11 फरवरी 2017, सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) (JTN) : जैन श्वेताम्बर धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अपने प्रातःकालीन उद्बोधन में फ़रमाया कि हमारे जीवन में माता पिता का प्रमुख योगदान होता है। इसके साथ ही गुरु का महत्वपूर्ण स्थान होता है। माता -पिता जन्म देने वाले और पालन - पौषण करने वाले होते है। गुरु द्वारा शिक्षा और संस्कार प्राप्त होते है। जो गुरु दया, लज्जा, वात्सल्य, ब्रह्मचर्य आदि का ज्ञान देते है और अनुसाशन करते है उनकी सतत पूजा होती है। ध्यान का आधार गुरु की मूर्ती हो सकती है लेकिन गुरु ही ध्यान के आलंबन है। गुरु के चरण पूजा के स्थान है। गुरु का इंगित पथ दर्शन का कारक है। हमें गुरु वचन को अमोघ बनाना, सफल बनाना, क्रियान्वित करना चाहिए। गुरु आज्ञा अविचारणीय है। आज्ञा को सम्पादित करना चाहिए। गुरु की कृपा मोक्ष का आधार है। गुरु की प्रसन्नता यदि शिष्य को मिल जाये तो वह शिष्य के लिए अमूल्य संपत्ति है। गुरु की असातना से मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। शिष्य गुरु के लिए आधार बन सकते है । जो हमारे आध्यात्मिक गुरु होते है उनके प्रति लज्जा की भावना , विनय की भावना रखनी चाहिए। पूज्य आचार्य श्री महाश्रमणजी के सानिध्य में मंगल भावना समारोह आयोजित किया गया । तेरापन्थ महिला मंडल ,तेरापन्थ युवक परिषद् , तेरापन्थ कन्या मंडल द्वारा गीतिका के माध्यम से भावो की अभिव्यक्ति दी। मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मन्नालाल बैद तथा नेपाल बिहार सभा के अध्यक्ष् श्री अभयराज पटवारी ने अपने विचारो की अभिव्यक्ति दी। मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति सिलीगुड़ी के अध्यक्ष एवम उनकी टीम ने नेपाल बिहार सभा के अध्यक्ष एवम उनकी टीम को ध्वज हस्तानांतरित कर दायित्व का हस्तानांतरण किया । कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनिश्री दिनेश कुमार जी ने किया ।
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