- शांतिदूत की पावन सन्निधि में वर्धमान महोत्सव का मंगल शुभारम्भ –
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आचार्यश्री महाश्रमणजी |
13 जनवरी 2017 कूचबिहार (पश्चिम बंगाल) (JTN) : तेरापंथ धर्मसंघ के
प्रवर्धमानता का प्रतीक कहें या निरंतर गतिशील रहने की प्रेरणा देने वाला वर्धमान
महोत्सव का शुक्रवार को पश्चिम बंगाल राज्य के कूचबिहार जिले में स्थित कूचबिहार
इन्डोर स्टेडियम प्रांगण में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें
अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता महातपस्वी वर्धमानता के द्योतक
आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने श्रीमुख से नमस्कार महामंत्र का उच्चारण कर वर्धमान
महोत्सव का शुभारम्भ किया। इस दौरान महाश्रमणी और धर्मसंघ की असाधारण
साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यमुनिश्री, साध्वीवर्याजी सहित तमाम साधु-साध्वी, समण-समणीवृन्द उपस्थित थे। आचार्यश्री ने उपस्थित
श्रद्धालुओं को आत्मा की दृष्टि से वैराग्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा प्रदान की।
शुक्रवार को आचार्यश्री वर्धमान महोत्सव के मंच पर उपस्थित
हुए तो उनके आए सैकड़ों की संख्या में साधु-साध्वियों, समण-समणियों के समूह ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानों एक निरंतर
वर्धमान होता महासूर्य अपनी श्वेत रश्मियों के साथ लोगों को जीवन में प्रवर्धमान
बनने की प्रेरणा देने आया हो। ऐसे महासूर्य के दर्शन मात्र से ही उपस्थित श्रद्धालुओं के हृदय में
मलीनता का शायद अंधेरा दूर हो गया और अच्छे सुविचारों का प्रकाश प्रस्फुटित हो उठा
हो। श्रद्धालुओं को आलोकित करने के लिए आचार्यश्री ने सर्वप्रथम नमस्कार महामंत्र
का मंगल उच्चारण कर त्रिदिवसीय वर्धमान महोत्सव के प्रथम दिन शुभारम्भ किया।
आचार्यश्री ने वर्धमान महोत्सव के सुअवसर पर उपस्थित श्रद्धालुओं को वर्धमान बनने का मंत्र बताते हुए कहा कि आदमी को जीवन में हमेशा वर्धमान बनने का प्रयास करना चाहिए। लौकिक जीवन में आदमी आगे बढ़ता है, उसे वैराग्य और आत्मा की दृष्टि से भी वर्धमान बनने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा की दृष्टि से आदमी को वैराग्य की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। दुनिया के भौतिक सुखों का त्याग कर वैराग्य के मार्ग पर आगे बढ़ना तो कठीन कार्य होता है। इसके बावजूद भी हमारे धर्मसंघ में कितने-कितने साधु-साध्वियां और समण-समणियां ऐसे भी जो अवस्था में छोटे होते हुए भी बड़े आगे निकल चुके हैं, चारित्र की साधना के साथ। चकाचौंध भरी आधुनिक दुनिया के संसाधनों का परित्याग कर वैराग्य के मार्ग पर चलने वाले साधु-साध्वियों का यह सौभाग्य है कि साधु-साध्वी अपनी आत्मा को वर्धमान बनाने के लिए साधना के पथ पर बढ़ चले हैं। दुनिया में कोई कितना भी धनवान हो, उसके पास हीरे ही क्यों न हो, किन्तु साधु के चारित्र रत्न और सम्यक रत्न के बराबर कोई संपदा नहीं ठहर सकती। आदमी अपनी आत्मा के उत्थान के लिए जीवन में विनय का भाव रखे और अपनी साधना के माध्मय से अपनी आत्मा को कल्याण की दिशा में प्रवर्धमान करने का प्रयास करें तो इस लोक के साथ परलोक भी अच्छा बन सकता है।
आचार्यश्री ने वर्धमान महोत्सव के बारे कुछ विशेष अवगति
प्रदान करते हुए कहा कि आज कूचबिहार में त्रिदिवसीय वर्धमान महोत्सव का प्रथम दिन।
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर के नाम से जुड़ा है। यह धर्मसंघ
निरंतर आगे बढ़ता रहे। साधु-साध्वी, समण-समणियों की संख्या में भी प्रवर्धमानता बनी रहनी चाहिए।
धर्मसंघ साधु-साध्वियां, समण-समणियों की संख्या से भी बढ़ते रहना चाहिए। इसके लिए
वर्ष 2017 के
चौमासे में एक कान्फ्रेन्स का आयोजन किया गया है, जिसमें वर्ष 2030 में साधु-साध्वियों, समण-समणियों की संख्या कितनी होनी चाहिए, इसपर विचार-विमर्श करने के लिए 20 जुलाई 2017 से 24 जुलाई 2017 तक आयोजित की गई है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व असाधारण
साध्वीप्रमुखाजी और साध्वीवर्याजी ने लोगों को वर्धमान महोत्सव के संबंध में विशेष
अवगति प्रदान की और लोगों को अपने जीवन में निरंतर वर्धमान बनने की मंगल प्रेरणा
प्रदान की।
अपनी धरा पर आयोजित होने वाले इस विशेष महोत्सव की प्राप्ति
से अभिभूत कूचबिहारवासियों ने भी अपनी भावनाओं के श्रद्धासुमन श्रचरणों में चढ़ाए।
सर्वप्रथम साधुमार्गी महिला समिति की महिलाओं ने गीत का संगान किया। तेरापंथ महिला
मंडल, कन्या
मंडल की सदस्याओं ने गीत के माध्यम से अपनी भावनाओं के सुमन अर्पित कर आचार्यश्री
से पावन आशीष प्राप्त किया। तेरापंथ युवक परिषद के सदस्यों और दूगड़ परिवार के
महिला व पुरुष सदस्यों ने संयुक्त रूप से गीत का संगान किया। तुलसी ज्ञानशाला के
निवर्तमान अध्यक्ष श्री धर्मचंद भंसाली ने भी आचार्यश्री के चरणों में अपनी
भावनाओं को अभिव्यक्त कर आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।
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