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आदमी अपने जीवन में साधना का आयास करने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण

- मयनागुड़ी में मना साध्वीप्रमुखाजी का 46वां मनोनयन दिवस -
- आचार्यश्री ने स्वास्थ्य अच्छा रहे और निरंतर धर्मसंघ की सेवा करने का दिया शुभाशीष -
आचार्यश्री महाश्रमणजी

          25 जनवरी 2017 मयनागुड़ी, जलपाईगुड़ी (पश्चिम बंगाल) (JTN) : बुधवार को मयनागुड़ी उस समय अपनी किस्मत पर इतरा उठा जब उसकी धरा पर दूसरी बार अहिंसा यात्रा के प्रणेता, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ पधारे। तीन मार्च 2016 को इस धरा को पावन कर पूर्वोत्तर को पावन करने आचार्यश्री पधार रहे तो तब भी इस धरा को पावन किया और जब ग्यारह महीनों तक पूर्वोत्तर भारत को आध्यात्मिक प्रेरणा से अभिसिंचन प्रदान कर और गुवाहाटी में ऐतिहासिक चतुर्मास संपन्न कर पश्चिम की ओर विहार किया तो एक बार पुनः मयनागुड़ी की धरा को अपने चरणरज से पावन कर दिया। मयनागुड़ी के लिए यह अवसर सोने पर सुहागे जैसा था। क्योंकि आज के ही दिन तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखाजी का मनोनयन दिवस भी यहीं आयोजित हुआ। 
आज लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री अपनी संपूर्ण धवल सेना के साथ मयनागुड़ी स्थित मारवाड़ी जनकल्याण समिति के भवन में पधारे। मनोनयन दिवस पर सर्वप्रथम समणीवृन्द ने गीत के माध्यम से साध्वीप्रमुखाजी की अभ्यर्थना की। उसके उपरान्त साध्वी समुदाय ने गीत के माध्यम से संघ महानिदेशिका की चरणवन्दना की। 
साध्वीवर्याजी ने साध्वीप्रमुखाजी को स्वाध्यायशील, श्रमशील तपस्विनी बताते हुए कहा कि आपकी अध्ययनशीलता हम सभी के लिए प्रेरणास्पद है। इस अवस्था में भी आपका कंठस्थ ज्ञान उत्प्रेरक है। आपका स्वाध्याय से विशेष लगाव आपकी बोली में निरंतर नवीनता प्रदान करती है। आप हमसभी को श्रमीजीवी बनने की प्रेरणा प्रदान करती हैं। शुभयोग और सदा सकारात्मक सोच रखने वाली आपश्री से हम सभी को मंगल प्रेरणा मिलती रहे। 
मुख्यनियोजिकाजी ने अपने वंदन में कहा कि साध्वीप्रमुखाजी ज्ञानमयी स्वरूपा हैं मैं उन्हें प्रणाम करती हूं। आप एक कवियत्री, लेखिका, साहित्यकार और कुशल संपादिका के रूप में हैं। आपके संतता का पहला घटक आचार कौशल, वाक् कौशल और व्यवहार कौशल की आप साक्षात प्रतिमूर्ति हैं। आपका निरंतर सान्निध्य हमसभी को प्राप्त होता रहे ओर हम सभी आपसे प्रेरणा प्राप्त कर निरंतर आगे बढ़ते रहें। 
मुख्यमुनिश्री ने ममतामयी साध्वीप्रमुखाजी की वन्दना करते हुए कहा कि यह हम सबका सौभाग्य है जो आप जैसी असाधारण साध्वीप्रमुखाजी इस धर्मसंघ को प्राप्त हैं। पचहत्तर वर्ष की आयु में भी आप आचार्यश्री के साथ यात्रायित हैं। आपको तीन-तीन आचार्यों की सेवा का लाभ मिला। आचार्यों की सेवा और संघ के प्रत्येक उतराव-चढ़ाव की साक्षी और सहभागी रही हैं। आपका ज्ञानार्जन के प्रति लगाव हम सभी को प्रेरणा प्रदान करने वाला है। आपसे हम सभी को समर्पण, गुरुनिष्ठा प्राप्त हो, आप स्वस्थ रहते हुए धर्मसंघ को अपनी कृपा प्रदान कराती रहें। 
