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धर्म का मूल विनय - आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमणजी


          16 फरवरी 2017, धुलाबाड़ी (नेपाल) (JTN) : शान्तिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने मुख्य प्रवचन में उपस्थित जन मेदनी को सम्बोधन प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्रकार ने कहा है कि धर्म का मूल 'विनय' है । जैसे वृक्ष होता है उसके फल, फूल,स्कन्ध कई चीज़े होती है। शाखा, प्रशाखा, परंतु उन सबका मूल आधार जड़ है, इसी प्रकार धर्म का आधार,धर्म का मूल 'विनय' है और धर्म की अंतिम निष्पति फल मोक्ष है। 
          'विनय' के द्वारा आदमी श्रुत को भी प्राप्त कर सकता है विनयशील इन्सान में और भी कई गुण समाहित हो सकते है। पूज्यवर ने आगे कहा कि 'विनय' श्रद्धा का भाव है, हमारी श्रद्धा वीतराग आत्मा के प्रति हो, हमारी श्रद्धा देव, गुरु, धर्म के प्रति हो। सम्यक्त्व दीक्षा में देव, गुरु और धर्म के प्रति श्रद्धा का समर्पण किया जाता है। हमारे देव वीतराग, राग और द्वेष से मुक्त अर्हंत भगवान महावीर थे। भगवान महावीर हमारे आराध्य देव है, धर्म के देव है, उनके प्रति श्रद्धा, गुण के प्रति श्रद्धा, वर्तमान में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के जो आचार्य है, वे गुरु के रूप में स्वीकार किये जाते है, जो गुरु त्यागी है और संघ के नायक है, उनके प्रति श्रद्धा परम सम्मान का भाव और धर्म के प्रति श्रद्धा, विनय, वीतराग जिनेश्वर के द्वारा जो प्रणत धर्म है, उसके प्रति श्रद्धा होनी चाहिए। 
          वीतराग प्रभु कभी झुठ नहीं बोलते इसलिए वो जो बोले वही सत्य निसंक है जो वीतराग ने बताया है। परम पूज्य गुरुदेव ने आगे कहा कि यथार्थ के प्रति श्रद्धा हो, जो सच्चाई है चाहे वह कहीं पर हो, सच्चाई के प्रति हमेशा सम्मान का भाव ,विनय का भाव होना चाहिए।
          'विनय' का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है, सच्चाई के प्रति हम सब प्रणत रहें, सच्चाई है जहाँ अच्छाई है वहां, सच्चाई नहीं जहाँ अच्छाई भी नहीं, या अच्छाई की कमी है। 
           परम पूज्य गुरुदेव ने सच्चाई के बारे में बताते हुए कहा कि दुनियां में विभिन्न ग्रन्थ है, विभिन्न पंथ है, विभिन्न संत है जहाँ भी सच्चाई है उसके प्रति हमारे मन में सम्मान का भाव रहना चाहिए। अर्थात दृष्टिकोण सम्यक् दर्शन होता है, सम्यक्त्व दीक्षा लेना भवसागर को पार करने की और प्रयास करना होता है। अनन्त-अनन्त जन्म हमारी आत्मा ने कर लिए यह सिद्धांत है, अब वो जन्म-मरण की परम्परा संकुचित हो जाए, संक्षिप्त हो जाए, मोक्ष जाने का छोटा और सीधा रास्ता मिल जाए, उसके लिए सम्यक्त्व दीक्षा का महत्व होता है । 
          'विनय' एक ऐसा गुण है जिसमे श्रद्धा निहित है, सम्मान का भाव,भक्ति का भाव निहित है। अरहंतों के प्रति गुरु और धर्म के प्रति हमारे मन में भक्ति का भाव होना चाहिए। 
          विद्या विनय से शोभित होती है, विद्या के साथ उदंडता हो तो वो विद्या शोभित नहीं होती है। 'विनय' एक ऐसा तत्त्व है जिससे आदमी को ज़िन्दगी में अच्छापन प्राप्त हो सकता है, सफलता मिल सकती है, और जो विनयशील होता है उसमें अभय का भाव प्राप्त होता है। 
          पूज्यवर ने अहिंसा यात्रा के 3 उद्देश्यों के बारें में बताते हुए कहा कि मैत्रीपूर्ण सदभाव से रहें, नैतिकता को जीवन में रखें और नशामुक्त जीवन जिएं । 
          सुमन सेठिया एवं अणुव्रत समिति के अध्यक्ष रमेश कुमार जी बोथरा ने सुन्दर गीतिका गाई। सायरदेवी बरमेचा तथा ज्ञानशाला संयोजिका मधु नाहटा ने अपने विचार रखे। ज्ञानशाला के बच्चों ने सुन्दर प्रस्तुति दी। महिला मंडल की सदस्याओं ने पूज्यवर को संकल्प भेंट किए।








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