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अच्छे संकल्पों की कमाई करें : आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमणश्री

          04 फरवरी 2017, घुरना, (बिहार) (JTN) : आर्हत वांग्मय में छः शब्दों का प्रयोग मिलता है । भगवती सूत्र, जो जैन आगमों में एक विशालकाय शास्त्र है । छः शब्द यह हैं - सामायिक , प्रत्याख्यान, संयम, संवर, विवेक, व्यूत्सर्ग और एक साधना का सार, साधना का मार्गदर्शन इन छः शब्दों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है । सामायिक - सम भाव की साधना , राग द्वेष मुक्ति की साधना, प्रियता-अप्रियता के भावों से मुक्त रहने की साधना । प्रत्याख्यान - आदमी छोड़े , गलत को छोड़े । एक एक अच्छा संकल्प , बुराई को छोड़ने का संकल्प का जीवन में आ जाता है , आदमी की आत्मा अच्छाई की ओर अग्रसर हो जाती है , आत्मा में अच्छापन आ जाता है। संयम की साधना - पृथ्वीकाय आदि की हिंसा से अपने आप को बचाना, इंद्रिय और मन का निग्रह करना, निवर्तन करना। संवर की साधना । विवेक - विशेष ओथ विवेक प्राप्त करना और व्यूत्सर्ग- शरीर के प्रति भी मोह छोड़ देना । बहुत सूंदर एक साधना का दिग्दर्शन कराया गया है । 
           हम लोग अभी अहिंसा यात्रा कर रहे हैं । जनता को कुछ प्रत्याख्यान की, संयम की बात बता रहे हैं । तीन बातों का प्रचार कर रहे हैं - सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति । एक गाँव में विभिन्न जातियों के लोग, विभिन्न धर्म संप्रदायों के लोग, विभिन्न राजनैतिक दलों से जुड़े हुए लोग और विभिन्न भाषा भाषी लोग भी हो सकते हैं । एक ही गाँव में कोई बंगाली भी मिल जाए, बिहारी भी मिल जाए, राजस्थानी मारवाड़ी भी मिल जाए, तो विभिन्न भाषा भाषी लोग भी मिल सकते हैं । यह भारत की अनेकता है ,विभिन्नता है जहाँ अनेक भाषा भाषी लोग मिलते हैं, अनेक धर्म संप्रदायों के लोग मिलते हैं, अनेक जातियां मिल जाती हैं । अनेकता में एकता भारत की विशेषता । भारत में अनेकता है परंतु एकता इस बात की कि हम सब भारतवासी भारतीय हैं यह एकता है । वतनी एकता है, एक देश के रहने वाले हैं, और आगे चलें तो सब मानव है, औऱ आगे चलें तो सब प्राणी हैं, संग्रहनय की ओर जाएँ तो एकता एकता एकता की दिशा में आगे बढ़ सकेंगे । व्यवहारनय पर ध्यान दें तो अनेकता अनेकता अनेकता विभिन्नता में आगे बढ़ सकेंगे । भारत में व्यवहारनय भी है और संग्रहनय भी है । व्यवहारनय की दृस्टि से देखें तो कितनी अनेकता, भिन्नता भिन्नता विभिन्नता और संग्रहनय की ओर से देखें तो सब भारतीय हैं, सब वतनिय एकता में हैं, राष्ट्रीय एकता में हैं । सद्भावना रहनी चाहिए । भिन्न भिन्न लोगों में आपस में दंगा फसाद, मार काट, हिंसा न हो, भाईचार हो । भातृभाव, मैत्रीभाव , सौहार्दभाव रहे । जहाँ हिंसा है वहां अशांति को बुलाया जाता है या मानो अशांति आ गई है । हिंसा विकास में भी बाधा है । अहिंसा है वहाँ शान्ति भी है और अहिंसा की स्थिति में विकास भी अच्छा हो सकता है । हिंसा से आदमी उपरत रहे, मैत्री भाव से युक्त रहे । हम सद्भावना की बात लोगों को बता रहे हैं कि आपस में मैत्रीभाव रखो । 
          परम् पूज्य गुरुदेव तुलसी ने अणुव्रत की बात कही । उनके गीत में भी है । अणुव्रत का गीत - 

मैत्री भाव हमारा सबसे प्रतिदिन बढ़ता जाए । 
समता, सहअस्तित्व, समन्वय नीति सफलता पाएं ।।
शुद्ध साध्य के लिए नियोजित मात्र शुद्ध साधन हो । संयममय जीवन हो ।।
नैतिकता की सुर सरिता में जन जन मन पावन हो, संयम मय जीवन हो ।।

