- हाजरी वाचन में जुटे समस्त साधु-साध्वी और समण-समणियां -
- आचार्यश्री ने श्रीमुख से प्रदान की सम्यक्त्व दीक्षा, गुरुकृपा से अभिस्नात हुए जलपाईगुड़ी निवासी -
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आचार्यश्री महाश्रमणजी |
26 जनवरी 2017 जलपाईगुड़ी (पश्चिम बंगाल) (JTN) : जन-जन के मन को अभिसिंचत करते हुए अहिंसा यात्रा अपने प्रणेता, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिाशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी और विशाल धवल सेना के साथ गुरुवार को जलपाईगुड़ी जिला मुख्यालय पहुंची। आचार्यश्री के ज्योतिचरण से यह जिला मुख्यालय दूसरी बार पावन हो रहा था। जलपाईगुड़ीवासियों ने अपने आराध्य का भावभीना स्वागत किया। आचार्यश्री नगर स्थित श्री अग्रसेन स्मृति भवन में पधारे। यहां से कुछ दूर बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं और साधु-साध्वी तथा समण-समणियों को अपना मंगल उद्बोध प्रदान किया तो वहीं चतुर्दशी तिथि होने के कारण समस्त साधु-साध्वी समाज को संघ-संघपति के प्रति अपनी निष्ठा को अक्षुण बनाए रखने की प्रेरणा भी प्रदान की।
26 जनवरी 1950 को अपने विशाल संविधान के साथ भारत पूरी दुनिया का सबसे विशाल गणतंत्र देश घोषित हुआ था। आज यह महान देश अपने गणतंत्रता के 68वें वर्ष की खुशियां मना रहा था। वहीं जलपाईगुड़ीवासियों को इस शुभ मौके पर एक और तोहफा प्राप्त हो रहा था शांति के संवाहक, शांति संप्रसारक शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के शुभागमन के रूप में। हालांकि यह जलपाईगुड़ी का विशेष सौभाग्य था जब यह धरती एक महान संत के चरणरज से दूसरी बार पावन होने जा रही थी। एक तरफ स्कूली बच्चे और सरकारी भवनों से निकलते लोग नगर स्थित स्टेडियम में पहुंच रहे थे। वहीं श्रद्धालु सज-धजकर अपने आराध्य की अभिवन्दना के लिए आगे वाले मार्ग की ओर जा रहे थे। गणतंत्रता के मौके पर अपने आराध्य के दर्शन को श्रद्धालु लालायित नजर आ रहे थे। लगभग पन्द्रह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री अपनी श्वेत सेना के साथ जलपाईगुड़ी की सीमा में मंगल प्रवेश किया। श्रद्धालुओं ने गगनभेदी जयकारों से अपने आराध्यदेव का स्वागत किया और भव्य जुलूस के साथ श्री अग्रसेन स्मृति भवन पहुंचे।
प्रवास स्थल से कुछ दूर स्थित प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को सर्वप्रथम आचार्यश्री ने जलपाईगुड़ीवासियों पर अपनी विशेष कृपा बरसाते हुए अपने श्रीमुख से श्रद्धालुओं सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) प्रदान की और उन्हें देव, गुरु और धर्म के प्रति यावज्जीवन के लिए श्रद्धा के समर्पण का संकल्प करवाया। आचार्यश्री ने विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि संवत्सरी का उपवास और शनिवार को सायं सात से आठ बजे के बीच सामायिक करने की भी प्रेरणा प्रदान की।
मंगल प्रेरणा के उपरान्त आचार्यश्री ने अष्टम आचार्यश्री की कालूगणी के समय की दीक्षित शासन श्री साध्वी मानकुमारीजी का 20 जनवरी को बीदासर में प्रयाण हो गया। उनकी स्मृतिसभा समायोजित करते हुए आचार्यश्री ने उनकी जीवनवृत्त पर प्रकाश डाला। साध्वीप्रमुखाजी ने उनके स्वभाव आदि के बारे में अवगति प्रदान की और उनकी आत्मा के लिए आध्यात्मिक मंगलकामना की।
इसके उपरान्त आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को अपनी मंगलवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आदमी कभी शरीर छोड़नी पड़े तो छोड़े, किन्तु धर्मशासन को नहीं छोड़ने का प्रयास करना चाहिए। संघ के प्रति अटूट निष्ठा रखने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने लोगों को उत्प्रेरित करने के लिए ‘छूटे तो यह तन छूटे’ गीत का आंशिक संगान भी किया। साधु-साध्वियों सहित श्रावकों में भी संघ-संघपति के प्रति निष्ठा का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा संघ मिलना भाग्य की बात है। आचार्यश्री ने ‘हमारे भाग्य बड़े बलवान, मिला यह तेरापंथ महान’ गीत का भी आंशिक संगान किया।
चतुर्दशी तिथि होने के कारण आचार्यश्री के साथ आज गुरुकुलवास के संपूर्ण साधु-साध्वी और समणीवृन्द उपस्थित थे। आचार्यश्री हाजरी पत्र का वाचन किया, तो मुनिश्री दिनेशकुमारजी की अगुवाई में समस्त साधु-साध्वी तथा समणी समुदाय ने लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री ने गणतंत्र दिवस के मौके पर अपना उद्बोध प्रदान करते हुए कहा कि आज का दिन भारत के लिए महत्त्वपूर्ण है। नागरिकों को मर्यादाओं के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए।
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Om Arham
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