असाधारण साध्वीप्रमुखाजी ने इस मौके पर अपनी अभिव्यक्ति प्रदान करते हुए कहा कि आज के दिन एक अकल्पित और अप्रत्याशित मोड़ आया। जब गुरुदेव तुलसी ने घोषणा की तो लोगों को सहसा अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। इसके पीछे शायद मेरी ग्यारह वर्ष साध्वीकाल का रहा। जिस समय मैं आत्मस्थ रहा करती थी। मेरे संपर्क सीमित थे। उसके बाद मेरा जीवनकाल बदला। गुरुदेव तुलसी को मनोवैज्ञानिक बताते हुए साध्वीप्रमुखाजी ने कहा कि उन्होंने कुछ भी मेरे पर थोपा नहीं, बल्कि उन्होंने मेरे को कुछ भी नहीं समक्ष आने के निवेदन पर आश्वासन देते हुए कहा कि नाम तुम्हारा और काम मेरा होगा। गुरुदेव मेरे जीवन और व्यक्तित्व को गढ़ते गए और परिवर्तन होता चला गया। गुरु का जैसे-जैसे निर्देश मिलता गया, उनका अनुपालन करने का प्रयास करती गयी। मेरे जीवन में जो कुछ भी वह गुरुओं की कृपा है। गुरु कृपा निधान होते हैं। मुझे तीन-तीन गुरुओं से गति की प्राप्ति हुई है। असाधारण साध्वीप्रमुखाजी ने आचार्यश्री की अभ्यर्थना करते हुए कहा कि आपश्री ने एक तरह मुख्यनियोजिकाजी को दूसरी ओर साध्वीवर्या को प्रदान कर मुझे हल्का बना दिया है। आज के दिन यहीं आपसे आशीर्वाद चाहती हूं कि आप मुझे हल्का बनाएं और वीतरागता की दिशा में आगे बढ़ाएं। 
आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं और मनोनयन दिवस पर अपनी विशेष अवगति प्रदान करते हुए कहा कि जैन शासन में तीर्थंकर का अत्यन्त महत्त्व होता है। तीर्थंकर हर समय भरतक क्षेत्र में रहें, ऐसा संभव नहीं है। इसलिए जैन शासन में तीर्थंकर के प्रतिनिधि के रूप में आचार्य होते हैं। तीर्थंकर का प्रतिनिधित्व आचार्य को प्राप्त है। तीर्थंकरों की अनुपस्थिति में आचार्य अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं। अनेक संप्रदायों में एक जैन श्वेताम्बर तेरापंथ। इसके संस्थापक आचार्य भिक्षु हुए। आचार्य भिक्षु तेरापंथ के जनक थे तो आचार्य जयाचार्य को तेरापंथ को और व्यवस्थित करने वाले आचार्य के रूप में जाना जा सकता है। उन्होंने साध्वी समुदाय पर विशेष ध्यान दिया। धर्मसंघ में साध्वी समुदाय में एक मुख्य साध्वी की व्यवस्था की। आचार्य तुलसी ने धर्मसंघ को तीन-तीन साध्वीप्रमुखा प्रदान किया या उनका मनोनयन किया। गुरुदेव तुलसी ने आज के दिन एक साध्वी पर कृपा बरसाई। साध्वीप्रमुखाजी को आज 45 वर्ष पूर्ण हो रहे इस जगह पर। 
आचार्यश्री ने अभिप्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को अपने जीवन में साधना का आयास करने का प्रयास करना चाहिए। स्वयं के लिए संयम की साधना और सेवा करने का प्रयास करना चाहिए। साध्वीप्रमुखाजी साध्वी समुदाय और धर्मसंघ को कितने लंबे समय से अपनी सेवा दे रही हैं। गुवाहाटी में आपके जन्मदिवस के बाद असाधारण साध्वीप्रमुखा का एक संबोधन दिया। आपने साहित्य का कितना कार्य किया है। साध्वी समुदाय की सेवा की है। आचार्यश्री ने साध्वीप्रमुखाजी के मनोनयन दिवस पर आचार्य तुलसी को याद किया और साध्वीप्रमुखा जी के अच्छे स्वास्थ्य की धर्मसंघ की खूब सेवा करने की और चित्त में खूब प्रसन्नता रहने, चित्त की सामधि रहने की मंगलकामना की। इस मौके पर मुनि कमलकुमारजी ने अपनी भावनाओं को महाश्रमणजी के चरणों में समर्पित किया। श्री बजरंगलाल हीरावत से स्वागत अभिभाषण प्रस्तुत किया। महिला मंडल ने गीत के माध्यम से अपनी भावनाओं की पुष्पांजलि श्रीचरणों में अर्पित की। 





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