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समय का अंकन करें : आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमण

          28 फरवरी, फारबिसगंज। अहिंसा यात्रा प्रणेता महातपस्वी शांतिदूत परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमणजी आज प्रात: माणिकपुर से लगभग 14 कि. मी. का विहार कर धवल सेना सह फारबिसगंज पधारे। फारबिसगंज श्रावक समाज ने अपने आराध्य का श्रद्धा भक्ति से भव्य जुलुस के साथ स्वागत अभिवंदन किया।  

          पूज्यप्रवर ने प्रात:कालीन प्रवचन में समय के महत्व को बताते हुए फरमाया - आर्हत वांग्मय में कहा गया है - खणं जाणाहि पंडिए । पंडित, तू क्षण को जान । घड़ी में सैकंड का सुइया आगे बढ़ता दिख रहा है, मानो क्षण क्षण बीत रहा है। सेकंड का सुइया मानो अवबोध दे रहा है कि किस प्रकार समय आगे बढ़ता जा रहा है। इस सुइये को तो फिर भी कोई रोक दे, घड़ी को बंद कर दे, पर समय को नहीं रोका जा सकता। ये सेकंड का सुइया तो सूचक मात्र है समय का, ये अपने आप में समय नहीं है। समय को रोकना किसी के वश की बात नहीं है। 

          पूज्यप्रवर ने काल के चक्र के सन्दर्भ में पद्य फरमाया - "ये चक्की चली काल की, कोई रोक ना सकी ।" ये काल की चक्की इस प्रकार चलती है कि इस चक्की या चक्र को आज तक कोई रोकने में समर्थ नहीं हुआ। समय अपनी गति से बढ़ता है। आदमी के लिए प्रतिबोध्य है - खणं जाणाहि पंडिए। पंडित वह होता है जो समय को पहचान लेता है, समय का मूल्यांकन करता है। समय के लिए उत्तराध्ययन में कहा गया - समयं गोयम मा पमायए । गौतम स्वामी के लिए संदेश कि समय मात्र का भी प्रमाद मत करो । वर्तमान में सौ वर्ष का आयुष्य परिपूर्ण होता है।  समय का अंकन करें और आत्मोत्थान की दिशा में आगे बढ़े ।




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