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शांति का संदेश लेकर ‘शांतिनिकेतन’ पहुंचे शांतिदूत



वाइस चांसलर श्री स्वप्न कुमार दत्ता सहित अन्य प्रोफेसरों ने किया स्वागत -नाट्यघर में आयोजित हुआ मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में शांतिदूत ने प्रदान किया विश्व शांति का सूत्र - सांस्कृतिक विभाग के छात्रों ने सस्वर शांतिपाठ और मंगलाचरण का किया उच्चारण -आध्यात्मिक गुरु ने विश्वविद्यालय के गुरुओं की जिज्ञासाओं को किया शांत -वाइस चांसलर व जैन विश्वभारती मान्य विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार ने दी भावाभिव्यक्ति 

21.05.2017 शांतिनिकेतन, वीरभूम (पश्चिम बंगाल), JTN, जन-जन को शांति का संदेश देते लोगों के बीच ‘शांतिदूत’ के रूप में विख्यात प्रख्यात जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी शांति सेना और शांति के संदेशों के साथ पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में स्थापित और पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त ‘शान्ति-निकेतन’ पहुंचे तो ऐसा लगा मानों खुद इसकी स्थापना करने वाले गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ‘शान्ति-निकेतन’  की संभाल करने पहुंच गए हों। वहीं लगभग 60 वर्षों पूर्व आए तेरापंथ धर्मसंघ के नवमाधिशास्ता गणाधिपति आचार्य तुलसी के मस्तिष्क में राजस्थान में भी एक ऐसे विश्वविद्यालय की स्थापना करने का विचार उत्पन्न हुआ जिसकी निष्पत्ति आज जैन विश्वभारती मान्य विश्वविद्यालय के रूप में है। उस ‘शान्ति-निकेतन’ में लगभग 60 वर्ष बाद एकबार पुनः गणाधिपति गुरुदेव तुलसी के सुशिष्य का पदार्पण हुआ तो एक स्वर्णिम इतिहास की स्वयं ही रचना हो गई।
रविवार को बोलपुर टेक्नो इंडिया ग्रुप पब्लिक स्कूल के नित्य की भांति प्रातः की मंगल बेला में आचार्यश्री ने प्रस्थान किया। आज का विहार लगभग दो किलोमीटर का ही था किन्तु शांतिदूत के ‘शांति-निकेतन’ में पधारने का साक्षी बनने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा था। दो किलोमीटर का सड़क मार्ग गौण हो गया और दिखाई दे रहे तो केवल जन-जन ही जन। श्वेत सेना के साथ शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ‘शांति-निकेतन’ परिसर के समीप ही विश्व भारती विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर श्री स्वप्नकुमार दत्ता सहित अनेक प्रोफेसर और लोगों ने भावभीना स्वागत किया। आचार्यश्री परिसर स्थित रत्नकुटि में पधारे।
विश्वविद्यालय परिसर में बने नाट्यघर में विशाल परिसर में आयोजित कार्यक्रम के लिए आचार्यश्री जैसे ही पहुंचे तो विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक विभाग के छात्रों ने संगीतमय वंदना और शांतिपाठ का संगान कर आचार्यश्री का अभिनन्दन किया।
विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर श्री स्वप्नकुमार दत्ता, जैन विश्वभारती के पूर्व रजिस्ट्रार श्री जगतराम भट्टाचार्य ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति दी। वहीं अहिंसा यात्रा के प्रवक्ता मुनिकुमारश्रमणजी और मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी ने लोगों को अहिंसा यात्रा व आचार्यश्री के विषय में अवगति दी और लोगों को प्राप्त हुए इस सुअवसर का लाभ उठाने के लिए उत्प्रेरित किया।
शांतिदूत ने विशाल जनमेदिनी और प्राचार्यों को अपनी मंगलवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि सभी बुद्धों और तीर्थंकरों का आधार शांति है। आचार्यश्री ने विश्व शांति शब्द के अर्थों की व्याख्या करते हुए कहा कि विश्व का प्रसिद्ध अर्थ है-दुनिया, संसार। विश्व का दूसरा अर्थ है-समस्त, संपूर्ण। संसार में शांति आवश्यक है। एक देश का दूसरे देश के साथ मैत्री संबंध होना चाहिए। सीमा पर सैनिकों की तैनाती एक उपचार मात्र हो कभी उनका उपयोग न करना पड़े, ऐसी शांति स्थापित करने का प्रयास होना चाहिए। देशों का शक्ति सम्पन्न बनना एक बात, किन्तु वह किसी दूसरे देश का विनाश करने वाला न बने, ऐसा प्रयास होना चाहिए। सीमाओं पर शांति रहे, इसका प्रयास होना चाहिए। पूरा विश्व एक परिवार के रूप में देखने का प्रयास हो। यह मेरा और यह पराया छोटे विचार वालों का हो सकता है। विश्वशांति का आधार सूत्र है-पूरे विश्व के साथ मैत्री का भाव और संबंध रहे। सब सुखी ही, सबका कल्याण हो, लोगों में संपूर्ण शांति रहे।
आचार्यश्री ने ‘शान्ति-निकेतन’ परिसर और विश्व भारती विश्वविद्यालय में आगमन के बारे में आचार्यश्री ने लोगों को बताते हुए कहा कि यह स्थान शांतिनिकेतन ही नहीं, हर घर शांतिनिकेतन बन जाए, तो पूरे विश्व का कल्याण हो सकता है। गुरुदेव रविन्द्रनाथ सहित गुरुदेव तुलसी, महाप्रज्ञजी आदि तमाम मनिषियों ने लोगों को शांति का पाठ पढ़ाया है। शांति स्थापित करन के लिए आदमी को अपने आवेश को कम करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने लोभ को कम करने का प्रयास करना चाहिए। अपनी इच्छाओं का सीमांकन कर प्रकृति में शांति स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी की शांति में चिन्ता भी एक बाधक तत्व है। आदमी को चिंता नहीं चिंतन करने का प्रयास करना चाहिए और चिंता से बचने का प्रयास कर शांति में रहने का प्रयास करना चाहिए। गुस्सा, भय, लोभ और चिंता पर आदमी नियंत्रण कर ले तो विश्व शांति की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है।
मंगल प्रवचन के उपरान्त शांतिदूत के समक्ष विश्वविद्यालय के प्राचार्यों ने अपनी जिज्ञासाएं रखीं तो शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उनके जिज्ञासाओं का समाधान भी प्रदान किया। जिज्ञासा करने वालों के विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर श्री स्वप्नकुमार दत्ता, फिलोसॉफी की वरिष्ठ प्रोफेसर श्रीमती सबुज कलीसेन, श्री जगतराम भट्टाचार्य सहित अन्य प्राचार्यों ने भी अपनी जिज्ञासाएं रखीं और आचार्यश्री से समाधान पाया। अंत में कोलकाता चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति की ओर से श्री सुरेन्द्र दुगड़ ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया। अहिंसा यात्रा प्रबन्धन समिति की ओर से विश्वविद्यालय के पुस्तकालय के तुलसी ग्रंथ के 108 पुस्तकों का सेट, सहित तमाम साहित्य वाइस चांसलर श्री स्वप्नकुमार दत्ता को प्रदान की गईं। वहीं कोलकाता प्रवास व्यवस्था समिति की ओर से उन्हें स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। 

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