           सद्भावना रहे, मैत्री भाव रहे और नैतिकता, ईमानदारी का प्रयास हो । आदमी झूठ और चोरी से जितना बच सके, जितना संभव हो सके बचने का प्रयास करना चाहिए । 
         तीसरी बात हम प्रचारित करते हैं वह है नशामुक्ति । बीड़ी, सिगरेट, खैनी, गुटका, शराब आदि नशीले पदार्थों का सेवन मत करो यह जनता को सन्देश उपदेश देते हैं । जिस आदमी के जीवन में सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति का संकल्प पुष्ट है तो मानना चाहिए जो छः बाते मैंने बताई - सामायिक, प्रत्याख्यान, संयम, संवर, विवेक, व्यूत्सर्ग वे कुछ अंशों में या उनका कुछ अंश जीवन में आया हुआ है । आदमी के जीवन में ओर कुछ भी आ जाए  पैसा आ जाये , पद आ जाए, प्रतिष्ठा आ जाए बड़ी बात तो हो सकती है , बहुत बड़ी नहीं एक अपेक्षा से । जीवन में संयम है, नैतिकता है , मैत्री भाव है तो मानना चाहिए कि जीवन में एक अच्छी बात आई हुई है । परम पूज्य आचार्य महाप्रज्ञजी इतने ज्ञानवान होने पर भी लोगों को सरल भाषा में बताने का प्रयास भी करते थे कि अहिंसक जीवन शैली हो और नैतिक मूल्यों का विकास हो । एक एक संकल्प जीवन में आ जाए जीवन अच्छा बन सकता है । एक कहानी या घटना आपको सुनाना चाहूँगा संकल्प के बारे में । कुछ संत लोग एक गाँव में गए । हम संत लोग व्याख्यान कथा करते हैं । रात्रि में सत्संग हुआ । गाँव के काफी लोग उसमे श्रोता के रुप में उपस्थित थे । संतो ने भजन ज्ञान सुनाया और बाद में कहा कुछ संकल्प ले सको तो लो । लोगों ने उसका भी प्रयास किया । कइयों ने शराब छोड़ दी , किसी ने बीड़ी छोड़ दी । एक युवक सामने बैठा था उसने कुछ भी संकल्प लेने की मनसा अभिव्यक्त नहीं की । संत ने कहा अरे बेटा तुम भी कुछ नियम ले लो । युवक बोला बाबाजी क्या नियम लूँ ? संत ने कहा शराब छोड़ दो । उसने कहा बाबाजी शराब तो छोड़ना मुश्किल है , आदत ऐसी लग गई है कि छोड़ना मुश्किल है । संत ने कहा चोरी कभी नहीं करना यह नियम ले लो । युवक में कहा बाबाजी चोरी तो मेरा पेशा धंधा है , उसीसे काम चलता है । तब संत ने कहा कि तुम झूठ बोलने का त्याग कर दो । थोड़ा सा ध्यान करने के बाद युवक बोला बाबाजी यह ठीक है मैं झूठ बोलना छोड़ सकता हूँ । संत के पास उसने जिंदगी भर झूठ बोलने का त्याग कर लिया , कहा चोरी तो कर सकता हूँ झूठ कभी नहीं बोलूंगा । झूठ और चोरी का तो मेल है , जैसे दाल और चावल का मेल है , दाल और चावल मिलाकर लोग खाते है वैसे झूठ और चोरी का भी मेल होता है । इसने कहा झूठ नहीं बोलूंगा यानि दाल खाऊंगा , चावल नहीं खाऊंगा । संत ने कहा ठीक है ध्यान रखना कभी  झूठ नहीं बोलना , युवक ने कहा ठीक है बाबाजी । वह चोर तो था ही । एक दिन उसने सोचा ओर तो कई हवेलियों में, घरों में, चोरी कर ली है अब तो मुझे उन्नति करनी चाहिए बड़ी जगह चोरी करूँ , राजमहल में जाऊं चोरी करने के लिए । एक रात्रि से वह घर से निकला राजमहल के लिए आगे बढ़ा । उस रात नगर का राजा वेश बदल कर के नगर में घूम रहा था । रात के करीब तीन बजे का समय , राजा उधर से आ रहा था सामान्य आदमी के वेश में और यह उधर जा रहा था । दोनो का मिलना हुआ तो राजा ने पूछा अभी कहाँ जा रहे हो । इसने सोचा झूठ तो बोलना नहीं है मुझे , कहा राजमहल जा रहा हूँ  । राजा ने पूछा - क्यों ? युवक ने कहा - चोरी करने के लिए । राजा ने सोचा लगता दिमाग से कोई विक्षिप्त आदमी है , कोई शराबी होगा , कोई पगाल होगा , भला चोरी करने वाला ऐसा थोड़े बोल देगा कि मै चोरी करने जा