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भावधारा को शुद्ध बनाकर आत्मोत्थान की दिशा में आगे बढ़े : आचार्यश्री महाश्रमण

- घोकसाडांगावासियों ने गुरुमुख से स्वीकार की सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) -


          17 जनवरी 2017 घोकसाडांगा, कूचबिहार (पश्चिम बंगाल) (JTN) : जन कल्याण के लिए अहिंसा यात्रा लेकर निकले अखंड परिव्राजक, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी मंगलवार को पुंडीबारी से लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर घोकसाडांगा स्थित प्रमाणिक हाईस्कूल प्रांगण में पहुंचे। यहां उपस्थित श्रद्धालुओं को भाव शुद्धता का मंत्र प्रदान किया तो वहीं घोकसाडांगावासियों को अपने श्रीमुख से सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) प्रदान कर उन्हें आत्मोत्थान की दिशा में आगे बढ़ने का पावन प्राथेय प्रदान किया।
          जन-जन के मानस को परिवर्तित करने और शांति का संदेश देने के लिए महातपस्वी आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ वर्तमान समय में पश्चिम बंगाल राज्य के कूचबिहार जिले में गतिमान हैं। मंगलवार को सुबह निर्धारित समयानुसार आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ पुंडीबारी से घोकसाडांगा के लिए प्रस्थान किया। ठंडी हवाओं के बीच लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री घोकसाडांगा स्थित प्रमाणिक हाईस्कूल प्रांगण में पहुंचे।
          सर्वप्रथम आचार्यश्री ने घोकसाडांगा के श्रद्धालुओं को अपने श्रीमुख से सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) प्रदान की और उन्हें यावज्जीवन के लिए देव, गुरु और धर्म के प्रति श्रद्धा का समर्पण करने का संकल्प करवाया। आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को संवत्सरी के उपवास और शनिवार को सामायिक की विशेष प्रेरणा भी प्रदान की।
          उसके उपरान्त श्रद्धालुओं को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आदमी अनेक चित्तों वाला होता है। उसकी भावधारा निरंतर बदलती रहती है। कभी वह प्रसन्न होता है तो कभी उदास हो जाता है, कभी संतुष्ट तो कभी लालच करता भी दिखाई दे सकता है। कभी क्षमाभाव तो कभी आक्रोश और कभी मृदुता तो कभी कटुतापूर्ण भाषा का भी प्रयोग करते हुए देखा जा सकता है। आदमी को अपनी भावधारा को निर्मल और शुद्ध बनाने का प्रयास करना चाहिए।
          आदमी के भीतर राग और द्वेष प्रबल होते हैं तो मन, वचन और काय योग अशुभ बन जाते हैं। इस कारण आदमी झूठचोरी, छल-कपट और हिंसा में भी जा सकता है। अशुभ भावधारा आदमी को पतन की ओर ले जाने वाली होती है तो शुभ भावधारा उत्थान की ओर ले जा सकता है। आदमी राग-द्वेष को कम करने का प्रयास करे और उसके कषाय मंद पड़े तो भावों की शुद्धि हो सकती है। आदमी की जैसी सोच होती है, वैसी उसकी प्राप्ति होती है। इसलिए आदमी को अपनी भावधारा को शुद्ध बनाकर आत्मोत्थान की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। 
          आचार्यश्री ने उपस्थित ग्रामीणों को अहिंसा यात्रा के त्रिसूत्रीय संकल्पों की अवगति प्रदान करते हुए कहा कि यदि अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्प भी भाव शुद्धि के उपाय हैं। तीनों संकल्प स्वीकार हो जाएं तो भावों की शुद्धता प्राप्त हो सकती है। उपासना और आचरण का योग हो जाए तो जीवन का अच्छा लाभ प्राप्त हो सकता है। आचार्यश्री के आह्वान पर ग्रामीणों ने अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्प स्वीकार किए। घोकसाडांगा ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावनाओं की प्रस्तुति दी। घोकसाडांगा कन्या मंडल और महिला मंडल ने अलग-अलग गीत का संगान किया। श्री सोहनलाल मोहता व गांव के लोकसभापति श्री उमाकांत सरकार ने आचार्यश्री का स्वागत किया।







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