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बहुश्रुत की पर्युपासना कर जीवन को बनाएं संतुलित: आचार्यश्री महाश्रमण

-आचार्यश्री ने तेरापंथ भवन में प्रदान की सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधाराणा)-

आचार्यश्री महाश्रमणजी

        10 जनवरी 2017 दिनहाटा, कूचबिहार (पश्चिम बंगाल) (JTN) दिनहाटा में त्रिदिवसीय प्रवास के अंतिम दिन मंगलवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी मंगलवाणी से अभिसिंचन प्रदान कर लोगों को मंगलमय जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान की। वही असाधारण साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यनियोजिकाजी व साध्वीवर्याजी ने भी श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक प्रेरणा प्रदान कर मानव जीवन को सफल बनाने की प्रेरणा प्रदान की।
          दिनहाटा प्रवास के तीसरे व अंतिम दिन मंगलवार को भी आचार्यश्री के श्रीमुख से निरंतर प्रवाहित होने वाली ज्ञानगंगा में श्रद्धालुओं ने गोते लगाए और अपने जीवन को सुन्दर, सुफल और शांतिमय बनाने के प्राप्त सुअवसर पर पूर्ण लाभ उठाया।
        आचार्यश्री ने लोगों को मंगलमय जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को बहुश्रुत पर्युपासना कर अपने जीवन का कल्याण करने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ जीवन को एक रथ माना जाए तो अर्थ और काम इसके दो पहिए के समान होते हैं। गृहस्थ जीवन में अर्थ और काम से ही जीवन आगे बढ़ सकता है। इस रथ का सारथी धर्म का अंकुश अर्थ और काम पर रहे तो जीवन रथ अच्छा चल सकता है। आदमी के जीवन में अर्थ भी चलता है और काम भी। आदमी को गलत साधनों से धन का अर्जन नहीं करना चाहिए और अर्जित धन का गलत कार्यों में प्रयोग करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। काम में भी आदमी को संयम बरतने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने जीवन में ज्ञान की आराधना करने की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि ज्ञान की आराधना के लिए आदमी को संयम की आवश्यकता होती है। किसी शब्द के सही गलत प्रयोग को जानने के लिए व्याकरण की आवश्यकता होती है। खाना-पीना भूलकर रटना, चिताड़ना करना और बार-बार दोहराने से व्याकरण का अच्छा ज्ञान हो सकता है। व्याकरण के आधार पर भाषा की सही-गलती को जाना जा सकता है। ज्ञानी आदमी के पास जो ज्ञान के रत्न होते हैं उसे पात्र बनकर ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए। प्राचीनकाल में गुरु अपने पात्र शिष्यों को विशेष ज्ञान रात में प्रदान किया करते थे ताकि किसी अपात्र को यह ज्ञान प्राप्त न हो जाए अन्यत्रा ज्ञान का दुरुपयोग हो सकता है। योग्य को ज्ञान न देना गलत और अयोग्य को ज्ञान देना गलत होता है। इसलिए आदमी को जीवन में यथासंभव यथौचित्य बहुश्रुत की पर्युपासना कर अपने जीवन रथ को आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
          कार्यक्रम के अंत में श्री राजकुमार सोपानी ने आचार्यश्री के दर्शन किए और अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि ईश्वर की असीम अनुकंपा और पूर्वजों के पुण्यों के फल का उदय है तो आप जैसे महासंत इतने साधु-साध्वियों के साथ आज यहां विराजमान हैं। आपके चरणरज से हमारी भूमि पावन बन गई है। दिगम्बर समाज से श्रीमती दीपा सेठी ने आचार्यश्री की अभ्यर्थना करते हुए कहा कि आपके इस समवसरण में मानों स्वर्ग उतर आया है। आपकी अहिंसा यात्रा सभी के लिए कल्याणकारी है। आपका नशामुक्ति का संदेश भटकती युवा पीढ़ी को सन्मार्ग पर लाने वाली है। वहीं प्रवास व्यवस्था समिति के संयोजक श्री टिकमचंद बैद ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। कन्या मंडल ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं की प्रस्तुति देकर आचार्यश्री से शुभाशीष प्राप्त किया।




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