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दया धर्म का मूल है : आचार्यश्री महाश्रमण

-साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यनियोजिकाजी, मुख्यमुनिश्री और साध्वीवर्याजी ने भी श्रद्धालुओं को प्रदान की प्रेरणा-

आचार्यश्री महाश्रमणजी

          09 जनवरी 2017 दिनहाटा, कूचबिहार (पश्चिम बंगाल) (JTN) : सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति रूपी तीन महान संकल्पों के साथ मानवता का कल्याण करने निकले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के उदियमान महासूर्य, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, जन-जन के लिए मानवता के मसीहा और शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान समय में मानवता का संदेश देते कूचबिहार जिले के दिनहाटा में त्रिदिवसीय प्रवास कर रहे हैं। दिनहाटावासी इस सौभाग्य के सुअवसर का लाभ उठा अपने जीवन में बदलाव लाने को प्रयासरत दिखाई दे रहे हैं। 
  दिनहाटावासियों के लिए प्रवास का दूसरा दिन स्वर्णिम सुबह लेकर आया। सोमवार को प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालु तेरापंथ धर्मसंघ के सभी प्रमुख पांच महान स्तंभों के श्रीमुख से निकलने वाली पांच-पांच ज्ञानगंगा की धारा में अभिस्नात हुए। इन पंचमुखी ज्ञानगंगा की धाराओं से अभिस्नात श्रद्धालु ऐसा महसूस कर रहे थे मानों संपूर्ण जीवन की पुण्याई का प्रतिफल एक साथ ब्याज समेत प्राप्त हो गया हो और उससे कही दोगुना पुण्य अर्जित हो रहा हो।  
       सोमवार की सुबह अहिंसा समवसरण के प्रवचन पंडाल में उमड़े श्रद्धालुओं को सर्वप्रथम  मुख्यनियोजिकाजी और असाधारण साध्वीप्रमुखाजी ने अपनी मंगलवाणी से अभिसिंचन प्रदान किया। उसके उपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में तेरापंथ धर्मसंघ के दो नए उभरते वटवृक्ष मुख्यमुनिश्री और साध्वीवर्याजी ने भी लोगों को मधुरवाणी से धर्मोपदेश दिया। 
   इसके उपरान्त एक विशाल वटवृक्ष के समान संपूर्ण तेरापंथ धर्मसंघ को आच्छादित करने वाले और अपनी शीतलता से समस्त मानव जाति का कल्याण करने वाले आचार्यश्री ने जीवन में दया और अनुकंपा के भावों को पुष्ट कर अहिंसा की साधना करने की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि ज्ञान व्यक्ति के ज्ञान का सार है कि किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करने का प्रयास करना चाहिए अर्थात अहिंसा का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। जो इस ज्ञान को अपने जीवन में उतार लेता है उसका जीवन धन्य हो सकता है। आचार्यश्री ने विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि जिस आदमी के हृदय में दया, अनुकंपा का भाव हो, जो दयावान होता है वह पापों से बचता है और जिसके हृदय में दया, करुणा के नहीं बल्कि निष्ठुरता के भाव हों जो आदमी निर्दयी होता है वह पाप करता है। पापों से बचने के लिए आदमी के लिए आदमी को अपने जीवन में दया की चेतना को जागृत करने का प्रयास करना चाहिए। दया को धर्म का मूल बताया है। उस आदमी का जीवन कृतपुण्य होता है जो किसी का उपकार करता है, किसी को पाप से बचा उसे जीवन का कल्याण कर देता है। सभी प्राणियों को अपने समान समझना चाहिए। जो कार्य अपने लिए उचित न लगे वैसा कार्य आदमी को दूसरों के साथ भी नहीं करना चाहिए। मन, वचन और कार्य से आदमी को अहिंसा की भावना को पुष्ट कर अपने जीवन को उन्नत बनाने का प्रयास करना चाहिए। 
  आचार्यश्री की मंगलवाणी के उपरान्त आचार्यश्री के दर्शन को पधारे नगर के चेयरमैन तथा स्थानीय विधायक श्री उदयन गुहा आचार्यश्री के दर्शन कर शुभाशीष प्राप्त करने के उपरान्त अपने हृदयोद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत में अतिथि देवो भवः की परंपरा रही है। आचार्यश्री आप और आपके साथ आए बाहर से आए सभी साधु-संतों और आगंतुक हमारे लिए अतिथि और देवता के समान हैं। मैं आप सभी को प्रणाम करता हूं। आचार्यश्री आप जो लगभग पन्द्रह हजार किलोमीटर से अधिक की पदयात्रा करते हुए लोगों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संदेश दे रहे हैं वह एक केवल एक समाज, राज्य या राष्ट्र के लिए नहीं, अपितु संपूर्ण विश्व के लिए है। गुरुदेव आप यह बात लोगों को बताने के लिए इतना परिश्रम कर रहे हैं, मैं आपको पुनः वन्दन करता हूं। आचार्यश्री ने विधायक महोदय को अपने समक्ष बुलाया और जीवन भर के लिए मद्यपान न करने का संकल्प ग्रहण करने का आह्वान किया। इसपर विधायक महोदय ने कहा कि मैं तो वैसे भी शराब नहीं पीता, आप संकल्प करा दें। आचार्यश्री ने उन्हें यावज्जीवन के लिए मद्यपान न करने का संकल्प कराया। दिनहाटा ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों के ने आचार्यश्री के समक्ष अपने भावपूर्ण नृत्य की प्रस्तुति दी। तेरापंथ महासभा के मुख्य ट्रस्टी श्री हंसराज बेताला ने गत वर्ष के मनोहरीदेवी डागा समाजसेवा पुस्कार के श्री सवाईलाल पोकरणा के नाम की घोषणा की और इस सम्मान को सिलीगुड़ी मर्यादा महोत्सव में प्रदान किए जाने की बात लोगों को बताई।




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