री ने बंगाल की धरा अपने विहरण का वर्णन करते हुए कहा कि कभी इस बंगाल की धरा पर तेरापंथ धर्मसंघ के नवमें अधिशास्ता, गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी ने विचरण किया था। वर्तमान में हम अहिंसा यात्रा लेकर विहरण कर रहे हैं। बंगाल के लोग गलत कार्यों या बुरी आदतों को छोड़ धार्मिकतापूर्ण जीवन जीने का प्रयास करें तो उनके जीवन का कल्याण हो सकता है। वे सुखी और शांतिमय वातावरण में जीवनयापन कर सकते हैं।

        आचार्यश्री ने अहिंसा यात्रा के तीन सूत्रों का वर्णन करते हुए कहा कि जिस आदमी के जीवन सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संकल्प जागृत हो जाए, उस आदमी की आत्मा का कल्याण हो सकता है। वह शांति और प्रसन्नता का जीवन जी सकता है। आचार्यश्री ने तीन सूत्रों के तीन संकल्पों को बताते हुए ग्रामीणों को इन संकल्पों को ग्रहण करने का आह्वान किया। आचार्यश्री के आह्वान पर कुछ ग्रामीणों ने सहर्ष आजीवन मद्यपान न करने का संकल्प स्वीकार कर आचार्यश्री से शुभाशीष प्राप्त किया।


Post a Comment

3 Comments

Leave your valuable comments about this here :