Top Ads

संयम और तप द्वारा आत्मा का करें दमन: आचार्यश्री महाश्रमण

- सात दिवसीय पटना में प्रवास के बाद पुनः अहिंसा यात्रा हुई गतिमान -
- आचार्यश्री के आह्वान पर ग्रामीणों ने स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के संकल्प -
आचार्यश्री महाश्रमणजी

      03.04.2017 डुमरी, पटना (बिहार) (JTN) : पटना जंक्शन में चार दिवसीय और पटना सिटी में तीन दिवसीय कुल मिलाकर पटना में सात दिवसीय ऐतिहासिक प्रवास कर अहिंसा यात्रा अपने प्रणेता, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी और श्वेत सेना के साथ पटना से लगभग चैदह किलोमीटर का विहार कर डुमरी गांव स्थित मध्य विद्यालय के प्रांगण में पहुंची। अपने गांव में अहिंसा यात्रा के आगमन से उत्साहित ग्रामीणों ने आचार्यश्री का स्वागत किया। आचार्यश्री ने उपस्थित ग्रामीणों को संयम और तप का मार्ग दिखाया और उस पर चलकर अपने जीवन का कल्याण करने की प्रेरणा प्रदान की। विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री सुरेन्द्र प्रसाद ने ग्रामीणों व विद्यालय परिवार की ओर से आचार्यश्री का अभिनन्दन किया और अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। 
पटना में सात दिवसीय प्रवास के दौरान अनेक कीर्तिमान स्थापित किया। श्रद्धालुओं को धार्मिक, आध्यात्मिक प्रेरणा और पथदर्शन प्रदान कर सोमवार की सुबह आचार्यश्री पटना से अगले गंतव्य की ओर रवाना हुए। अपने आराध्य को विदाई देने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु भी चल पड़े। आचार्यश्री सबके ऊपर अपनी आशीष वृष्टि करते हुए गतिमान थे। बढ़ती गर्मी का प्रभाव लोगों के तन को भींगो रही थी। आचार्यश्री का तन भी पसीने से तर-बतर हो रही थी। इसके बावजूद भी समभावी आचार्यश्री निरंतर गतिमान थे। लगभग चैदह किलोमीटर की यात्रा कर आचार्यश्री अपनी श्वेत सेना के साथ डुमरी स्थित मध्य विद्यालय परिसर में पहुंचे। जहां उपस्थित ग्रामीणों संग विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री सुरेन्द्र प्रसाद ने आचार्यश्री का स्वागत किया। 
विद्यालय प्रांगण में उपस्थित ग्रामीण श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आदमी को अपनी आत्मा का दमन करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपनी आत्मा का दमन संयम और तप के माध्यम से कर सकता है। आदमी को अपनी आत्मा पर अनुशासन करने का प्रयास करना चाहिए। परानुशासन की आवश्यकता वहीं होती है, जहां आदमी का अपनी आत्मा पर अनुशासन नहीं होता। शरीर, वाणी, मन और इन्द्रियों को संयमित और नियंत्रित कर अपनी आत्मा को अनुशासित कर सकता है। आदमी कुछ समय के लिए अपने शरीर को स्थिर रखने का प्रयास करे। अति बोलने से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को संयमित और सोच-समझकर बोले तो वाणी अनुशासित हो सकती है। इसके लिए मौन का भी सहारा लिया जा सकता है। मन पर अनुशासन के लिए गलत कार्यों से बचाने का प्रयास करना चाहिए। अपनी इन्द्रियों को भी वश में रखने का प्रयास होना चाहिए। इन्द्रियों को वश करने वाला आदमी अपनी आत्मा को अनुशासित कर सकता है। आत्मानुशासन के माध्यम से आदमी अपने जीवन को अच्छा बना सकता है। आचार्यश्री ने ‘संयममय जीवन हो’ गीत का आंशिक संगान करते हुए लोगों को संयममय जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान की। 
अंत में आचार्यश्री के आह्वान उपस्थित ग्रामीणों ने अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार किया और आचार्यश्री के विशेष कृपा के पात्र बने। विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री सुरेन्द्र प्रसाद ने आचार्यश्री का अपने विद्यालय में स्वागत करते हुए कहा कि आचार्यश्री आपकी कृपा से हमारा विद्यालय और गांव दोनों पवित्र हो गया है। आपके के आगमन ने गांव में नई ऊर्जा का संचार कर दिया है। आचार्यश्री ने आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि विद्यालय के बच्चों में अच्छी पढ़ाई के साथ अच्छे संस्कार भी आएं। 








Post a Comment

0 Comments