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सक्षम रहते सेवाधर्म कर लेना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

- 153वें मर्यादा महोत्सव का शांतिदूत के श्रीमुख से मंगल शुभारम्भ -
- विक्रम संवत् 1859 के मर्यादा पत्र की तिथि के अनुसार मर्यादा महोत्सव के शुभारम्भ की हुई घोषणा -
- तेरापंथ धर्मसंघ के सात सेवाकेन्द्रों पर सेवार्थियों के नामों का आचार्यश्री ने किया मनोनयन -
- साध्वियों की ओर से साध्वीश्री जिनप्रभाजी और साधुओं की ओर से मुनिश्री कुमारश्रमणजी ने सेवा के लिए किया अर्ज -
आचार्यश्री महाश्रमणजी

          01 फरवरी 2017 राधाबाड़ी, जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) (JTN) : पश्चिम बंगाल की धरा पर पहली बार और जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के 153वें मर्यादा महोत्सव का मंगल शुभारम्भ जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के श्रीमुख से नमस्कार महामंत्र के द्वारा हुआ। मर्यादापुरुष आचार्यश्री ने मर्यादा पत्र में अंकित तिथि के अनुसार मर्यादा महोत्सव के शुभारम्भ की घोषणा की। और इसी वाक्य के साथ 153वें मर्यादा महोत्सव का आगाज को गया। मर्यादा महोत्सव के प्रथम दिन तेरापंथ धर्मसंघ के सात सेवाकेन्द्रों पर सेवार्थियों का मनोनयन किया। साध्वियों की ओर से साध्वी जिनप्रभाजी और साधुओं की ओर से मुनिश्री कुमारश्रमणजी ने सेवा का अवसर प्रदान करने की आचार्यश्री से अभ्यर्थना की। इस मौके पर आचार्यश्री के दर्शन को पश्चिम बंगाल के आदिवासी कल्याणमंत्री श्री जेम्स कुजूर भी उपस्थित थे। आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद लिया और अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने स्वरचित गीत का संगान किया। साध्वी समुदाय सहित विभिन्न सभाओं और संस्थाओं ने आचार्यश्री के चरणों में अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। 
पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी की धरा पर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में पहली बार आयोजित होने वाले 153वें मर्यादा महोत्सव का शुभारम्भ दोपहर लगभग 12.30 बजे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, अखंड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी के श्रीमुख से नमस्कार महामंत्र से हुआ। आचार्यश्री ने तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य आचार्यश्री भिक्षु का स्मरण करते हुए उनके द्वारा विक्रम संवत 1859 प्रतिपादित मर्यादा पत्र की तिथि को स्थापित कर मर्यादा महोत्सव के शुभारम्भ की घोषणा की। मर्यादा महोत्सव के आगाज होते ही पूरा वातावरण धर्मसंघ के जयघोष से गूंज उठा। 
इस धर्मसंघ के सेवा की विशेष महत्ता को अक्षुण बनाए रखने के लिए सर्वप्रथम साध्वियों की ओर से साध्वीश्री जिनप्रभाजी ने अपनी धर्मसंघ की सेवा की प्रधानता का वर्णन करते हुए समस्त साध्वियों के साथ आचार्यश्री से सेवा का अवसर प्रदान की प्रार्थना की। इसके उपरान्त उपस्थित समस्त साध्वीवृन्द ने गीत का संगान भी किया। साधुओं की ओर से मुनिश्री कुमारश्रमणजी ने समस्त साधुओं के साथ आचार्यश्री से सेवा का अवसर प्रदान करने की अर्जी की। मुख्यनियोजिकाजी ने सेवाधर्म के महत्ता को वर्णित किया। ,
