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माया मृषा से बचे : आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमणजी

          02 फरवरी 2017, फुलकाहा, (JTN) : आर्हत वांग्मय में कहा गया है कि मेधावी अणु मात्र माया मृषा का भी विवर्जन करें । हम लोग अहिंसा यात्रा कर रहे हैं । जैन परम्परा के संत है और जैन धर्म जो भगवान महावीर से संबद्ध है । चौबीस तीर्थंकर जैन धर्म में बताये गए हैं । पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभ हुये और अंतिम तीर्थंकर इस अवसर्पिणी में , इस भरत क्षेत्र में भगवान महावीर हुए । आज से ढाई हजार वर्ष पहले भगवान महावीर हुए ऐसा बताया गया है और भगवान महावीर इस बिहार प्रांत से जुड़े हुए है जिस बिहार प्रांत में हमारा विहार हो रहा है, भ्रमण हो रहा है । कहाँ-कहाँ भगवान महावीर का पदार्पण इस बिहार प्रान्त में हुआ होगा अनेक स्थलों पर , अनेक अनेक जगहों पर , उसी बिहार भूमि पर अभी अहिंसा यात्रा हो रही है। जैन धर्म में अहिंसा पर बहुत ध्यान दिया गया है। "अहिंसा परमो धर्म:"। अहिंसा परम धर्म है । जैन साधुओं के लिए तो विधान है कि चलो तो भी ध्यान दो कोई चींटी, मकोड़ा पैर के नीचे न आ जाए । कदम कदम धरो तो देख देख धरो यानि कितना जीव हिंसा से बचने का निर्देश दिया गया है । रात में भोजन मत करो जैन साधुओं के लिए विधान है । रात में खाओ कोई जीव जंतु मर जाए तो , इसलिए रात में खाना मत खाओ , पानी भी मत पीओ । पानी पिएं उसमे कोई मच्छर आदि गिर जाए, मर जाए इसलिए न रात में पानी पीना , न भोजन करना । हम लोग मुख पर यह पट्टी लगाते है , मुखवस्त्रिका  है यह भी अहिंसा के लिए कि खुले मुँह बोलने से कहीं वायु के जीवों की हिंसा हो जाये। तो इसलिए पट्टी लगा कर रखो बोलो तो आवाज सीधी वायु में न जाए । अतः "अहिंसा परमो धर्मः" अहिंसा परम धर्म है ।
          संस्कृत में कहा गया -"अहिंसा पयसः पालीभूतान् नेम्यक प्रदानिय" । अहिंसा मानो जल है उसके आगे पाल के रूप में सत्य आदि अन्य व्रत होते हैं । हम साधुओं के मुख्य पांच नियम है - अहिंसा , सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य , अपरिग्रह ये पांच नियम है और छठा व्रत है रात्रि भोजन विरमण व्रत - रात को खाना नहीं खाना, पानी भी नहीं पीना, दवाई भी रात को नहीं लेना यह नियम है । 
          अहिंसा यात्रा में हम अनेक देशों में जा चुके हैं , दिल्ली से यह यात्रा 9 नवम्बर 2014 को शुरू हुई थी । पैदल चलना हमारे लिए  सामान्य सी बात है । दिल्ली से चलकर हरियाणा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान , बिहार आगे नेपाल चले गए नेपाल में भ्रमण किया , फिर बिहार , बंगाल, भूटान, मेघालय , नागालैंड, असम फिर बंगाल , अब बिहार प्रान्त में हैं आगे फिर झारखण्ड, उड़ीसा , तमिलनाडु, कर्णाटक, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश जैसे कई प्रान्त सामने है । संभावित कार्यक्रम है वहां का । इस यात्रा में हम तीन बातों का प्रचार कर रहे हैं - सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति । हम बता रहे है लोगो को कि आपस में सद्भावना रखो । जाति, संप्रदाय आदि को लेकर दंगा फसाद, मार काट हिंसा यह न हो । मैत्री भाव रहे । भ्रातृ भाव रहे । सौहार्द भाव रहे । मानव मानव से जाति आदि को लेकर घृणा न करे । यह सद्भाव का संदेश हम सुना रहे है। दूसरा सूत्र है - नैतिकता । जो भी काम करो उसमे ईमानदारी रखने का प्रयास करो, बेईमानी से बचने का प्रयत्न रखो । आदमी में सरलता होती है तो ईमानदारी रह सकती है । सरलता नहीं होती है तो झूठ को , छलना को मौका मिल जाता है । आदमी झूठ भी बोलता है, माया भी करता है , जितना संभव हो सके झूठ कपट से बचना चाहिए , सच्ची बात न कह सको, कहना उचित न हो तो मौन रह जाओ , हो सके तो झूठ से बचो । गीत में कहा गया - 

एक बार तो झूठ साच कर काम सार ले आपरो । 
मोड़ो बेगो फुट्यां सरसी घडो भरीज्यां पाप रो ।।
आ लखना स्यूँ आखिर आवे पाँती पश्चाताप है ।
कपटाई कर झूठ बोलणो जग में मोटो पाप है ।।
सत्यवादिता सधे न थांस्यु तो रहणो चुप चाप है ।
कपटाई कर झूठ बोलणो जग में मोटो पाप है ।।

          आदमी झूठ-साच यानि झूठ बोलकर भी अपना काम निकलना चाहता है , परन्तु पाप का घड़ा कभी फुट भी सकता है । पाप का घड़ा भर जाता है, कभी फुट भी सकता है । पुण्य का घड़ा भी फूटता होगा , कभी पाप का घड़ा भी फुट सकता है । पुण्य भी खुब हो गए हैं तो पुण्य का घड़ा भी फुटकर के पुण्य भी सामने आ जाते हैं तो पाप का घड़ा भी फुट सकता है , इसलिए आदमी यह ध्यान दे झूठ कपट जैसे पापों से बचने का प्रयास करे । "साच बरोबर तप नहीं, झूठ बरोबर पाप । जाके हृदय साच है तां हृदय प्रभु आप ।।" सच्चाई बहुत महत्वपूर्ण चीज है दुनिया में । 

          सच्चाई परेशान तो हो सकती है , सच्चाई के सामने संघर्ष आ सकते हैं , कष्ट आ सकते हैं परंतु सच्चाई परास्त नहीं होती । " सत्यमेव जयते नांहृतं" अंतिम विजय सच्चाई की । परम पूज्यगुरुदेव तुलसी ने अणुव्रत की बात बताई । अणुव्रत छोटे छोटे अच्छे नियम जीवन में आ जाएं , आदमी का जीवन कुछ पापों से बच सकता है । परम पूज्य आचार्य महाप्रज्ञ जी ने प्रेक्षाध्यान की बात बताई । आदमी ध्यान करें , राग द्वेष को हल्का करने का प्रयास करें , गुस्से को कम करने का प्रयास करें , शान्ति में रहे । तो मनुष्य के जीवन में झूठ , कपट , हिंसा जैसे पाप हल्क़े रहे  मानव अच्छा मानव बन जाता है । मानव लड़ाई , दंगा फसाद, झूठ, कपट धोखाधड़ी करे तो मानव कही दानव नहीं बन जाए , दानव नहीं बनना है, शैतान नहीं बनना है आदमी को अच्छा बनना चाहिए, अच्छा रहना चाहिए । तो हम दूसरी बात बताते हैं नैतिकता । जीवन में ईमानदारी का प्रयास रखो । दूकान में बैठो तो ध्यान रखो कि ईमानदारी रहे, ग्राहक भी बेईमानी न करे और दूकानदार खुद भी बेईमानी न करें , दोनों ही ईमानदारी का ध्यान रखे । 
          तीसरी बात बता रहे है लोगो को नशा मुक्ति । बीड़ी, सिगरेट , खैनी , गुटका, शराब जैसे नशीले पदार्थों का सेवन आदमी न करें , संयम रखें । नशा मुक्त जीवन हो । शराब जैसा नशा करके आदमी अपराध में भी जा सकता है । ड्राइवर ट्रक आदि को चलाने वाले नशा करके ट्रक चलाना शुरू कर दें पता नहीं कितनो का , खुद का नुकसान हो सकता है । नशीले पदार्थों की गिरफ्त में आदमी न आए ।
