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पदार्थों के प्रति आसक्ति से बचने का प्रयास करे आदमी: आचार्यश्री महाश्रमण

- प्रवचन उपरान्त राज्यपाल एक बार पुनः पहुंचे आचार्यश्री की सन्निधि में, आधे घंटे तक हुई वार्तालाप -
- साध्वीप्रमुखाजी और साध्वीवर्याजी ने भी श्रद्धालुओं को किया वर्धापित -

       29.03.2017 कंकड़बाग (बिहार) (JTN) : पटना के ऐतिहासिक प्रवास के तीसरे दिन अवसर हाॅल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पदार्थों का उपयोग करने के बावजूद भी उसके प्रति अनासक्ति की भावना रखने का ज्ञान प्रदान किया तो वहीं तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखाजी ने साध्वीवर्याजी ने भी लोगों को अपने अमृतवचनों से लाभान्वित किया। 
दूसरी ओर प्रवचन के पूर्ण होते ही बिहार के राज्यपाल श्री रामनाथ कोविंद एकबार पुनः गुरु चरणों में उपस्थित और लगभग एक घंटे का सानिध्य लाभ किया। 
पटना में चार दिवसीय प्रवास के तीसरे दिन बुधवार को अवसर हाॅल में बने सद्भावना समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को सर्वप्रथम असाधारण साध्वीप्रमुखाजी ने समता भाव में जीने का लक्ष्य बनाने के लिए उत्प्रेरित किया। साध्वीवर्याजी ने कर्म के माध्यम से आत्मा को परमात्मा बनाने का मार्ग बताया और सुमधुर स्वर में गीत का संगान कर लोगों को इसके लिए उत्प्रेरित किया। 
आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि इन्द्रिय और मन के विषय राग उत्पन्न होने से आदमी दुःखी हो सकता है। विषय युक्त सुख प्राप्ति की आकांक्षा आदमी के दुःख का कारण बन सकती है। जो राग भाव से मुक्त हो वीतरागी हो गए उन्हें राग कष्ट नहीं दे सकते। आदमी के जीवन को पदार्थ सापेक्ष बताते हुए आचार्यश्री ने कहा कि आदमी को जीवन में पदार्थों का सहयोग लेना पड़ता है। पदार्थ निरपेक्ष जीवन तो संभव नहीं हो सकता, किन्तु पदार्थों का उपभोग करते हुए भी उसके प्रति अनासक्त रहना या आसक्ति से दूर रहने का प्रयास करना चाहिए। कोई आदमी विषयों में आसक्त हो जाए तो वह किसी की सेवा या अपने कार्यों का उचित निष्पादन नहीं कर सकता। राजा यदि विषयों में आसक्त हो जाए तो वह जनता का भला क्या सेवा कर सकेगा। वर्तमान में तो मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री आदि-आदि जनता की सेवा का दायित्व संभालने वाले होते हैं तो उन्हें भी विषयों की आसक्ति से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी पदार्थों का भोग करे, किन्तु उसके पीछे आसक्त न हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। सामान्य आदमी में पदार्थों के प्रति आकर्षण होता है और वह पदार्थों का मोह भी कर सकता है। आदमी को मोह छोड़ अमोह की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। मोह दुःख का कारण तो अमोह की साधना मोक्ष के द्वारा तक ले जाने वाली बन सकती है। आदमी को पदार्थों से ज्यादा मोह नहीं करना चाहिए और अपने इस शरीर के माध्यम से अपनी आत्मा का कल्याण करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने लोगों को उत्प्रेरित करने के लिए ‘मानव जीवन पाकर तुमने क्या किया’ गीत का संगान कर लोगों प्रेरणा प्रदान की। 
प्रवचन के उपरान्त बिहार के राज्यपाल श्री रामनाथ कोविंद पुनः आचार्यश्री की सन्निधि में पहुंचे और आचार्यश्री से लगभग आधे घंटे तक आध्यात्मिक चर्चा और मुलाकत कर पुनः अपने गंतव्य को रवाना हो गए। 






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