आचार्यश्री महाश्रमणजी |
08 फरवरी 2017, सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) (JTN) : जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अपने प्रातः कालीन प्रवचन में श्रद्धालुओं को अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि पुण्य-पाप प्रत्येक होता है, अपना-अपना होता है। दुनियां में दो प्रकार की विचार धाराएं है, एक आस्तिक विचारधारा दूसरी नास्तिक विचारधारा। आस्तिक विचारधारा में आत्मा पुण्य-पाप, मोक्ष इनके अस्तित्त्व को स्वीकार किया गया है।पुर्नजन्म को मान्यता दी गई है, जबकि नास्तिक विचारधारा में कर्म का फल पुण्य-पाप, पुर्नजन्म, आत्मा का शास्वत अस्तित्त्व इन की बात सम्भवतः नहीं मिलेगी। चारवाक दर्शन जो वास्तविक विचारधारा का दर्शन है, आस्तिक विचारधारा में विश्वास रखने वाला व्यक्ति आत्मा के अस्तित्त्व को स्वीकार करता है। पुर्नजन्म को स्वीकार करता है और पुण्य-पाप रूप कर्मफल को स्वीकार करता है या इसे मानकर चलता है । अपना कर्म अपने को भोगना पड़ता है । इसलिए आदमी को पापकर्मों से बचने का प्रयास करना चाहिए, बेईमानी, धोकाधड़ी, चोरी, झुठ आदि से जितना संभव हो सके बचने का प्रयास करना चाहिए। तो हम सिलीगुड़ी में आए है तो आप स्वागत का अभिनंदन समारोह कर रहे है। यह आपका हमारे प्रति सदभावना पूर्ण व्यवहार ही मान ले। सिलीगुड़ी की जनता में खूब धर्म की भावना, नैतिकता की भावना रहे मंगलकामना।
आचार्य श्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्या जी ने श्रदालुओ को प्रेरणा दी।
इसके बाद नागरिक अभिनन्दन का कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। जिसमे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सभा के अध्यक्ष हेमराज जी चोरडिया, तेरापंथ महिला मंडल से श्रीमती कुसुम डोसी, मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति के अध्यक्ष मन्नालाल जी बैद, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष बच्छराज बोथरा, अणुव्रत समिति से सुरेंद्र धोडावत, तेरापंथ प्रोफेसनल फोरम से अक्षय पारेख, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ ट्रस्ट से सूरज कुण्डलिया, हार्डवेयर एसोसिएशन से सुरेश गुप्ता, टी ट्रेडर्स एसोसिएशन से नंद लाल अग्रवाल, महाराज अग्रसेन हॉस्पिटल से जगन संचेती, श्री पार्श्वनाथ जैन समाज से सुभाष चंद्र, दिगम्बर जैन समाज से प्रशन कुमार जैन, मारवाड़ी युवा मंच से विपुल शर्मा, सरदारशहर परिषद से प्रमोद दुग्गड़, महावीर इंटरनेशनल से रमेश जी बैद, सिलीगुड़ी वार्ड 8 से खुशबू मित्तल ने पूज्य प्रवर का स्वागत कर अपने भावनाओ की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन रतन लाल संचेती ने किया।
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Om Arham
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