इस मौके पर उपस्थित विशाल जनमेदिनी को आचार्यश्री ने अपनी अमृमयी वाणी से अभिसिंचन प्रदान करते हुए कहा कि जब तक शारीरिक रूप से सक्षमता हो धर्म का समाचरण करने का प्रयास करना चाहिए। जब तक बुढ़ापा पीड़ित न करे, व्याधियां घर न बना ले, इन्द्रियां साथ न छोड़ दे, तब तक सेवाधर्म कर लेने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को सेवा की भावना को मन में रखने का प्रयास करना चाहिए। तेरापंथ धर्मसंघ में वृद्ध, अक्षम और रुग्ण साधु-साध्वियों की सेवा के लिए सेवाकेन्द्रों स्थापना की गई है। चतुर्थ आचार्यश्री श्रीमज्जयाचार्य द्वारा आरम्भ की गई इस व्यवस्था से आज कितने-कितने साधु-साध्वियां सेवा प्राप्त करते हैं और चित्त की समाधि प्राप्त कर अपनी आत्मा का कल्याण करते होंगे। सर्वप्रथम आचार्यश्री जयाचार्य ने लाडनूं में सेवाकेन्द्र का शुभारम्भ किया था। लाडनूं जिसे तेरापंथ धर्मसंघ की राजधानी के रूप में स्वीकृत किया गया है। जो परमपूज्य आचार्यश्री तुलसी के जन्म से जुड़ा है। पांच साध्वीसेवा केन्द्रों और दो साधु सेवाकेन्द्र सहित कुल सात सेवाकेन्द्रों पर सेवार्थियों का मनोयन क्रमशः साध्वियों के सेवाकेन्द्र लाडनूं में साध्वीश्री पावनप्रभाजी, गंगाशहर साध्वीश्री गुणमालाजी, साध्वी कमलप्रभाजी (बोरज), बीदासर समाधि केन्द्र पर साध्वीश्री बसंतप्रभाजी, साध्वीश्री पुण्यप्रभाजी, श्रीडूंगरगढ़ साध्वीश्री कनकश्री (लाडनूं), साध्वीश्री प्रसमरतिजी, राजलदेसर के लिए साध्वीश्री तिलकश्रीजी तथा दो साधु सेवाकेन्द्रों क्रमशः छापर और जैन विश्वभारती लाडनूं के लिए मुनिश्री तत्त्वरुचिजी और मुनिश्री स्वस्तिककुमारजी के सिंघाड़े को नियुक्ति प्रदान की। 
इस मौके पर आचार्यश्री ने स्वरचित गीत का संगान किया। इस मौके पर पश्चिम बंगाल सरकार के आदिवासी कल्याणमंत्री श्री जेम्स कुजूर ने आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त कर अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए आचार्यश्री का अपने राज्य में स्वागत अभिनन्दन किया। साथ ही आचार्यश्री द्वारा प्रणित अहिंसा यात्रा और उसके उद्देश्यों की सराहना करते हुए कहा कि आपकी यह यात्रा जन-जन के लिए कल्याणकारी है। हम बंगालवासी सौभाग्यशाली हैं जो आप जैसे गुरु के दर्शन और श्रवण का मौका प्राप्त हो रहा है। आपसे प्रेरणा प्राप्त कर बंगालवासियों के जीवन में अवश्य सुधार होगा, ऐसा मेरा विश्वास है। 
इस पुनीत मौके पर ज्ञानशाला सिलीगुड़ी के ज्ञानार्थियों ने श्रीचरणों में अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति अर्पित की। आचार्यश्री ने ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों को बालमुनि या बालसाध्वी बनने के भाव को जागृत करने की विशेष अभिप्रेरणा प्रदान की। तेरापंथ समाज सिलीगुड़ी, तेरापंथ महिला मंडल ने भी अपने-अपने गीत के माध्यम से आचार्यश्री की अभ्यर्थना की। इस मौके पर मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मन्नालाल बैद, तेरापंथी सभा सिलीगुड़ी के अध्यक्ष श्री हेमराज चोरड़िया, तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के महामंत्री श्री नवीन पारख, वर्धमान ट्रस्ट के श्री रतनलाल भंसाली ने भी अपनी भावनाओं के श्रद्धासुमन श्रीचरणों में अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया। 


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