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ज्ञान, दर्शन चारित्र और तप की आराधना मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है : आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमणजी

15 मार्च, जीवज घाट, सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की सौरभ जन जन तक फैलाते हुए आचार्य श्री महाश्रमण अहिंसा यात्रा के साथ लगभग 11.6 किलोमीटर का पादविहार कर बिहार प्रान्त के जीवज घाट पधारे । आज प्रातः कालीन प्रवचन में पूज्यप्रवर ने ज्ञान , दर्शन , चारित्र और तप की महत्ता बताते हुए फरमाया - आर्हत वांग्मय में कहा गया है ज्ञान के द्वारा आदमी पदार्थों को जानता है, दर्शन के द्वारा श्रद्धा करता है , चारित्र के द्वारा निग्रह करता है और तप के द्वारा आत्मा की विशुद्धि करता है । चार चीजे हो गई - ज्ञान , दर्शन , चारित्र और तप ।          ज्ञान की विवेचना करते हुए पूज्यप्रवर ने कहा - हमारे जीवन में ज्ञान का महत्वपूर्ण स्थान है । ज्ञान तो प्रकाश है । सूर्य के प्रकाश और सूर्य का कितना महत्व है हमारे जीवन में । कल्पना करें अगर सूर्य उदय न हो तो दुनिया कैसी बन जाए । जहाँ एक ओर सूर्य का उदय होने से स्वाभाविक प्रकाश फेल जाता है , सूर्य उदय होने के बाद दीपक का कितना ,क्या महत्व है । कृत्रिम प्रकाश का कितना महत्व और उपयोगिता रह जाती है , जब सूर्य आकाश में है , वह भी दोपहर को ललाट को तपाने वाला, टाट को तपाने वाला सूर्य आकाश में है तो फिर दीपक आदि निष्तेज या यों कहें महत्वहीन हो जाते हैं । सूर्य न हो तब दीपक का बड़ा महत्व है । अंधों में काणे का भी महत्त्व होता है। जहां सब दो -दो आँखों वाले हों वहाँ काणे का क्या महत्व होगा । अन्धकार में तो दीपक का महत्व है । प्रकाश जब सूर्य के द्वारा कर दिया जाये तब दीपक तो मानो उसमे समाविष्ट सा हो जाता है । सूर्य है वहां अन्धकार रहता नहीं ।
"अन्धकार है जहाँ, वहाँ आदित्य नहीं है ।
मुर्दा है वह देश, जहाँ साहित्य नहीं है ।।"
आदित्य है वहां अन्धकार नहीं और अन्धकार है वहां जहां आदित्य नहीं । सूर्य अस्ताचल की ओर जाने वाला था । उसने कई पदार्थो की मीटिंग बुलाई । कहा - देखो मै तो जा रहा हूँ , मेरे पीछे प्रकाश कौन करेगा, अन्धकार को कौन दूर करेगा । दीपक बोला - मालिक ! मैं जैसा हूँ, जितनी मेरी क्षमता है , आपकी अनुपस्थिति में दुनिया को प्रकाश देने का काम मैं करूँगा । हालांकि मेरी क्षमता जितनी है उतनी ही है , आपके सामने तो मै आपकी चरण रज के समान हूँ , पर जितनी क्षमता है उतना मैं आपका थोड़ा थोड़ा काम करूंगा । सूर्य चला गया और दीपक ने प्रकाश करने का प्रयास किया ।
       सूर्य के प्रकाश का कितना महत्व है । स्वास्थ्य के लिए, दृष्टिगोचरता के लिए , खेती आदि के लिए जैसे सूर्य का महत्व है वैसे हमारे जीवन में ज्ञान सूर्य का महत्व है । ज्ञान हमारा अच्छा रहता है तो प्रकाश रहता है । साहित्य भी एक ज्ञान का माध्यम है । किताबों से कितना ज्ञान मिलता है । "मुर्दा है वह देश जहां साहित्य नहीं है" अर्थात वह देश निष्प्राण हो जाता है जहां साहित्य नहीं, किताब नहीं, ज्ञान नहीं , विद्या संस्थान नहीं । साहित्य के माध्यम से, उपदेश के माध्यम से ज्ञान मिलता है और वह ज्ञान प्रकाश देने वाला, करने वाला होता है । विद्या संस्थानों में ज्ञान बांटा जाता है । अज्ञान को हरा जाता है । गुरु ज्ञान देते है इसलिए गुरु की महिमा है । गुरु ज्ञान देने वाले हो, गुरु त्यागी हो, गुरु सदाचारी और ज्ञानी हो । गुरु का अपना स्वयं का जीवन भी त्याग युक्त, संयम युक्त हो , साथ में ज्ञान देने वाले हों , वे गुरू स्वयं कितने पावन होते है और दूसरों को पावनता प्रढां करने वाले हो जाते हैं । सूक्त मुक्तावली में सोमप्रभसूरी ने कहा है - कृत्य- अकृत्य का बोध देने  वाले , कृत्य-अकृत्य का विवेक देने वाले और कुबोध को, कुज्ञान को नष्ट करने वाले , मिथ्यात्व को नष्ट करने वाले, आगम का अर्थ बताने वाले, पुण्य-पाप , सुगति का मार्ग है पुण्य, कुगति का मार्ग है पाप इनके बारे में विवेचन करने वाले , व्यंजना देने वाले , ऐसे विवेक देने वाले जो गुरु होते हैं । गुरु के सिवाय भवजल से पार लगाने वाला कोई नहीं है । गुरु से ज्ञान मिलता है । 
