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जीवन में विनय का प्रयोग करें : आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमणजी का चांगड़ाबंधा में मंगल प्रवेश
आचार्यश्री महाश्रमणजी

          22 जनवरी 2017, चांगड़ाबंधा (पश्चिम बंगाल) (JTN) : जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, मानवता के मसीहा, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी बड़ोकामत से चांगड़ाबंधा के लिए विहार किया तो कुछ दूरी के बाद भारत और बंगालादेश की अंतर्राष्ट्रीमा पर लगे कटीले तार के समीप से गुजरे। वहीं इस सीमा की सुरक्षा के लिए जगह-जगह बी.एस.एफ. के जवान पूरी मुस्तैदी से तैनात थे। लगभग बारह किलोमीटर के विहार में पूरे विहार के दौरान बंगलादेश की सीमा रेखा साथ-साथ बनी रही। आचार्यश्री जैसे-जैसे चांगड़ाबंधा के निकट पहुंच रहे थे वैसे-वैसे श्रद्धालुओं की संख्या में इजाफा होता जा रहा था। चांगड़ाबंधा की सीमा में प्रवेश करते ही श्रद्धालुओं का विशाल जनसमूह उपस्थित हो महातपस्वी आचार्यश्री के दर्शन, स्वागत और अभिनन्दन को। आचार्यश्री ने सभी पर आशीषवृष्टि कर आगे बढ़े तो विशाल जनसमूह भव्य जुलूस के रूप में परिवर्तित होकर गगनभेदी जयकारे लगाते अपने आराध्य के साथ चल पड़ा। आचार्यश्री डाकघर रोड स्थित तेरापंथ भवन पहुंचे। 
भवन से कुछ ही दूरी पर स्थित बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने जीवन में विनय भाव का प्रयोग करने और ज्ञानार्जन का आयास-प्रयास करने की प्रेरणा करते हुए कहा कि साधु या आम आदमी के जीवन में विनय का प्रयोग कर ज्ञानार्जन का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान प्राप्ति के लिए बुद्धि, प्रतिभा और प्रज्ञा की आवश्यकता होती है। प्रतिभा, प्रज्ञा और बुद्धि के बिना ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं। प्रज्ञाविहीन आदमी के समक्ष शास्त्र भी रख दिया जाए तो वह भला उस शास्त्र से कितना ज्ञान प्राप्त कर सकता है। इसलिए आदमी के भीतर प्रज्ञा, प्रतिभा और बुद्धि का विकास करने का प्रयास करना चाहिए और निरंतर ज्ञानार्जन का प्रयास करना चाहिए। ज्ञानाराधना के लिए आदमी को परिश्रम करने का भी प्रयास करना चाहिए। ज्ञान अपने आप में पवित्र है। आदमी को ज्ञानार्जन में अपना समय नियोजित करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने गणी (गणी) में रहने वाली आठ संपदा का वर्णन करते हुए कहा कि इन संपदाओं से परिपूर्ण गणी परम मंगलकारी होते हैं। इसलिए आदमी को भी जीवन में ज्ञानार्जन के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। 
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी ने भी श्रद्धालुओं को अभिप्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि हजारों सूर्य और चंद्रमा के प्रकाश के बाद भी गुरु के बिना आदमी के जीवन में अंधकार होता है। सूर्य और चंद्रमा के प्रकाश तो बाह्य जगत को प्रकाशित कर सकते हैं किन्तु भीतर स्थित अज्ञान रूपी अंधकार को गुरु ही दूर करने वाले होते हैं। आज चंगड़ाबंधावासियों के लिए सोने का सूरज उगा है जो स्वयं उनके घर चलकर उनके आराध्य देव पधारे हैं। शांति का संदेश लेकर शांति के अवतार आचार्यश्री अपनी अहिंसा यात्रा में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की बात बताते हैं। ये तीनों नियम आदमी के जीवन में आए तो आदमी मनुष्यता की दिशा में आगे बढ़ सकता है। 
कार्यक्रम के अंत में तेरापंथी सभा चंगड़ाबन्ंधा की ओर से मूलचंद बैद, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष प्रकाश सुराणा ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मंडल ने स्वागत गीत के माध्यम से आचार्यश्री का स्वागत कर पावन आशीष प्राप्त किया। इस गांव से संबंधित शासन गौरव साध्वीश्री राजीमतिजी के एक पत्र को आचार्यश्री ने मुख्यनियोजिकाजी को प्रदान कर इसका वाचन कर सुनाने को कहा। मुख्यनियोजिकाजी ने उक्त पत्र का वाचन कर लोगों को श्रवण कराया। कार्यकम का कुशल संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।






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