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व्यक्ति नहीं संघ है महत्वपूर्ण : आचार्यश्री महाश्रमण

- वर्धमान महोत्सव के अंतिम दिन आचार्यश्री ने प्रदान किए वर्धमानता के तीन सूत्र -

आचार्यश्री महाश्रमणजी

          15.01.2017 कूचबिहार (पश्चिम बंगाल) (JTN) : त्रिदिवसीय वर्धमान महोत्सव के अंतिम दिन रविवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के रवि, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने श्रद्धालुओं को वर्धमानता के तीन सूत्र प्रदान कर लोगों को अपने जीवन और शरीर के साथ ही संघ की प्रवर्धमानता के प्रति सजग रहने का अभिप्रेरणा प्रदान की। वहीं अंतिम दिन संतवृन्द, साध्वीवृन्द और समणीवृन्द ने संघ की प्रवर्धमानता का गुणगान और संघ की वर्धमानता में अपने सर्वस्व समर्पण के भावों को भी अभिव्यक्त किया। इस दौरान पश्चिम बंगाल सरकार के उत्तर बंगाल उन्नयन मंत्री श्री रविन्द्रनाथ घोष उपस्थित हुए। आचार्यश्री के दर्शन कर पावन पथदर्शन प्राप्त किया और अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए आचार्यश्री का अपने क्षेत्र में हार्दिक स्वागत-अभिनन्दन के अलावा आचार्यश्री के इस धरती पर पुनरागमन की गुहार भी लगाई।
  कूचबिहार जिले के कूचबिहार इन्डोर स्टेडियम में समायोजित त्रिदिवसीय वर्धमान महोत्सव के अंतिम दिन रविवार को वर्धमानता के प्रतीक पुरुष आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित साधु-साध्वी, समण-समणी समुदाय के साथ उपस्थित सैकड़ों श्रद्धालुओं को वर्धमानता का तीन सूत्र आत्म हित, संघ हित और शरीर हित प्रदान करते हुए कहा कि साधु या सामान्य आदमी को भी अपनी आत्मा के हित में प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा की निर्मलता को बनाए रखने के लिए आचार और साधना के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा को मलीन बनाने कार्यों से बचने का प्रयास करना चाहिए। छोटी-छोटी बातों में अहिंसा की साधना का ध्यान रखा जाए तो आत्मा निर्मल बनी रह सकती है। साधु और श्रावकों को संघ हित के प्रति भी जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। जहां संघ हित की बात हो वहां व्यक्ति हित या किसी व्यक्ति की महत्ता को अस्वीकार कर संघ हित को सर्वोपरि बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। अपने कार्यों से संघ का निरंतर हित करने का प्रयास करना चाहिए और इसके प्रति जागरूक भी रहने का प्रयास करना चाहिए। कोई व्यक्ति नहीं संघ महत्त्वपूर्ण होता है। व्यक्ति तो अस्थाई है, आज है, कल चला जाएगा, किन्तु संघ निरंतर विद्यमान रहेगा। इसलिए आदमी को संघ हित के प्रति निरंतर सजग रहने का प्रयास करना चाहिए। अपने आचार्य के प्रति विनय का भाव रखने का प्रयास हो। वे कभी अप्रसन्न न हों और उनकी कृपा सदैव बनी रहे, इसका विशेष ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। संघ की सेवा के लिए यदि कभी गुरुकुलवास को छोड़कर जाना भी पड़े तो गुरुकुलवास के मोह का परित्याग कर संघ की सेवा के लिए तत्पर हो जाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्य की सेवा बड़ी बात, किन्तु संघ की सेवा उससे भी बड़ी बात होती है। आदमी को आत्म हित, संघ हित के साथ शरीर के हित का ध्यान रखना का प्रयास करना चाहिए। शरीर स्वस्थ रहे, निरोगी रहे, निरामय रहे तो उससे धर्माराधना और सेवा करने में सहायता प्राप्त हो सकती है। इसके लिए उचित खान-पान का ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा अभ्यास हो कि आदमी का शरीर किसी भी मुश्किल परिस्थिति को झेलने के लिए सक्षम और सहिष्णु बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी यदि आत्म हित, संघ हित और शरीर हित के प्रति जागरूकता रहे तो वर्धमानता की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के पूर्व वर्धमान महोत्सव का अंतिम दिवस होने के कारण सर्वप्रथम समणीवृन्द ने गीत की प्रस्तुति दी। उसके उपरान्त साध्वीप्रमुखाजी ने लोगों को अभिप्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि वर्धमान समवसरण और वर्धमानता के प्रतिनिधि आचार्यश्री का सान्निध्य और वर्धमान महोत्सव का आयोजन और वर्धमानता की चर्चा। तेरापंथ धर्मसंघ विकासशील धर्मसंघ है। आचार्य भिक्षु ने जिस रूप में तेरापंथ धर्मसंघ की स्थापना की, उसका उत्तरोत्तर विकास हो रहा है। जिस धर्मसंघ के साधु-साध्वी किसी भी उम्र में ज्ञान के क्षेत्र में विकास करने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं, उस धर्मसंघ को वर्धमान होने से कोई रोक नहीं सकता। धर्मसंघ के साधु-साध्वियां और श्रावक दर्शन, ज्ञान और चारित्र में निरंतर वृद्धि करते रहें और अनछुए शिखरों को छुते रहें। आचार्यश्री चरैवेति-चरैवेति के सूत्र को प्रतिपादित करते हुए देश-विदेश में धर्मसंघ की प्रभावना को वृद्धिगंत कर रहे हैं। हम सभी ऐसे आचार्यश्री से प्रेरण प्राप्त कर आत्मानुशासन को वर्धमान कर धर्मसंघ की वर्धमानता में भागीदार बनें।
मुख्यमुनिश्री ने श्रद्धालुओं को आत्म विशुद्धि की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करने की प्रेरणा प्रदान की और गुरु के किसी निर्णय गलत ठहराना या उसकी आपस में चर्चा करने को सर्वथा अनुचित बताते हुए कहा कि गुरु के किसी भी आदेश या निर्णय को अविचारणीय रूप से पालन करने का प्रयास करना चाहिए। देव, गुरु और धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा का भाव रखें और अपनी शक्ति को संघ की वर्धमानता में नियोजित करने का प्रयास करें। डोर से बंधी पतंग जिस प्रकार ऊपर जा सकती है, उसी प्रकार संघ से जुड़ा हुआ व्यक्ति ही अपना विकास कर सकता है।
समणीवृन्द और संतवृन्द ने संघ की वर्धमानता के लिए गीत का संगान किया। समण सिद्धप्रज्ञजी ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावांजलि अर्पित की। तेरापंथ सभा कूचबिहार के मंत्री श्री सुरेश नाहटा और आचार्यश्री महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति कूचबिहार के मंत्री श्री महेन्द्र पुगलिया ने भी अपने विचार अभिव्यक्त किए तो तेरापंथ महिला मंडल की सदस्याओं ने गीत का संगान किया। अंत में विदेशी धरती से गुरु सन्निधि में पहुंची समणी सन्मतिप्रज्ञाजी और समणी विकासप्रज्ञाजी के सिंघाड़े ने भी भावपूर्ण गीत का संगान किया।
पश्चिम बंगाल सरकार में उत्तर बंगाल उन्नयन मंत्री श्री रविन्द्रनाथ घोष आचार्यश्री की सन्निधि में उपस्थित हुए। आचार्यश्री का दर्शन का शुभाशीष प्राप्त करने के बाद अपने विचार अभिव्यक्त करते हुए कहा कि ऐसा गुरु जो वर्षों तक पैदल चलकर देश के विभिन्न प्रान्तों को पारकर कूचबिहार में पधारे हैं, हम आपका स्वागत करते हैं। आपके चरणरज को पाकर कूचबिहार की धरती धन्य हो गई है, पावन हो गई है। सारे देश में पैदल चलकर आपश्री जो जन-जन को शांति की बात बता रहे हैं, उससे सभी को शांति प्राप्ति हो रही है। आपकी बात सभी को शांति प्रदान करती है। आपने जो कूचबिहार पर महती कृपा कराई है, उसके लिए मैं आपको बारम्बार प्रणाम करता हूं। उन्होंने आचार्यश्री के समक्ष भाव-विभोर होते हुए कहा कि आचार्यश्री आपकी बातें इतनी अच्छी लगीं तो मेरा निवेदन है कि आप हमारी धरा पर दुबारा पधारें, ऐसा मैं आग्रह करता हूं।








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