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आदमी को जीवन में परिस्कार करने का प्रयास करना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

- तेरापंथ धर्मसंघ की भावी पीढ़ी साध्वीवर्याजी और मुख्यमुनिश्री ने भी श्रद्धालुओं पर बरसाई कृपा -
- पटना सिटी में प्रवास के दूसरे भी आचार्यश्री को सुनने पहुंचे श्रद्धालु -
- आज भी श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री के चरणों में अर्पित की भावनाओं की पुष्पांजलि -
आचार्यश्री महाश्रमणजी

        01.04.2017 पटना सिटी (बिहार) (JTN) : धर्म, जाति, समुदाय से परे, संपूर्ण सृष्टि को अपना समझने वाले, सभी के प्रति दया, करुणा व अनुकंपा के भाव रखने वाले, अभयदान देने वाले और वीतरागता के साधक जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के ग्यारवहें अधिशास्ता शनिवार को प्रातः सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह के जन्मभूमि पर स्थित पटना साहिब पहुंचे। आचार्यश्री ने वहां के संबंध में विस्तृत जानकारी ली, थोड़ा समय व्यतीत किया और आचार्यश्री पुनः प्रवास स्थल लौट आए। आचार्यश्री का परिसर भ्रमण कर औन जानकारी प्राप्त कर लौट आना मानो यह दर्शा रहा था कि जैसे दो सिद्ध साधकों ने गुप्त मंत्रणा कर ली हो। आचार्यश्री का यों पटना साहिब पहुंचना आम लोग के लिए आश्चर्य का विषय था। क्योंकि एक दूसरे संप्रदाय के आचार्य का भला सिक्खों के गुरु के जन्मस्थान में क्या काम, किन्तु जो मानवता का संदेश देने वाला हो, जो समस्त मानव जाति को एक मानता हो, जो जाति, धर्म, वर्ण, संप्रदाय से ऊपर उठ चुका हो, उसके लिए भी भला इसका क्या भेद हो सकता है। 
शनिवार को रामदेव महतो सामुदायिक भवन में अपने प्रवास के दूसरे दिन आचार्यप्रवर से पूर्व धर्मसंघ की साध्वीप्रमुखाजी ने श्रद्धालुओं को पावन पथदर्शन प्रदान किया तो वहीं गुरु सन्निधि में तेरापंथ के भावी पीढ़ी अर्थात साध्वीवर्याजी और मुख्यमुनिश्री ने भी अपने अच्छा जीवन जीने का मार्ग दिखाया। साथ ही दोनों ने अपने सुमधुर स्वरों में प्रेरक गीतों का संगान कर लोगों के मन तरंगित कर दिया। 
इसके उपरान्त लोगों को आचार्यश्री के श्रीमुख से निकलने वाली ज्ञानगंगा में डुबकी लगाई। आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को गलती की पुनरावृत्ति न करने और यथावसर, यथौचित्य जीवन में परिवर्तन करने की मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी कभी जाने तो कभी अनजाने में अकरणीय कार्य भी कर लेता है, कोई गलती कर लेता है। आदमी छदमस्त है, गलती हो सकती है, लेकिन आदमी को यह प्रयास करना चाहिए कि जो गलती हो गई, उसकी जानकारी होते ही सबसे पहले अपने आपको को वहां से अलग करने और दूसरी बात वैसी गलती की पुनरावृत्ति न हो, इसका प्रयास होना चाहिए। आदमी को इसके प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को जीवन में परिस्कार करने का प्रयास करना चाहिए। जैसे राजमार्ग पर चलते-चलते मोड़ आता है उसी प्रकार आदमी को भी अपने जीवन में उचित अवसर पर और उचित मोड़ भी लेने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में परिवर्तन करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने इसके एक सूत्र ‘मौलिकता सुरक्षित, परिवर्तन अपेक्षित’ लोगों को प्रदान करते हुए कहा कि आदमी की मौलिकता भी सुरक्षित रहे और परिवर्तन भी हो सके, ऐसा प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने जीवन में विचारों का विकास करने का प्रयास करे और आदमी अपने जीवन में समुचित परिस्कार करते रहने का प्रयास करे तो जीवन को बेहतर बना सकता है। 
आचार्यश्री के चरणों में अपनी भावनाओं के श्रद्धासुमन चढ़ाने के क्रम में तेरापंथ कन्या मंडल ने गीत का संगान किया तो तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्षा, उपासिका और आचार्यश्री महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के मंत्री ने भी अपनी भावनाओं को आचार्यश्री के समक्ष प्रस्तुत कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। 








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