गंगाषहर। 13 फरवरी। आचार्य तुलसी मन, वचन व काया के तीन योग से बोलते थे, वो प्रखर वक्ता एवं अनुषास्ता थे। यह बात मुनिश्री पियूष कुमार ने नैतिकता का शक्तिपीठ पर आचार्य तुलसी की मासिक पुण्यतिथि पर आयोजित संगोष्ठियों को सम्बोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि किसी निमित्त से ही कोई कार्य होता है। आचार्य तुलसी शान्ति प्रतिष्ठान ने मासिक पुण्यतिथि को निमित्त बनाकर संगोष्ठीयों का क्रम शुरू किया उससे आचार्य तुलसी के विचारों का सम्प्रेषण जन जन तक होने लगा है। मुनिश्री ने कहा कि शक्तिपीठ की प्राण प्रतिष्ठा आचार्य तुलसी के सपनों से जुड़े कार्यों के सम्पादन से रही। उन्होंने कहा कि व्यक्ति चला जाता है पर स्मृतियां, उनके आयाम कायम रहते हैं। मुनिश्री पियूष कुमार ने कहा कि तुलसी की केवल व्यक्ति के रूप में स्मृति नहीं करें उनके विचारों को, अवदानों को जीवन में आत्मसात् करना आवष्यक है, आचरण में लागू करना होगा। संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए मुनिश्री विमल विहारी ने कहा कि डॉ भीमराव अम्बेडकर आचार्य तुलसी से बहुत प्रभावित थे, वो जैन धर्म स्वीकार करना चाहते थे परन्तु उनकी आचार्य तुलसी से मुलाकात नहीं हो सकी। उन्होंने कहा कि आचार्य तुलसी ने जीवनभर काम करके गण के भण्डार को भरने के संकल्प को बखूबी निभाया। नैतिकता की अलख जगाने के लिए यायावरी जीवन जीकर संदेष देते रहे। उन्होंने कहा कि मेरे जीवन का कल्याण उन्होंने ही किया।
संगोष्ठी का विषय परिवर्तन करते हुए अध्यक्ष जैन लूणकरण छाजेड़ ने कहा कि आचार्य तुलसी कथनी करनी एक जैसी बने इस पर बल देते थे। उन्होंने कहा कि नैतिकता का शक्तिपीठ पर प्रेक्षाध्यान का नियमित क्रम प्रारम्भ किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हम आचार्य तुलसी को वापस तो नहीं ला सकते परन्तु उनके बताए मार्ग पर चलकर उनके विचारों को जिवन्तता प्रदान कर सकते हैं।
महामंत्री जतनलाल दूगड़ ने दोनों मुनिवरों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा कि आपके श्रम एवं निष्ठा से यह गतिविधि निरन्तर चल रही है। आगन्तुक श्रावक समाज के प्रति भी आभार ज्ञापित किया। इस संगोष्ठी में डॉ पी.सी. तातेड़, अमरचन्द सोनी, प्रज्ञा नौलखा, मनोहर नाहटा, नयनतारा छलाणी सहित समाज के अनेक गणमान्य श्रावक समाज उपस्थित हुआ।
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