रहा हूँ , राजमहल में जा र्रह हूँ । फिर भी राजा ने उसका पता ले लिया । राजा उधर गया और चोर उधर गया । राजमहल में पहुंचा । चोर का भी भाग्य था , कई बार चोर का भी भाग्य काम करता है । पहरेदार खराट्टे भर रहे थे , नींद ले रहे थे , उसको मौका मिल गया आगे बढ़ने का । भण्डार तक चला गया । कुशल था चोरी करने में , भण्डार के ताले तोड़ दिए । अंदर गया , एक तिजोरी थी उसको खोला, उसमें एक डिबिया थी , उसने डिबिया को हाथ में लिया , डिबिया को खोला । उसमे चार चमकते हुए कीमती हीरे दिखाई दिए । एक बार तो चरों को हाथ में ले लिया फिर सोचा चारों नहीं एक तो राजा के लिए छोड़ दूं । तीन हीरे ले लिए ,एक हीरे को छोड़ दिया और तत्काल राजमहल से निकल गया ।अपने घर जा रहा था और वह राजा घूमते हुए वापस आ रहा था । राजा का मिलना हुआ उस चोर से , राजा ने पूछा अरे !कहाँ गए थे ? चोर बोला राजमहल में गया था । राजा ने पूछा क्या किया ? चोर ने कहा - चोरी की । राजा ने पूछा - क्या चुराया ? चोर बोला - तीन हीरे ले कर आया हूँ और इतना कह कर वह भाग गया । राजा ने कुछ गौर नहीं किया सोचा यह तो वही आदमी है । राजा महल में पहुंचा सो गया । सवेरे राजा के पास निवेदन आया, सुचना आयी कि रात को राजमहल में चोरी ही गई । राजा ने पूछा चोरी में क्या नुकसान हुआ है , क्या गया है ? अधिकारी व्यक्ति ने कहा कि भंडार के ताले टूटे हैं । भंडारी को बुलाया । भंडारी जी आये । पूछा भण्डार में क्या हुआ ? भंडारी ने कहा चोरी हो गई रात में । राजा ने पूछा क्या गया चोरी में । भंडारी जी बोले महाराज चार हीरे जो नए खरीदे थे , चारों हीरे गायब हैं । हीरों की बात आई तो राजा का दिमाग ठनका  अरे रात में कोई लड़का मुझे मिला तो था । राजा ने राजपुरुषों को युवक का पता देते हुए कहा कि इस पते पर जाकर वहां वह युवक हो तो ले आओ । राजपुरुष बताये हुए पते से युवक को लेकर आ गए । युवक राजा के पास हाजिर हो गया । राजा अपने शासकीय रूप को प्रयुक्त करते हुए बोला अरे रात को कोई तुम्हे मिला था क्या?तुम कही रात में गए थे क्या ? युवक  बोला - हाँ गया था । राजा ने पूछा कहाँ गए थे रात में ? युवक बोला मैं तो महल में आया था रात को । राजा ने पूछा - क्यों ? यहाँ आकर क्या किया ? युवक बोला यहाँ आकर मैंने चोरी की थी । कितना निर्भीक , झूठ नहीं बोलता , कहा झूठ बोलने का त्याग है , मर जाऊंगा पर झूठ नहीं बोलूंगा । साधू के मुंह से माजने त्याग लिया था । राजा के मन में प्रेम जाग गया , सोचा कितना निर्भीक आदमी है, झूठ नहीं बोलता है । राजा ने पूछा - चोरी में क्या लिया ? युवक बोला - महाराज तीन हीरे लिए थे चोरी में । राजा को विश्वास हो गया कि यह आदमी झुठ तो नहीं बोल रहा है यह बात पक्की है । राजा ने सोचा  भंडारी जी बोल रहे है कि चार हीरे गए , यह कह रहा तीन लिए , एक हीरे का गोल कहाँ मिले अब । यह तो झूठ नहीं बोलता पक्की बात है पर एक हीरा कहाँ गया । भंडारी को पूछा भंडारी जी एक हीरा कहाँ गया । भंडारी जी ने कहा महाराज इसी ने लिए है , आप इसी से पूछिए थोड़ा कड़ाई से पूछिए । राजा की आत्मा कहने लगी इसने तो तीन ही लिये हैं चौथे में कहीं गोल है । राजाजी बोले कड़ाई से इसे नहीं पूछुंगा कड़ाई से आपको ही पूछुंगा अब मैं , बताओ चौथा हीरा कहाँ गया । भण्डारी जी ने कहा महाराज मुझे क्या मालूम आप इसे ही पूछो इसी ने लिया होगा । राजा का शासकीय रूप ओर ज्यादा उभर कर आया और राजा ने तलवार ली हाथ में और कहा बताओ चौथा हीरा कहाँ गया । अब भंडारी जी बोले महाराज चौथा हीरा तो मैंने ले लिया है । राजा ने कहा तुमने ले लिया, अरे रक्षक भी भक्षक बन गया । बाड़ भी खेती को खाने लगी ।   