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भाषा संयम आवश्यक है : आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमणजी


            13 फरवरी 2017, नक्सलबाड़ी (पश्चिम बंगाल) (JTN), परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ बागडोगरा से लगभग 13 किमी का विहार कर नक्सलबाड़ी पधारें।
          तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अपने प्रातः कालीन उद्धबोधन में फरमाया कि आदमी के जीवन में भाषा का भी महत्वपूर्ण स्थान है। विचार विनर्म का सशक्त माध्यम भाषा बनती है। भाषा वाचिक मौखिक भी होती है और लिखित भी होती है। वाचिक भाषा का महत्व है और लिखित भाषा का अपना महत्व है। बोली हुई बात को आदमी भूल जाए या अस्वीकार भी कर ले। लिखी हुई अगर बात हो उसका प्रमाण ज्यादा होसकता है। सम्भवतः लिखित बात से भी ज्यादा प्रमाण वीडियो आदि में बोली हुई भाषा का और ज्यादा हो सकता है। लिखित में भी कुछ हेराफेरी या अक्षर इधर उधर करदे। पर वीडियो में बोली हुई भाषा का तो सम्भवतः कम ही परिवर्तन का आधार है। भाषा एक साधन है अपने विचार को बताने का, अभिव्यक्त करने का। भाषा में दोष भी हो सकते है और भाषा में गुण भी हो सकते है। हित भाषा बोलनी चाहिए। गुण और दोष दोनों को जानकार भाषा का उपयोग करना चाहिए। दोषो का वर्जन करना चाहिए। भाषा में संयम रखना चाहिए। हम भाषा के गुणों और दोषो को जानकर दोषो का वर्जन करने का प्रसाय करे।







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