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राग और द्वेष कर्म बंध का बीज: आचार्यश्री महाश्रमण

- शांतिदूत संग अहिंसा यात्रा के आगमन से दनियावां की धरती हुई पावन -- विद्यालय परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने मोक्ष प्राप्ति का बताया मार्ग -
आचार्यश्री महाश्रमणजी

04.04.2017 दनियावां, पटना (बिहार)ः हमारी आत्मा संसार में परिभ्रमण कर रही है। इसका कारण है कर्म। आत्मा कर्म से बंधी होने के कारण संसार में बार-बार जन्म लेती है और मृत्यु को प्राप्त होती है। राग और द्वेष कर्म बंध का बीज होता है। राग और द्वेष भाव के कारण आदमी पाप करता है और अपनी आत्मा को कर्मों से भारित करता है। कर्मों से बंधी आत्मा ही संसार में बार-बार जन्म लेती है और मृत्यु को प्राप्त होती है। जन्म-मृत्यु को दुःख कहा जाता है। पाप कर्मों का जिम्मेदार मोह होता है। मोह राजा तो राग और द्वेष उसके सेनापति हैं। मनुष्य कभी राग तो कभी द्वेष में चला जाता है। अनुकूल स्थिति में राग भाव में तो प्रतिकूल परिस्थिति में द्वेष भाव में चला जाता है। इसके कारण आत्मा कर्मों के बंधन में बंध जाती है और जन्म-मृत्यु रूपी दुःख को बार-बार प्राप्त होती है। आदमी राग-द्वेष मुक्ति की साधना करे तो मोक्ष मार्ग को प्राप्त कर सकता है। उक्त मोक्ष प्राप्ति का मार्ग जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने दनियावां स्थित राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय प्रांगण में मंगलवार को उपस्थित श्रद्धालुओं को बताया। 
जन कल्याण के लिए अहिंसा यात्रा लेकर निकले अखंड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी निरंतर पदयात्रा कर लोगों में आध्यात्मिकता का नव संचार कर रहे हैं। आचार्यश्री वर्तमान समय में बिहार राज्य के पटना जिले में यात्रायित हैं। जहां से गुजरते हैं लोग उन्हें ‘बड़े बाबा’ के नाम से संबोधित करते हैं और उनकी पदयात्रा के विषय में सुनकर प्रणत होते हैं और आशीर्वाद प्राप्त कर स्वयं को सौभाग्यशाली बनाते हैं। 
मंगलवार को आचार्यश्री अपनी कल्याणकारी यात्रा और धवल सेना के साथ डुमरी से दनियावां के लिए विहार किया। मार्ग में जगह-जगह निर्माण का कार्य चल रहा था, जिसके कारण रास्ता कठिन लग रहा था, किन्तु समताभावी आचार्यश्री निरंतर गतिमान रहे। आज हवाओं में ठंडक थी जो सूर्य की प्रखरता को महसूस नहीं होने दे रही थी। लगभग ग्यारह किलोमीटर की पदयात्रा कर आचार्यश्री दनियावां स्थित राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय प्रांगण पहुंचे। 
यहां उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मन ही बंधन और मोक्ष का कारण बनता है। विषयासक्त मन बंधन का तो विषयों से मुक्त मन मोक्ष का हेतु बन जाता है। आदमी राग-द्वेष से मुक्ति की साधना करे तो मोक्ष प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ सकता है और अपनी आत्मा का कल्याण कर सकता है। आदमी को कुछ समय साधना में लगाने का प्रयास करना चाहिए। साधना के माध्यम से आदमी के हृदय में प्रभु की मूरत वश जाए तो राग-द्वेष भीतर प्रवेश नहीं कर सकेगा। साधना के माध्यम से आदमी शांति को प्राप्त कर सकता है। आचार्यश्री ने कहा कि भगवान महावीर जैसे आदमी राग-द्वेष मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करे और अपनी आत्मा को मोक्ष के मार्ग पर ले जाने का प्रयास करे। 






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