          सद्भावना , नैतिकता और नशामुक्ति इन तीन बातों का प्रसार प्रचार किया जा रहा है । आज फुलकाहा आये हैं , बिहार प्रान्त का यह क्षेत्र फुलकाहा । हमारे अनेक श्रद्धालुओं को यहाँ देखा है , कहाँ कहाँ से आये होंगे और वर्षों से यहाँ का क्षेत्र उनके रहने का क्षेत्र बना रहा है । छोटे छोटे गावों में लोग रहते है , आजीविका प्राप्त करते है, जनता की सेवा भी करते होंगे , यह बात ध्यान में रहे कि जीवन में धर्म है या नहीं । धन कमाया जा रहा है , धर्म की कमाई की जा रही है या नहीं । धन की कमाई होनी चाहिए तो धर्म की कमाई भी होनी चाहिए । यह धन की कमाई तो ठीक है , यहाँ काम आ जाये । आपके बेटों , पोतों के भी काम आ जाए ,उनके आगे भी काम आ जाए । धर्म ऐसी चीज है जो अगले जन्म में भी काम आ सकती है । धन आगे के जन्मों में काम आने वाला थोड़े ही है , धर्म आगे के काम आ सकता है । इसलिए संस्कृत में कहा गया - " कर्तव्यो धर्म संचयः" । आदमी को धर्म का संचय करना चाहिए । धर्म की कमाई करनी चाहिए । धर्म का घड़ा भरीजना चाहिए । बून्द बून्द से घट भरे । एक एक बून्द से घड़ा भर जाता है , यह आत्मा का घड़ा भी धर्म की बूंदों से भर जाए ऐसा प्रयास होना चाहिए । ठगी जैसे पाप न हो । परन्तु जो आदमी बुद्धिमान है , चतुर है या अपने आप को चतुर मानने वाले  हों वे ठगी का भी प्रयास कर लेते हैं । ठग लो , दुसरो को ठग लो मुझे ज्यादा पैसा मिल जाए और यह लोभ आदमी से क्या क्या पाप करा देता है । दो मित्र जा रहे थे कमाई के लिए । बारह वर्षों तक कमाई, धंधा किया । कमाई अच्छी हो गई, निश्चय किया कि गाँव में जाकर जो अर्जित धन है उसकी ड्यो पाँति कर लेंगे । वापिस आ रहे थे अपने गाँव । रुकते रुकते पैदल आ रहे थे । एक मित्र के मन में पाप आ गया कि गाँव पहुँचने के बाद तो आधी पाँति हो जायेगी, आधा ही मिलेगा मुझे , अगर मैं इसे मार दूँ तो सारा धन मुझे ही मिल जाएगा । एक मित्र के मन जो विचार आया वही विचार दूसरे के मन में भी आ गया कि मैं इसको मार दूँ तो सारा धन मेरे पास रह जाए । धन ने बड़ो धिक्कार है । धन को धिक्कार है जो धन आदमी से ऐसा पाप करा देता है । एक दूसरे को मारने की बात मन में आ जाती है । दोनों ने योजना बनाई एक दूसरे को मारने की । दोनों मित्र सो गए रात को, एक मित्र उठा, छुरा निकाला, पास में सोये मित्र के पेट में छुरा घोप दिया और खून का नाला सा बह गया । कुछ ही छणों में जिसके छुरा घोपा था वह तो  चिर निद्रा में सो गया । जीवन लीला समाप्त हो गई । मृत देह को कहीं फेंक दिया, इस तरह फेंका किसी को पता तक न चल जाए । वह मित्र सारा सामान इकठ्ठा करके आगे बढ़ा, भूख लग गई सोचा अब क्या खाऊं । सामान को देखा तो उसमें कुछ लड्डू पड़े थे, दूसरे मित्र के पास लड्डू थे । सोचा लड्डू खा लूँ, आगे जाकर भोजन कर लूंगा । रास्ते में एक जगह ठहरा, लड्डुओं को हाथ में लिया, दो तीन लड्डू खाये, थोड़ा आराम करने के लिए सोया मानो लंबे काल के लिए सो गया । वह जहर के लड्डू थे । दूसरे मित्र की योजना थी इसको जहर के लड्डू खिलाकर मार दूँगा । दोनों मर गए । यह धन उनके  क्या काम आया ? दोनों के ही धन काम नहीं आया और जीवन के जीवन समाप्ति को प्राप्त हो गए ।