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"ज्यादा नींद बुरी बात" : आचार्य श्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमणजी

          25 फरवरी 2017, बैरगाछी (बिहार) (JTN) : अहिंसा यात्रा प्रणेता शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी प्रातः जोकीहाट से विहार कर मध्य विद्यालय ,बैरगाछी पधारे। गुरुदेव ने उपस्थित जनमैदिनी को अपने मुख्य प्रवचन द्वारा संबोधित करते हुए कहा कि शास्त्रकार ने चार बातें एक श्लोक में बताई है, तीन निषेध की भाषा में एवं एक उपदेश की भाषा में। निषेध की भाषा में बताई गई पहली बात है- नींद को बहुमान न दें। हम सभी के लिए यह सन्देश है कि निद्रा ज्यादा मत लो । अपेक्षानुसार निद्रा लेना आवश्यक है किंतु यदि निद्रा की आवश्यकता न हो तो निद्रा से मुक्त रहना चाहिए। पूज्य प्रवर ने निद्रा पर अपने विचार रखते हुए कहा कि मुनि को निद्रा विहीन रहना चाहिए । समयानुसार सोना ठीक है किंतु असमय सोना उचित नहीं। समय पर बोलना उचित है ,असमय बोलना उचित नहीं। एक साधक के लिए सभी कार्य  ( खाना,चलना सोना,बोलना आदि) समय पर करना उचित है । असमय ये सभी कार्य साधक के लिए उचित नहीं। पूज्य प्रवर ने आगे कहा कि शास्त्रकार ने हमें एक सन्देश दिया है ज्यादा निद्रा में नहीं रहने का  ,यदि ज्यादा निद्रा में रहोगे तो स्वाध्याय में बाधा आएगी,अच्छा कार्य नहीं कर पाओगे। जरुरत है उतनी ही नींद लो जितनी आवश्यक है। दूसरी बात संप्रहास का विवर्जन करो।ज्यादा हंसी - मज़ाक अच्छा नहीं ,कभी कभी हंसी मजाक में असत्य भाषा दोष लग जाता है और कई बार अप्रिय बातों से विद्वेष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसलिए हमें विवेक में रहकर हंसी मजाक करना चाहिए। शास्त्रकार ने हमें प्रतिबोध दिया है संप्रहास का विवर्जन करो। तीसरी निषेधात्मक सन्देश की बात यह है कि भोगात्मक कथा में और परस्पर की बातों में जो आवश्यक नहीं है उसमें रमण नहीं करना चाहिए। आनंद नहीं लेना चाहिए। ऐसी बातें जो संयम को हानि पहुंचाने वाली उनसे बचाना चाहिए। वार्ता में भी संयम होना चाहिए।
          पूज्यवर ने आगे कहा कि स्वाध्याय में सदा रत रहो । हमें स्वाध्याय में रहना चाहिए ।  हम अच्छे संस्कारों को बनाए रखने का और निर्मित करने का, पृष्ठ करने का प्रयास करें यह भी काम्य है ।
          (हाज़री) चतुर्दशी के अवसर पर मर्यादा पात्र का वाचन करते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि जहाँ धर्मसंघ है तो वहां आचार सबंधी मर्यादा व्यवस्था या नियम है तो संगठन सबंधी भी नियम है, मर्यादा व्यवस्था है । संगठन में रहने वाले व्यक्ति को संगठन की मर्यादा का भी सम्मान रखना चाहिए और संगठन हमारा अच्छा रहे , निर्मल रहे, इस सन्दर्भ में प्रयास भी करना चाहिए । संगठन में कहीं मलिनता लगे तो उसे हटाने का प्रयास करना चाहिए ताकि संगठन अच्छा रह सके, संगठन का विकास कर सके, उन्नति कर सकें । आत्मा का उत्थान कर सकें , क्योंकि हमारा संगठन तो धर्म से , अध्यात्म से जुड़ा हुआ संगठन है और हमारा सौभाग्य ही माने जो ऐसा धर्मसंघ ,संगठन हमें प्राप्त है । "हमारे भाग्य बड़े बलवान, मिला यह तेरापंथ महान" गीत का संगान करते हुए पूज्यवर ने कहा कि हम साधना अच्छी करें, साधू के लिए यह ध्यातव्य है कि हमारा समय अच्छे कार्यों में बीते जिससे हमारा कल्याण हो सके । 
          स्मृति सभा - हाज़री वाचन के पश्चात पूज्यवर ने 'शासन श्री साध्वी शशिप्रभा जी' की स्मृति सभा आयोजित कर चार लोगस्स का ध्यान कराया । 
          सुनील कुमार वर्मा प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय अररिया बस्ती ने पूज्यवर के स्वागत में अपने विचार व्यक्त किए । कार्यक्रम का संचालन मुनिश्री दिनेश कुनार जी ने किया ।











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