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भोजन में संयम करें - आचार्य श्री महाश्रमण

आचार्य श्री महाश्रमणजी


          12 फरवरी, बागडोगरा,(JTN), तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहें अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने मंगल प्रवचन में फरमाया कि भोजन हमारे जीवन के साथ अनिवार्यतया जुड़ा हुआ सा तत्व है । भोजन के बिना लंबे काल तक शरीर का टिक पाना प्राय मुश्किल लगता है । साधु हो या गृहस्थ अगर जीवन जीना है, शरीर को टिकाना है तो भोजन आवश्यक होता है । प्रकृति का कोई नियम है कि हमे खाना पड़ता है । भोजन क्यों करना चाहिए और जीवन का उद्देश्य क्या है तो शास्त्रों में कहा गया है कि पूर्व कर्म का श्रेय  करने के लिए इस देह को धारण करना चाहिए । शरीर के द्वारा साधना की जा सकती है । धर्म का आध्य साधन शरीर है तो भोजन तो लेना होता है । लेकिन भोजन में संयम रखना चाहिए । भोजन साधना की दृष्टि से घातत्व है और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी भोजन का संयम अच्छा रहता है । 
संयम पोषण के लिए साधु का भोजन होना चाहिए । गृहस्थ को भी भोजन में संयम रखना चाहिए । साधु को तो विशेष ध्यान देना चाहिए कि भोजन हितकर होना चाहिए । स्वास्थ्यनुकूल होना चाहिए और  साधनानुकूल होना चाहिए । हितकर भोजन भी सिमित होना चाहिए। रीत बेईमानी का भोजन आदमी को नही करना चाहिए । ईमानदारी का भोजन निर्दोष हो सकता है ।भोजन करने में कभी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए । भोजन करते समय शांति भी रहनी चाहिए । आदमी भोजन में अगर जल्दबाजी नही करेगा तो उसके कुछ संयम ऐसे ही हो जायेगा ।  भोजन को चबा - चबा कर खाने से उसका संयम भी होता है । भोजन करने में राग - द्वेष के भाव नही आना चाहिए और न ही भोजन की निंदा करनी चाहिए साथ ही भोजन में संयम होना चाहिए । उनोदारी आदि का अभ्यास हमे करना चाहिए । तो वह हमारे साधना के हिसाब से भी और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अच्छा हो सकता है ।




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