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मोह-ममता का परित्याग कर संसार समुद्र को पार करें : आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमणजी

          18 फरवरी 2017, ठाकुरगंज (बिहार), (JTN) : परम श्रद्धेय आचार्य श्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ नेपाल से पुनः भारत के बिहार प्रान्त के ठाकुरगंज पधारे।
           यहाँ उपस्थित श्रद्धालुओं को अपने मुख्य प्रवचन में सम्बोधित करते हुए पूज्य गुरुदेव ने फरमाया की शरीर एक प्रकार की नोका है,जीव को नाविक कहा जाता है। संसार जन्म मरण की परम्परा एक अरणव है।समुद्र है जिसे महर्षि तर जाते है, शरीर को नोका कहा गया। नोका एक साधन है, वाहन है जिसमे बैठकर मनुष्य एक किनारे से दूसरे किनारे तक पहुँच सकता है। पानी को पार कर सकता है। नोका की उपयोगिता है। यह संसार जन्म मरण की परम्परा भी एक सागर है, अपार समुद्र है यानी अनंत काल से हमारी आत्मा संसार में भ्रमण कर रही है।  संसार समुद्र के बारे में बताते हुए पूज्य गुरुदेव ने कहा की भगवान् एक महर्षि थे वे संसार सागर को पार कर गए, तर गए और चौबिसवे तीर्थंकर वर्तमान अवसर्पिणी प्रस्तुत भरत क्षेत्र में अंतिम तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी हुए। वर्तमान में जैन शासन भगवान् महावीर से सम्बन्ध है और जैन शासन में आज भी कितने कितने साधक साधना करते है। संसार समुद्र को मानो पार उतरने का प्रयास करते है। और सर्दी गर्मी आदि परिस्थितियों को सहन करते है। साधू के लिए अपेक्षा है परिषह विजेता बने। हम लोग सवेरे नेपाल में थे और अभी बिहार में है। पूज्यवर ने कहा की नेपाल भगवान् बुद्ध से जुडी हुई भूमि है। और जैन शासन के भद्रबाहु स्वामी की तपोभूमि साधना भूमि कहा जा सकता है। और आज हम बिहार भूमि पर आये है। बिहार भगवान् महावीर से जुडी हुई भूमि है। भारत के महान संत पुरुष महर्षि भगवान् महावीर थे। नेपाल भारत ये तो भूमि की बात है। संतो के क्या भारत क्या नेपाल वे तो सबके है। "वसुदेव कुम्बकम" सारी धरती ही अपना कुटुम्भ है। छोटी छोटी बातों में यह मेरा यह पराया है। छोटी सोच वालो का चिंतन होता है। उदार चिंतन वालो की तो पूरी धरती ही अपनी होती है। साधू को फक्कड़ होना चाहिए। कोई मांग नहीं कोई दबाव नहीं वो किसी से क्युं दबेगा वो प्रभु से दबेगा।जो अकिंचन होता है वह तीन लोक का नाथ बन जाता है।आपके पास जितनी संपत्ति है आप उतने के मालिक हो सकते है पर भगवान् महावीर ने सब कुछ त्याग दिया था और मानो वो तीन लोक के नाथ बन गए थे। महर्षि,महान ऋषि जो परिग्रह के त्यागी होते है।मोह-ममता के परित्यागी ऐसे व्यक्ति संसार समुद्र से तर सकते है।भगवान् महावीर जो महान त्यागी पुरुष थे जिन्होंने कषायों का त्याग कर दिया।और ये बिहार उनकी जन्मभूमि,साधना भूमि है।पूज्यवर ने आगे कहा की साधू को निर्मोही होना चाहिए।संत पुरुष संसार को तर सकते है।संसार समुद्र तरने को नोका की अवश्यकता होती है।इस शरीर के द्वारा तपस्या हो सकती है, साधना हो सकती है।और शरिर को धारण कर पूर्व कर्मो को क्षीण करने के लिए इस देह को धारण करना चाहिए।हमारा जीवन संसार समुद्र तरने में काम आजाये।यह जीवन नोका है इसके द्वारा हम त्याग तपस्या से तरने का प्रयास करे।यह मानव जीवन बीत रहा है।इस मानव जीवन के द्वारा हम संयम,तप से तरने का प्रयास करे।












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