तुमको मैंने इसलिए रखा था कि तुम चोरी करोगे । भण्डारी जी बोले महाराज अक्ल गाँव चली गयी थी , मैंने सोचा तीन गए , चौथा मैं रख लूंगा और कह दूंगा चारों चले गए । अब राजा ने सोचा चोर तो है पर झूठ नहीं बोलता , युवक को पूछा चोरी क्यों करते हो । युवक बोला- पढ़ा लिखा हूँ नहीं , परिवार का भरण पौषण कैसे करूँ इसलिए मैंने चोरी का धंधा अपना लिया । राजा ने कहा परिवार की व्यवस्था मैं कर दूँ तो ? युवक बोला फिर चोरी क्यों करूँगा ? मैं तो विवशता में चोरी करता था । राजा ने सोचा ऐसे अमृषावादी आदमी का तो उपयोग करना चाहिए । राजा ने भंडारी को बर्खास्त कर दिया और उस चोर को भंडारी के पद पर नियुक्त कर दिया । चोर अब अच्छा आदमी बन गया और राजा ने उसकी खुब प्रतिष्ठा बढा दी । युवक ने एक संकल्प लिया कि झूठ नहीं बोलूंगा तो कहाँ से कहाँ पहुँच गया ।
          हमारे जीवन में संकल्प का महत्व होता है । अच्छा संकल्प जीवन  में आ जाए तो जीवन अच्छा बन जाए । तो नैतिकता ऐसा तत्व है आदमी को शन्ती प्रदान करने वाला , आदमी की आत्मा को पवित्र बनाने वाला होता है । "सत्यमेव जयते नांऋतं" सच्चाई परेशान हो सकती है परास्त नहीं होती इसलिए हमें अपने जीवन में ईमानदारी के रास्ते पर चलने का प्रयास करना चाहिए । गांव के लोग श्रम करके पैसा कमाते होंगे कमाने वाले फिर शराब को लेकर के पैसे को गुमा देते हैं तो गरीब की गरीबी भी मिटे कैसे । थोड़ी कमाई की उसे गुमा दिया शराब में। कुछ गुमा दिया, कुछ चला गया तो गरीबी मिटे कैसे । यह तो बाहर की गरीबी है , हमारे जीवन की गरीबी मिटे और जीवन की गरीबी मिटाने के लिए हमें त्याग संयम की कमाई करनी होगी , तब जीवन की गरीबी, आत्मा की गरीबी मिट सकती है । पैसे वाली गरीबी का प्रसंग हो सकता है संसार में पर धर्म की गरीबी पर भी हम ध्यान दें । धर्म से गरीब गई या धर्म से अमिर है । धर्म की अमीरी में न कोई कर लगने की बात है , ओर तो पैसे की कमाई पर कर लगने की बात कही आ जाये , मोदी जी कही बीच में कुछ कर दें ।धर्म की कमाई में मोदीजी कही कोई अवरोध पैदा नहीं कर सकते । मोदी जी ने तो अपने ढंग से काम किया होगा देश में भ्रष्टाचार मिटाने के लिए परन्तु धर्म की कमाई हम करें कोई कर लगने वाली बात नहीं इसलिए यह संकल्पों की कमाई करें , बढ़िया अच्छे संकल्प लें जैसे मैं नशा नहीं करूँगा, मैं दंगा फसाद व्यर्थ नहीं करूंगा, मैं चोरी नहीं करूँगा ऐसे संकल्प हमारे जीवन में रहे , इन संकल्पों की कमाई रहे तो हम अमीर बन सकते है धनवान बन सकते हैं । छः बातें भगवती सूत्र में बताई थी - सामायिक, प्रत्याख्यान, संयम, संवर, विवेक , व्यूत्सर्ग यह छः बाते तो बहुत महत्वपूर्ण है , आप लोग तो इन तीन बातों पर ध्यान दे लें सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति । इसमें भी छः बातो का अंश समाविष्ट प्रतीत होता है । हम घरना आये हैं , इधर पास में नेपाल और इधर बिहार । नेपाल अति निकट, नेपाल बिहार ,भारत यह सब व्यवस्थागत चीजे है, हम अपने जीवन में व्यवस्था का भी ध्यान दें , जो  नियम है कानून है उसका हम प्रमादवश अतिक्रमण न करें । घरना के लोगो में सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति ये संकल्पत्रयी विद्यमान रहे तो जीवन की बगिया लह लहा उठेगी ऐसा अनुमान क्य्या जा सकता है ।







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