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ज्ञानवान बनें : आचार्यश्री महाश्रमण

- शर्फुद्दीनपुर में शांतिदूत ने जलाई ज्ञान की ज्योति -

- ग्रामीणों ने स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के संकल्प -
आचार्यश्री महाश्रमणजी

19.03.2017 शर्फुद्दीनपुर (मुजफ्फरपुर)ः बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में तीसरे दिन रविवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा और श्वेत सेना के साथ शर्फुद्दीनपुर गांव स्थित श्री रामसेवक साहू उच्च विद्यालय के प्रांगण में पहुंचे। गांव पहुंची इस अनूठी यात्रा को देखने और इसके उद्देश्यों को जानने के लिए ग्रामीणों का हुजूम उमड़ पड़ा। विद्यालय प्रांगण में उपस्थित ग्रामीणों और श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने अपने वचनामृत से अभिसिंचन प्रदान किया। वहीं ग्रामीणों को अहिंसा यात्रा के संकल्प भी स्वीकार कराए और लोगों को शांति और सौहार्द से जीवनयापन करने को भी अभिप्रेरित किया। आचार्यश्री के दर्शन को पूरे दिन ग्रामीणों का तांता लगा रहा। प्रवचन के उपरान्त भी पूरे दिन ग्रामीणों का समूह आचार्यश्री के दर्शन को पहुंचता रहा। 
रविवार को प्रातः लगभग सवा छह बजे आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ पिरौंछा से शर्फुद्दीनपुर के लिए विहार किया। लगभग तीन घंटे पदयात्रा कर आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ उक्त गांव स्थित श्री रामसेवक साहू उच्च विद्यालय प्रांगण में पहुंचे। अपने गांव में आए ऐसे महासंत के दर्शन को ग्रामीणों का हुजूम उमड़ पड़ा। 
विद्यालय प्रांगण में उपस्थित ग्रामीणों और श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि मानव जीवन में ज्ञान का अति महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। दुनिया में ज्ञान से बढ़कर पवित्र चीज प्राप्त होना मुश्किल है। पहले आदमी ज्ञानार्जन करे और बाद में उसे आचरण में लाने का प्रयास करे तो वह अपने जीवन को सुन्दर बना सकता है। आचार्यश्री ने कहा कि विद्यालय और महाविद्यालय ज्ञान के आदान-प्रदान के स्थान होते हैं। आचार्यों और संतों से भी ज्ञान प्राप्त होता है। ज्ञान सरस्वती का ऐसा अपूर्व भंडार है, जो कभी खाली ही नहीं होता। इसे जितना बांटा जाए उतना बढ़ता जाता है और यदि इसे एकत्रित कर रखने का प्रयास किया जाए तो एक दिन नष्ट भी हो सकता है। ज्ञान एक ऐसे दीपक के समान है जो अपने प्रकाश से कितनों को आलोकित करता है। एक शिक्षक का ज्ञान कितने विद्यार्थियों के पास पहुंच जाता है। ज्ञान को ज्ञानदाता से ग्राहक बनकर और विन्रम भाव से ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने कहा कि ज्ञान का कोई आर-पार नहीं है और मनुष्य का आयुष्य सीमित है। इसलिए आदमी को सीमित समय में सारभूत ज्ञान ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को सारभूत ज्ञान उसी प्रकार ग्रहण करना चाहिए जिस प्रकार हंस दूध को ग्रहण करता है और पानी को छोड़ देता है। आदमी पहले ज्ञान ग्रहण और फिर उसे अपने आचरण में लाए तो ज्ञान सार्थक हो सकता है। आदमी को निरंतर अपने जीवन में ज्ञान का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान के माध्यम से अच्छे बुरे कर्मों का विवेचन कर आदमी बुरे कार्यों से भी बच सकता है और अपनी आत्मा का कल्याण कर सकता है। 
प्रवचन के अंत में आचार्यश्री ने ग्रामीणों को अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्य सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के विषय में बताया और उसके तीन संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान किया तो उपस्थित ग्रामीणों ने खड़े होकर सद्भावपूर्ण व्यवहार करने, यथासंभव ईमानदारी का पालन करने व पूर्णतया नशामुक्त जीवन जीने के संकल्पों को आचार्यश्री के साथ उच्चरित कर अहिंसा यात्रा में अपनी सहभागिता दर्ज कराई। 




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