              दर्शन एवं चारित्र की विवेचना करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण जी ने आगे कहा कि दर्शन द्वारा आदमी श्रद्धा करता है । यह सही है, यह गलग है , यह श्रद्धा का भाव है वह दर्शन से मिलता है । ज्ञान हो गया , श्रद्धा रूचि ठीक हो गई । तीसरी बात है - बुराइयों को छोड़ना, बुराइयों के सेवन से बचना, बुराइयों का त्याग करना, पाप का त्याग करना यह चारित्र हो जायेगा । बुराइयों का, पापों का त्याग करना चारित्र है । 
         समभाव में रहना चारित्र है । बुराइयों को छोड़ना, परित्याग करना और अच्छाइयों का सेवन करना, तपस्या करना , शुभयोग में रहना यह तपस्या है । चारित्र से नए सिरे से पाप कर्मों का आगमन बंद हो जाता है । 
           तप के महिमा बताते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि जो पहले से पाप कर्म आत्मा से चिपके हुए है उन्हें दूर करने का कार्य तो करता है । तपस्या के द्वारा कर्म कटते हैं । तप की अपनी एक शक्ति होती है, महिमा है । तपस्या निष्काम हो तो पापों का शमन करने वाली हो जाती है । तपस्या की महिमा पर ध्यान दें । पाप का शमन करने वाली तपस्या है, पाप का नाश करने वाली तपस्या है , मानस रूपी हंस को रमण करने वाली तपस्या है और विमोह को, मोह को नष्ट करने वाली तपस्या है । तपस्या निष्काम हो , इहलोक, परलोक, कीर्तिश्लाघा की इच्छा नहीं, निर्जरा के लिए तपस्या हो तो तपस्या तो कमाल का काम कर सकती है । 
         यह ज्ञान , दर्शन , चारित्र और तप की आराधना है वह मोक्ष का मार्ग है । 
         उपाध्याय विनयविजय जी के धर्म कल्पवृक्ष की महिमा बताते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि धर्म रूपी कल्पवृक्ष की महिमा क्या बताएँ । भौतिक और आध्यात्मिक दोनों लाभ धर्म से मिल जाते हैं । विशाल साम्राज्य भी धर्म रूपी कल्पवृक्ष की फल निष्पति है , संसार में सौभाग्यवती पत्नी धर्म के प्रताप से मिल सकती है, पुत्रों का आनन्द भी धर्म के प्रताप से मिल सकता है , सुन्दर रूप भी धर्म के प्रताप से , अच्छी कविता बनाने की कला भी धर्म के प्रताप से मिल जाती है । अच्छा गला, अच्छी आवाज धर्म से मिल जाती है , स्वास्थ्य आरोग्य धर्म की कृपा से मिल जाता है । गुणों का संचय धर्म के प्रताप से , सज्जनता धर्म के प्रताप से , सुबुद्धि , तीक्ष्ण बुद्धि भी धर्म से मिल जाती है । कितने लाभ धर्म के प्रताप से मिल जाते है इसलिए आदमी धर्म के मार्ग पर चले । धर्म से समस्या का समाधान है । धर्म की जड़ हरी होती है । पाप कर्मों से बचने का प्रयास और धर्म का आचरण करने का आयास आदमी को करना चाहिए । संत लोग जो घर बार त्यागी , अणगार , अहिंसा आदि का पालन करने वाले जहां पहुँचते हैं , वहां अगर उपदेश देते है , अच्छी बातें बताते है तो वह भी एक तरह का प्रकाश फैलाने का , और ज्ञान का प्रकाश और अच्छे अच्छे संकल्पों की सौरभ फैलाने का काम हो जाता है । 
          एक कथानक के माध्यम से पूज्य प्रवर ने धर्म की महिमा बताते हुए फरमाया कि हम जीवन के महल को, आत्मा के महल को ज्ञान के प्रकाश से भरें , चारित्र के आचरण की सौरभ से भरें तो इस लोक का राज्य साम्राज्य तो क्या है,  मोक्ष का साम्राज्य भी मिल जाएगा । सद्ज्ञान, सद्चारित्र , सदाचार इन दो में सबका समाविष्ट कर लें । ज्ञान के अंतर्गत दर्शन को और चारित्र के साथ तपस्या को व्विकसित कर लें तो ज्ञान और चारित्र के साथ मोक्ष का साम्राज्य, मोक्ष में स्थान मिल सकता है ।

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