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अपना - अपना स्वाभाव : आचार्य महाश्रमण


          5 फरवरी 2017 राधाबाड़ी, सिलीगुड़ी (JTN) : जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी अपने मंगल प्रवचन में श्रद्धालुओं को अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि मोक्ष के अंग - ज्ञान, दर्शन, चारित्र ओर तप । ज्ञान के द्वारा आदमी पानी पदार्थों को जानता है । दर्शन के द्वारा श्रद्धा करता है । चारित्र से वह निर्गह करता है । तप से परिशोधन करता है । मोक्ष के यह चार अंग और इन चार अंगो वाला मार्ग है -  मोक्ष मार्ग । यह चर्तुरंग मार्ग है मोक्ष मार्ग । आत्मा हल्की भी बन सकती है भारी भी बन सकती है ।  
          आचार्यश्री जी ने कहा कि भगवती सूत्र में अठारह पाप बताए गए हैं । इन अठारह पापों का सेवन करने से अठारह पापों का आचरण करने से जीव गुरु बनता है, भारी बनता है,और गुरु बना हुआ जीव अधोगति में जाता है  । इन अठारह पापों से निवृत हो जाए तो वह आत्मा हल्की बनती है और वह आत्मा ऊर्ध्वगमन करती है । संसार का अतिक्रमण करना है मोक्ष में जाना है तो अठारह पापों का परित्याग करना होगा तभी आत्मा मोक्ष में जा सकेगी ।
          आचार्य श्री महाश्रमण मर्यादामहोत्सव प्रवास व्यवस्था के उपमंत्री सुरेंद्र जी चौरड़िया ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति प्रदान की ।तेरापन्थ महिला मंडल सिलीगुड़ी द्वारा चार  मंजूषा पूज्य प्रवर के समक्ष दिखाई ।परम पूज्य आचार्य श्री ने महती कृपा करके श्रावको के विशेष आग्रह पर राधाबाड़ी स्थित नव निर्मित तेरापन्थ भवन के प्रथम भवन का नाम "मर्यादा भवन " तथा द्वितीय भवन का नाम "मैत्री भवन" रखने की घोषणा की। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार जी ने किया।

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