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उपशांत भाव में रहने का करें प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

- शांतिदूत के चरणरज से पावन हुआ कुमारपट्टी गांव -
- बच्चों संग ग्रामीणों ने भी स्वीकारे अहिंसा यात्रा के संकल्प -
आचार्यश्री महाश्रमणजी

17.03.2017 कुमारपट्टी (दरभंगा)ः मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए निरंतर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ शुक्रवार को दरभंगा शहर स्थित सीएम महिला कालेज से लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर दरभंगा जिले स्थित के कुमारपट्टी गांव स्थित रा.उ. आदर्श मध्य विद्यालय के प्रांगण पहुंचे। जहां विद्यालय के बच्चों, शिक्षकों संग ग्रामीणों ने आचार्यश्री का अभिनन्दन किया। 
जन-जन का कल्याण करने व मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए विशाल पदयात्रा को निकले आचार्यश्री महाश्रमणजी गांव-गांव, नगर-नगर भ्रमण कर लोगों को मानवता का संदेश दे रहे हैं तो वहीं लोगों को अहिंसा यात्रा के संकल्पों को स्वीकार करा लोगों के जीवन को स्तर को ऊंचा के लिए निरंतर प्रयत्नशील हैं। आचार्यश्री की अभिप्रेरणा से प्रभावित लोग सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्पों को स्वीकार करते हैं और अपने जीवन को अच्छा बनाने की दिशा में कदम बढ़ा लेते हैं। 
ऐसे ही जन-जन को जागृत करते शुक्रवार को आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ लगभग सवा छह बजे दरभंगा स्थित सीएम महिला कालेज परिसर से विहार किया। अपनी धवल सेना के साथ राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-57 को अपने चरणरज से पावन करते हुए आचार्यश्री इसी राजमार्ग के परिपार्श्व स्थित कुमारपट्टी गांव के रा.उ.आदर्श मध्य विद्यालय के प्रांगण पहुंचे। जहां उपस्थित स्कूली छात्रों, शिक्षकों व ग्रामीणों ने आचार्यश्री का स्वागत किया। 
आचार्यश्री ने उपस्थित लोगों को अपने वचनामृत से अभिसिंचत करते हुए कहा कि आदमी को उपशांत रहने का प्रयास करना चाहिए। उपशांत रहने वाला या हमेशा शांत रहने वाला मनुष्य सिद्धि को प्राप्त कर सकता है तथा इस जीवन को और आगे के जीवन को भी सुखमय और शांतिमय बना सकता है। आचार्यश्री ने कहा कि आदमी बात-बात में गुस्सा कर सकता है। गुस्सा तो इंतजार करता है कि कब हमें आमंत्रण मिले। कई बार तो गुस्सा बिना बुलाए मेहमान की तरह भी आ जाता है। गुस्सा आदमी को जीवन को कष्टप्रद और अशांत बना सकता है। इसलिए आदमी को उपशांत रहते हुए धर्म के मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए। उपशांत रहने वाला मनुष्य शरद पूर्णिमा के चंद्र की भांति निर्मल व यशस्वी बन सकता है। आचार्यश्री ने असहायों का सहायक और अबंधुओं का बंधु धर्म को बताया और लोगों को धर्मयुक्त जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान की। उपस्थित उपासकों को आचार्यश्री ने अभिप्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि उपासकों को अपने घर-परिवार में ऐसे भव्यात्माओं को तैयार करने का प्रयास करना चाहिए तो साधु-साध्वी या समण-समणी संस्था से जुड़कर अपने जीवन को कल्याण के मार्ग पर लगा सके। 
अंत में आचार्यश्री ने उपस्थित विद्यालय के उपस्थित छात्रों व ग्रामीणों को अहिंसा यात्रा के उद्देश्यों की अवगति प्रदान कर तीन उद्देश्यों के तीन संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान किया तो उपस्थित विद्यार्थियों संग ग्रामीणों ने सद्भावपूर्ण व्यवहार करने, यथासंभव ईमानदारी का पालन करने व पूर्णतया नशामुक्त जीवन जीने का संकल्प स्वीकार किया। 








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