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शिक्षा के साथ संस्कारों का ज्ञान भी आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण


          20 जनवरी 2017  इच्छागंज (पश्चिम बंगाल) (JTN) : अहिंसा यात्रा के प्रणेता, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ माथाभांगा से प्रस्थान किया तो एक बार पुनः विहार मार्ग काफी लंबा था, किन्तु संकल्पशक्ति के साक्षात प्रतिमूर्ति आचार्यश्री ने कदम बढ़ाए और लगभग साढ़े तीन घंटे की पदयात्रा कर इच्छागंज सुकुरचंद हायर सेकेण्ड्री स्कूल के प्रांगण में पहुंचे। 
इच्छागंज सुकुरचंद हायर सेकेण्ड्री स्कूल में उपस्थित विद्यार्थियों को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि जो अविनीत होता है उसे विपत्ति और जो विनीत होता है उसे संपत्ति प्राप्त होती है। दोनों बातों का ज्ञान जिस आदमी को प्राप्त हो जाए वह शिक्षा को प्राप्त कर सकता है। विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने के लिए देश-विदेश के कितने-कितने विद्यालय, महाविद्यालयों में अध्ययनरत होंगे। आदमी के जीवन में विद्या के विकास के साथ अच्छे संस्कारों का विकास अथवा निर्माण होना चाहिए। संस्कारयुक्त विद्या आदमी के जीवन को प्रगति के पथ ले जाने वाली बन सकती है। इसलिए विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ संस्कारों का ज्ञान भी बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। 
आचार्यश्री ने उपस्थित विद्यार्थियों को जैन साधुचर्या और उनके पांच प्रमुख नियमों की अवगति प्रदान की। साथ अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्यों का वर्णन करते हुए कहा कि यदि आदमी के जीवन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति जैसे संकल्पों का आगमन हो जाए तो जीवन को अच्छा बनाने वाला हो सकता है। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति जीवन में दुःखों से भी बचा सकता है। आचार्यश्री के आह्वान पर विद्यार्थियों ने अहिंसा यात्रा के संकल्पों को स्वीकार कर आचार्यश्री से शुभाशीष प्राप्त किया। 
वहीं कार्यक्रम के शुभारम्भ में आचार्यश्री का स्वागत करते हुए स्कूल के प्रिंसिपल श्री शशिमोहन वर्मन ने कहा कि आपके आगमन से हमारा विद्यालय प्रांगण धन्य हो गया है। आप ऐसे शुभ मौके पर पधारे और हमारे छात्रों को आशीर्वाद दिया, इसके लिए हम आपके आभारी हैं। हम आपके चरणों की बारम्बार वंदना करते हैं। कार्यकम का कुशल संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।



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