- प्रवर्धमान अहिंसा यात्रा का वर्धमान
महोत्सव के लिए कूचबिहार में भव्य प्रवेश -
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आचार्यश्री महाश्रमणजी |
12 जनवरी 2017 कूचबिहार (पश्चिम बंगाल) (JTN) जैन श्वेताम्बर तेरापंथ
धर्मसंघ के देदिप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल रश्मियों के साथ
गुरुवार को पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग के मुख्य और ऐतिहासिक जिला मुख्यालय
कूचबिहार को अपने चरणरज से पावन करने पहुंचे। आचार्यश्री यहां चारदिवसीय प्रवास कर
लोगों के लिए ज्ञान की गंगा बहाएंगे। आचार्यश्री चारदिवसीय प्रवास और वर्धमान
महोत्सव को अपना पावन सान्निध्य प्रदान करने के लिए नगर स्थित कूचबिहार इन्डोर
स्टेडियम प्रांगण में पहुंचे। जहां बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को
आचार्यश्री ने अपनी मंगलवाणी से उन्हें अपने जीवन में समता की साधना करने की
प्रेरणा प्रदान की। पहली बार अपनी धरा पर अपने आराध्य देव का दर्शन पाकर हर्षित
श्रद्धालुओं सहित विभिन्न संस्थाओं ने भी आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं की
प्रस्तुति दी तो अंध विद्यालय के बच्चों ने भी आचार्यश्री के चरणों में अपनी
भावपूर्ण पुष्पांजलि अर्पित की।
तेरापंथ धर्मसंघ की धर्मध्वजा के साथ तीन महान मानवीय
उद्देश्यों के साथ अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प के साथ अहिंसा यात्रा प्रणित कर जन-जन
के कल्याण को निकले तेरापंथ धर्मसंघ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल
सेना के साथ प्रवर्धमान होते हुए वर्धमान महोत्सव के लिए गुरुवार को प्रातः की
मंगल बेला में कूचबिहार के लिए कूच किया।
कूचबिहार जिला पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में स्थित है।
इस जिले को मुख्य रूप से जूट और तम्बाकू की खेती के जाना जाता है। ऐतिहासिकता की
बार करें तो यहां की राजबाड़ी जिला मुख्यालय की सुन्दरता में चार चांद लगाता है।
कभी राजा नृपेन्द्र नारायण का राज्य का हिस्सा रहा कूचबिहार आज भी कई ऐतिहासिक
क्षणों को अपने आपमें समेटे हुए है। कूचबिहार महल सहित कई ऐतिहासिक स्थल लोगों को
अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
इन्डोर स्टेडियम के प्रांगण में बने भव्य पंडाल में उपस्थित
श्रद्धालुओं को अपनी मंगलवाणी का रसपान कराते हुए आचार्यश्री ने कहा कि समता की
साधना के द्वारा अपने आपको विशेष प्रसन्न बनाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने
जीवन में मानसिक तनाव, चिन्ता, भय में चला जाता है। तनाव से ग्रसित चिंतित आदमी कैसे
प्रसन्न रह सकता है। आदमी यदि अपने जीवन में समता की साधना कर ले तो अनुकूल और
प्रतिकूल दोनों परिस्थितियों में अपने आपको प्रसन्नचित्त बना सकता है। आदमी के मन
में डर न हो, चिन्ता न हो, शोक न हो प्रसन्नता प्राप्त हो सकती है। प्रसन्नता मन को
शांति प्रदान करने वाली हो सकती है। आदमी भौतिक सुखों से प्रसन्न हो सकता है
किन्तु विशेष प्रसन्नता विशेष बात होती है। मोह का भाव आदमी के सहज प्रसन्नता के
लिए बाधक तत्व होता है। आदमी अपने शरीर से मोह कर लेता है। इसलिए आदमी शरीर के लिए
कितना कुछ करता है। भौतिक सुखों में आसक्त हो जाता है। ममता और आसक्ति प्रसन्नता
के बाधक तत्व हैं। शरीर के आसपास रहने वाला व्यक्ति अपनी आत्मा से दूर हो सकता है।
इसलिए आदमी को शरीर नहीं अपनी आत्मा के आसपास रहने का प्रयास करना चाहिए। आदती
प्रिय-अप्रिय से मुक्त जीवन जीने का प्रयास करे तो वह प्रसन्नता की दिशा में आगे
बढ़ सकता है। समता को धर्म बताया गया है। इसलिए आदमी को समता भाव में रहने का
प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने एक कहानी के माध्यम से श्रद्धालुओं को प्रेरित
करते हुए कहा कि आदमी दुःख के समय सोचे कि यह समय भी बीत जाएगा और ज्यादा खुशी के
समय भी यह सोचे कि यह समय बीत जाएगा तो आदमी समभाव की साधना कर सकता है।
आचार्यश्री ने बंगालवासियों को विशेष प्रेरणा प्रदान करते
हुए कहा कि अहिंसा यात्रा त्रिसूत्रीय कार्यक्रम चली है। आदमी यदि अपने जीवन में
इन तीन संकल्पों को आत्मसात करने का प्रयास करे तो भी वह समता की प्राप्ति की आगे
बढ़ सकता है। आदमी को समता की साधना कर आत्मा की सुगति का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व असाधारण साध्वीप्रमुखाजी
ने भी अपने ममतामयी वाणी से श्रद्धालुओं को विशेष प्रेरणा प्रदान की।
1 Comments
Om Arham
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