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त्याग परमसुख को प्राप्त करने का मार्ग है : आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमणजी

          26.03.2017, जदुआ वैशाली (बिहार) (JTN) : जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अखंड परिव्राजक आचार्यश्री अपनी श्वेत सेना के साथ धनुषी से लगभग सोलह किलोमीटर का विहार कर जदुआ स्थित होमगार्ड ट्रेनिंग सेंटर (बैरक) पहुंचे। 
आचार्यश्री ने यहां उपस्थित ग्रामीणों को जीवन में त्याग का महत्त्व बताते हुए कहा कि आदमी के जीवन में त्याग बहुत बड़ा महत्त्व होता है। दुनिया में राग भी चलता है तो त्याग भी चलता है। राग और त्याग दोनों का मार्ग अलग-अलग है। एक पूर्व है तो दूसरा पश्चिम। राग दुःख का मार्ग है तो त्याग परमसुख को प्राप्त करने का मार्ग है। दुनिया में राग के समान कोई दुःख नहीं और त्याग के समान कोई सुख नहीं हो सकता। त्याग को आचार्यश्री ने विवेचित करते हुए कहा कि पदार्थों के अभाव में यदि कोई किसी वस्तु या पदार्थ का उपयोग नहीं कर पाता तो उसे त्यागी नहीं कहा जा सकता। त्यागी वह होता है जिसके पास उपभोग के संपूर्ण साधन हों और वह उनसे मुंह मोड़ ले या उनका त्याग कर दे वह आदमी आदमी होता है। भगवान महावीर ने अपने जीवन में त्याग किया था। उनके पास संपूर्ण सुख-सुविधाएं और परिग्रहों का भंडार था, लेकिन उन्होंने उसका त्याग कर दिया। आदमी को भी अपने भीतर त्याग की चेतना को जागृत करने का प्रयास करना चाहिए। त्याग की चेतना के आदमी के जीवन में को परमसुख की प्राप्ति संभव नहीं। आदमी परिग्रहों का त्याग करने का प्रयास करे और अपने जीवन को संयमित बनाने का प्रयास करें तो सुखी बन सकता है। 
आचार्यश्री ने लोगों को अभिप्रेरित करते हुए कहा कि धन की प्राप्ति मंे आदमी को नैतिकता को बनाने रखने का प्रयास करना चाहिए। नैतिक तरीके से ईमानदारी और प्रमाणिकता के साथ आदमी अगर चंद रुपये भी कमाए तो वह उसके जीवन में फलीभूत हो सकता है। आदमी धन प्राप्ति के लिए पाप कर्मों से बचने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने लोगों को अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्यों के बारे में भी विस्तार से बताते हुए कहा कि यदि यह तीनों संकल्प भी आदमी अपने जीवन में अपना ले तो वह त्याग और संयम के पथ पर अग्रसर हो सकता है। भोग है तो आदमी के जीवन में योग भी चलना चाहिए। लक्ष्य का निर्धारण कर आगे बढ़ना आदमी को प्रगति के मार्ग पर ले जाने वाला बन सकता है। राग है तो आदमी को अपने जीवन में त्याग को भी बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। 
अंत में आचार्यश्री के आह्वान पर जदुआ गांव के ग्रामीणों ने आचार्यश्री के श्रीमुख से तीनों संकल्पों को स्वीकार किया और अपने जीवन को सफल बनानेे के लिए कृत संकल्पित हुए। 





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