यह आदमी धन के लोभ में क्या क्या पाप कर लेता है । इसलिए आदमी अहिंसा परम धर्म की आराधना करने का प्रयास करे । लोभ ऐसा तत्व है जो आदमी से झूठ भी बुलवा देता है और हिंसा भी करवा देता है । जीवन में लोभ हमारा कम रहना चाहिए । " संतोषः परमं सुखम् , संतोष परम सुख है । यह एक लोभ कंट्रोल में रहे तो अनेक पापों से आदमी का बचाव हो सकता है । हमारे संत लोग जगह जगह जा रहे हैं । पैदल चल करके कितने कितने संत कितने कितने गाँवों को लाभ देने में सहयोगी बन रहे हैं और यह "धर कूंचा धर मजला" चलो चलो, चरैवेति- चरैवेति । आज यहाँ, कल वहां, परसों वहां आगे वहां, मानो रहना तो कम , प्रवास तो कम चलना ज्यादा । शेष काल में  होना है, हो रहा है । चलना भी तो तपस्या है, साधना है वर्ना इस वाहनो के युग में पैदल चलना विशेष बात है । इतने वाहन आस पास खड़े रहते है, पर यह वाहन संतो की यात्रा में कितने काम आते हैं ?  कितनी कारें संतों के बैठकर यात्रा करने के काम आती है ? एक भी आती है क्या ? अपवाद है कभी वो अलग बात है बाकि संतो के यह दो पैर काम आ रहे है । इनका बड़ा सहयोग है यह यात्रा करवा रहें है । चार पहियों वाली नहीं दो पहियों वाली , दो पाँवों वाली गाड़ी काम आ रही है । यह दो पाँवों वाली गाड़ी कहाँ से कहाँ पहुंचा रही है ।इन  दो पैरों का भी स्थूल भाषा में आभार मानना चाहिए संतो को कि कहाँ से कहाँ यह गाड़ी यात्रा करवा रही है । यह गाडी ठीक रहे यह अपेक्षा है पचास वर्ष के बाद भी, पचपन के बाद भी ,साठ पेंसठ, सत्तर के बाद तक यह गाडी ठीक रहे यह वांछनीय है । कही गाडी उत्तर न दे दे, गाडी की गति ज्यादा मंद न हो जाये , ठीक गति वाली यह गाडी रहे तो यह गाडी बड़ी सहयोगी बन सकती है धर्म का प्रचार प्रसार कराने में , यात्रा करने में । परम पूज्य  तुलसी ने इस गाड़ी से कितनी यात्रा की थी । कलकत्ता तक पधार गए थे । राजस्थान से कोलकाता और कोलकाता से राजस्थान । राजस्थान से कन्याकुमारी और कन्याकुमारी से राजस्थान । इस  गाड़ी से कितने पधारे और जीवन के साठ वर्ष पूरे होने के पहले पहले लंबी यात्राएं सम्पन्न कर दी थी । तो संतो के लिए यह बाहर की गाड़ियां फिलहाल काम नहीं आ रही है लगभग ये  दो पैरों वाली गाड़ी काम आ रही है । इस गाड़ी का संत लोग , हमलोग यथोचित्य ध्यान रखें । यह गाडी लंबे काल तक मजबूत ठीक रह सके और कार्यकारी रह सके । जनता को सन्देश है सद्भावना , नैतिकता , नशामुक्ति का । अच्छे संकल्प जीवन में आ जाते है तो आदमी का जीवन अच्छा बन जाता है और यह प्रभु का पंथ है, अध्यात्म का पंथ है संयम का पंथ है इस पंथ पर हम चलते रहे यह काम्य है ।
          पूज्य प्रवर की प्रेरणा से फुलकाहा की जनता ने अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार किया ।










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