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मंत्र अच्छा करें जीवन का तंत्र : आचार्यश्री महाश्रमणजी

आचार्य श्री महाश्रमणजी

          14 मार्च 2017, नवादा। अहिंसा यात्रा प्रणेता, महातपस्वी, शांतिदूत  परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमणजी धवल सेना सह आज लोहाना पूर्व से करीब 12.9 किमी का पादविहार कर नवादा पधारें। पूज्यप्रवर ने आज प्रात:कालीन प्रवचन में मंत्र साधना का महत्व समझाते हुए फ़रमाया कि- आध्यात्मिक साधना में एक प्रयोग है जप करना, माला फ़ेरना, इष्ट-स्मरण करना, इष्ट में  तादात्म्य स्थापित करना। भारत में कितने-कितने धार्मिक लोग नाम जप करते होंगे। 24 घंटे हमें मिलते है। प्रति दिन समय मिलता है। कुछ समय हमारा जप की साधना में भी नियोजित होना चाहिए। जैन शासन में नमस्कार महामंत्र का बहुत महत्व है। यह एक ऐसा विशुद्ध मंत्र है जिसमें वीतरागता विराजमान है। नमो अरिहंताणं- अरिहंतों को नमस्कार, जो वीतराग है, राग द्वेष मुक्त है, उन्हें कभी गुस्सा नहीं आता, उन्हें कभी अहंकार नहीं सताता, न माया - न लोभ, विशुद्ध चेतना वाले अर्हत होते हैं। नमो सिद्धाणं-सिद्धों को नमस्कार। सिद्ध सिर्फ वीतराग ही नहीं, विदेह भी होते हैं, शरीर मुक्त होत हैं, केवल आत्मा है। नमो आयरियाणं-आचार्यों को नमस्कार। आचार्य पुरे वीतराग न भी हो लेकिन वीतराग शासन के अधिनेता है, वीतरागता की साधना करने वाले और साधना करने में सहयोग देने वाले धर्म संघ के प्रमुख अनुशास्ता है। नमो उव्वज्झायाणं- उपाध्यायों को नमस्कार, ज्ञान के भंडार, आगम के अध्येता है, ऐसे सन्त जो ज्ञानमूर्ति हैं। नमो लोए सव्व साहूणं-लोक के समस्त साधुओं को नमस्कार। साधु जो साधना करने वाले, स्वयं वीतरागता की साधना करने वाले हैं ऐसे साधुओं को नमस्कार। यानी पांचों के पांचों पद किसी ना  किसी रुप में वीतरागता से संबंधित है। जहां भौतिकता की बात नहीं, हिंसा की बात नहीं, राग की बात नहीं इसलिए अध्यात्म की दृष्टि से नमस्कार महामंत्र अति विशिष्ट मंत्र है। ऐसे मंत्र का प्रातः स्मरण किया जाए, माला फेरी जाए और दिन-रात में जाप करना कर्म निर्जरा का, चेतना की विशुद्धि को बढ़ाने का एक अच्छा साधन है। जो वृद्ध है या ज्यादा लेटे रहते हैं उनके लिए तो बहुत अच्छा आलंबन है- जाप करना। लेटे-लेटे  जप करते रहो या धर्म की बात, धर्म करके गीत करते रहो तो अध्यवसाय विशुद्धि का अच्छा उपाय है। जप में एकाग्रता अच्छी रहनी चाहिए। जिसका जप हो रहा है उनके गुण हमारे में संक्रांत हो जाए। एकाग्रता का भी महत्व है पर एकाग्रता  हमारी किस चीज में है वह भी विवेच्य है। मन्त्र में एकाग्रता हो जाए तो विशेष बात होती है।

          परमपूज्य गुरुदेव तुलसी का स्मरण करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि गुरुदेव मंत्र का प्रयोग कराते, सामायिक का अभिनव प्रयोग करवाते और पंचाक्षरी मंत्र नमस्कार महामंत्र का संक्षिप्त रुप का जप कराते। असिआउसा- अरिहंत,सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु। इन 5 अक्षरों में नमस्कार महामंत्र की पांच शक्तियों का स्मरण करने का प्रयास किया जाता है। आदमी मंत्र का पाठ करें और अपने तंत्र को अच्छा रखे। हमारा सारा आस पास का जीवन का तंत्र जो है वह कैसा है ? शरीर में विभिन्न तंत्र है- श्वसन तंत्र, पाचन तंत्र आदि आदि। यह तो शरीर के तंत्र है और भीतर हमारे जीवन का तंत्र है। जीवन में कमाते कैसे है, जीवन में खाते हम कैसे हैं, जीवन में चलते-फिरते कैसे है? जीवन का हमारा तंत्र है बढ़िया रहे। मंत्र और तंत्र दोनों ठीक हो जाए, मंत्र का पाठ है पर जीवन का तंत्र बढ़िया नहीं है तो कमी है। हम अपने जीवन में मंत्र और तंत्र दोनों पर ध्यान दे। मंत्र का पाठ करें और लक्ष्य रखें इस मंत्र के पाठ से मेरे जीवन का तंत्र भी बढ़िया बन जाए। किसी भी क्षेत्र में आप काम करें, व्यापार करें, नौकरी करें, प्रशासन के क्षेत्र में काम करें, काम धंधा करें ये सारा तंत्र आपका बढ़िया रखें।

          परम पूज्य आचार्य महाप्रज्ञ जी प्रेक्षाध्यान कराते थे। प्रेक्षाध्यान में श्वसन तंत्र, नाड़ी तंत्र आदि तंत्रों को ठीक करने की बात है। और श्वास को लंबा करने का प्रयोग। दीर्घ श्वास का प्रयोग मंत्र के साथ जुड़ जाए। हम अपने जीवन में अध्यात्म की साधना में कुछ मंत्र जप का भी अध्यात्म की भावना से प्रयोग करे तो वह हमारी आत्मा की शुद्धि को बढ़ाने वाला हो सकता है।











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