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ज्ञान का उपयोग आत्म-कल्याण की दिशा में करें - आचार्यश्री महाश्रमणजी

होली के अवसर पर रंगों के ध्यान के साथ नमस्कार महामंत्र का करवाया जाप
आचार्यश्री महाश्रमणजी

          12 मार्च 2017, चनौरागंज (JTN) : महातपस्वी शांतिदूत परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमणजी के नेतृत्व में अहिंसा यात्रा आज चनौरागंज पहुंची। प्रात:कालीन प्रवचन में उपस्थित श्रावक समाज को बोध प्रदान करवाते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया- आर्हत वांग्मय में कहा गया है कि आदमी सुनकर कल्याण को भी जान लेता है, आदमी सुनकर पाप को भी जान लेता है। कल्याण और पाप दोनों को जानकर जो श्रेय है, हितकर है, उसका आचरण करे तो वह कल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकता है। पूज्यप्रवर ने सूत्र का विवेचन करते हुए फ़रमाया कि- हमारे कानों के द्वारा हम चौबीसों घँटों में कितनी बातें सुनते है, कितने शब्द कानों में पड़ते है, कुछ शब्दों के लिए हमारे मन में राग तो कुछ के लिए द्वेष भाव आ जाता होगा और रहने वाले समता में भी रह जाते है।  शब्द अपने आप में ना तो राग को ना द्वेष को पैदा करते है, हमारे भीतर में मोहनीय कर्म का अस्तित्व है, सत्ता है, उसका जो उदय है, इसलिए हम कभी राग में चले जाते है तो कभी द्वेष में चले जाते है। परंतु जो जीवन के कल्याण की बात है, उसके प्रति कोई बाह्य राग नहीं बल्कि कल्याण के प्रति तो श्रद्धा भक्ति के रूप में अनुराग पैदा हो जाए और वे अच्छी बातें, हितकर बातें जीवन में उतर जाए तो हम आत्मोत्थान की दिशा में आगे बढ़ सकते है। पढ़ने से भी ज्ञान होता है। धर्मग्रन्थों एवं अनेकों प्रकार के ग्रन्थों से भी ज्ञान प्राप्त होता है। आँख द्वारा पढ़ा जाता है या अचक्षु व्यक्ति हाथ आदि के द्वारा लिपि का बोध कर ले और ज्ञान प्राप्त कर लेता है। ज्ञान का उपयोग स्वयं के और दूसरों के कल्याण हेतु उपयोग करें। पर्वों के बारे में भी, उनके इतिहास आदि के बारे में भी ज्ञान कितनों को होता होगा। इन पर्वों के प्रसंग पर लोगों में उल्लास, उत्साह, उमंग, आमोद-प्रमोद देखने को मिलता है। 

          होली के संदर्भ में पूज्यप्रवर ने फरमाया- रंगों का त्यौहार है- होली। बाहर के रंग जो है वो कभी सुरंग बन जाते है, अच्छे लगने लग जाते है। ध्यान साधना में भी लेश्या ध्यान, नमस्कार महामंत्र के के साथ भी रंगों का ध्यान करने का निर्देश मिलता है। फाल्गुन मास का समापन, ये होली का पर्व, हम बाहर के रंगों का कोई उपयोग करें न करें किन्तु ध्यान-साधना का प्रयोग करें, आत्म निर्मलता का अभ्यास करें। नमस्कार महामंत्र जो एक विशिष्ट मन्त्र है, जिसमें अर्हत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधू इन पांच पवित्र आत्माएं विराजमान है, संकलित है। नमो अरहंताणं में अरिहंतों को नमस्कार किया गया है, इसके जप के दौरान ज्ञान केंद्र यानी चोटी के भाग में गहरे में चित्त को केंद्रित कर पर सफेद रंग का साक्षात्कार करना चाहिए। नमो सिद्धाणं के जप में  दर्शन केंद्र पर यानी भृकुटि के मध्य भाग में बाल सूर्य जैसे अरूण रंग का, नमो आयरियाणं के जप में विशुद्धि केंद्र यानी कंठ के मध्य भाग में पीले रंग का, नमो उव्वज्झायाणं के जप में आनंद केंद्र यानी ह्रदय के पास गड्ढे के भाग पर हरे रंग का , नमो लोए सव्व साहूणं शक्ति केंद्र यानी पृष्ठ रज्जू का निचला छोर वहां नीले रंग के साक्षात्कार का प्रयास करना चाहिए। नमस्कार महामंत्र के पांचों पदों में पांच प्रकार की आत्माओं को नमस्कार किया गया है, नमस्कार करना भक्ति का प्रयोग है। ये नमस्कार वीतराग आत्माओं, वीतरागता की साधना करने वाली आत्माओं की भक्ति है। ऐसे पवित्र मंत्रों का स्मरण करने से, पाठ करने से पवित्रता की प्राप्ति की जा सकती है। दिन का प्रारंभ यानी उठने के तुरन्त पश्चात नियमित रूप से स्थिरता और अर्थावबोध के साथ जप स्मरण किया जाए तो अच्छा प्रयोग है। 

          पूज्यप्रवर ने योगक्षेम वर्ष के संस्मरण बताते हुए फ़रमाया कि- परमपूज्य गुरुदेव श्री तुलसी के सान्निध्य में आज से 27 वर्ष पहले योगक्षेम वर्ष के दौरान आज ही के दिन "आओ, होली खेलें" विषय पर प्रवचन में यह रंगों के साथ जप का प्रयोग करवाया गया था। उस समय युवाचार्य महाप्रज्ञजी प्रवचन करते। होली के संदर्भ में आयोजित कार्यक्रम में दोनों महापुरुषों के सान्निध्य का लाभ प्राप्त हुआ था।  

          पूज्यप्रवर ने आगे फ़रमाया कि- रंग चिकित्सा भी एक चिकित्सा पद्धति रही है। शरीर की चिकित्सा का अपना महत्व है लेकिन मन की चिकित्सा, चेतना की चिकित्सा होनी चाहिए। हमारा मन, हमारा चित्त, चेतना भी स्वस्थ रहे। शारीरिक बीमारी यानी व्याधि-मानसिक बीमारी यानी आदि और भावनात्मक बीमारी यानी उपाधि से छुटकारा मिल जाए तो समाधि यानी परम शान्ति प्राप्त हो सकती है। समाधि प्राप्त हो जाए तो ये जीवन में एक बड़ी उपलब्धि हो जाती है।

          पूज्यप्रवर ने कृपा करवाते हुए सभी को नमस्कार महामंत्र के प्रत्येक पद का रंगों के ध्यान सह जप करवाया।








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