23.05.2017
बटग्राम, वर्धमान (पश्चिम बंगाल), JTN, जन-जन के मानस को पावन करने वाली अहिंसा यात्रा अपने प्रणेता के साथ दस दिनों तक पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की ज्योति जलाकर मंगलवार को पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले की सीमा में मंगल प्रवेश किया। इस तरह पश्चिम बंगाल की सीमा में 13 मई को प्रवेश के साथ ही अहिंसा यात्रा का विहरण भूमि बना वीरभूम मंगलवार को विदा ले गया तो वर्धमान जिले ने शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के चरणरज को पाकर पावन हो गया।
बोलपुर के श्रद्धालुओं को अपने दर्शन और आशीर्वाद से अभिसिंचन प्रदान कर आचार्यश्री आगे बढ़े तो कुछ किलोमीटर के बाद ‘अजय’ नामक नदी के पुल को अपने चरणरज से पावन किया। इसी नदी के एक तरह वीरभूम जिले ने आचार्यश्री की चरणधूलि लेकर विदाई ली तो नदी के दूसरे किनारे ने ज्योतिचरण की धूलि को माथे लगा उनका अपनी सीमा में स्वागत किया। लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री वर्धमान जिले के बटग्राम स्थित बटग्राम एम.एम. हाईस्कूल पहुंचे। आचार्यश्री के दर्शन को ग्रामीणों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी।
विद्यालय परिसर में ही बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित ग्रामीण श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने कामनाओं का त्याग कर जीवन को सुखी बनाने का मंत्र प्रदान करते हुए कहा कि आदमी अपने जीवन में कामनाओं को छोड़ दे तो दुःख अपने आप छूट जाएगा। जीवन में कभी दुःख तो कभी सुख आ सकता है। आदमी को जीवन में दुःख आने के मूल कारण के बारे में विचार करना चाहिए। काम की वृद्धि और आसक्ति आदमी के जीवन में दुःख का मूल कारण होता है। आदमी की कामनाएं जब पूरी नहीं होती हैं तो आदमी दुःखी होता है और कामनाओं की पूर्ति के भौतिक सुख थोड़ी देर के लिए प्राप्त होता है, किन्तु उपरान्त पुनः कामनाएं बढ़ जाती हैं और आदमी दुःखी हो सकता है। आदमी कामना और लोभ के कारण दुःख को प्राप्त हो जाता है। सारा दुःख कामना से जुड़ा हुआ है। कामनाओं का अंत वीतरागी व्यक्ति कर सकता है और अपने जीवन को सुखमय बना सकता है।
आचार्यश्री ने तीन प्रकार की कामनाओं का वर्णन करते हुए कहा कि आदमी जब किसी दूसरों को कष्ट पहुंचाने की कामना करे तो वह जघन्य कामना होती है। आदमी जब भौतिक सुखों की प्राप्ति की कामना मध्यम कामना होती है और जब आदमी साधना, मोक्ष आदि की प्राप्ति की कामना करता है तो वह उत्तम कामना होती है। आदमी को जघन्य कामना से बचने का प्रयास करना चाहिए। मध्यम कामना भी जीवन में हो सकती है, लेकिन आदमी को उत्तम कामना को अपने जीवन में लाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने प्रवचन के अंत में ग्रामीणों को अहिंसा यात्रा के विषय में अवगति दी और लोगों को इसके संकल्पों को स्वीकार करने को प्रेरित किया तो उपस्थित ग्रामीणों ने अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार किया। विद्यालय के शिक्षक श्री कामरूल जवान ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। मरोठी परिवार की महिलाओं ने गीत का संगान किया। श्रीमती कल्पना आंचलिया ने भी गीत का संगान कर आचार्यश्री के चरणों में अपने भावसुमन अर्पित किया।
बटग्राम, वर्धमान (पश्चिम बंगाल), JTN, जन-जन के मानस को पावन करने वाली अहिंसा यात्रा अपने प्रणेता के साथ दस दिनों तक पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की ज्योति जलाकर मंगलवार को पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले की सीमा में मंगल प्रवेश किया। इस तरह पश्चिम बंगाल की सीमा में 13 मई को प्रवेश के साथ ही अहिंसा यात्रा का विहरण भूमि बना वीरभूम मंगलवार को विदा ले गया तो वर्धमान जिले ने शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के चरणरज को पाकर पावन हो गया।
बोलपुर के श्रद्धालुओं को अपने दर्शन और आशीर्वाद से अभिसिंचन प्रदान कर आचार्यश्री आगे बढ़े तो कुछ किलोमीटर के बाद ‘अजय’ नामक नदी के पुल को अपने चरणरज से पावन किया। इसी नदी के एक तरह वीरभूम जिले ने आचार्यश्री की चरणधूलि लेकर विदाई ली तो नदी के दूसरे किनारे ने ज्योतिचरण की धूलि को माथे लगा उनका अपनी सीमा में स्वागत किया। लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री वर्धमान जिले के बटग्राम स्थित बटग्राम एम.एम. हाईस्कूल पहुंचे। आचार्यश्री के दर्शन को ग्रामीणों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी।
विद्यालय परिसर में ही बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित ग्रामीण श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने कामनाओं का त्याग कर जीवन को सुखी बनाने का मंत्र प्रदान करते हुए कहा कि आदमी अपने जीवन में कामनाओं को छोड़ दे तो दुःख अपने आप छूट जाएगा। जीवन में कभी दुःख तो कभी सुख आ सकता है। आदमी को जीवन में दुःख आने के मूल कारण के बारे में विचार करना चाहिए। काम की वृद्धि और आसक्ति आदमी के जीवन में दुःख का मूल कारण होता है। आदमी की कामनाएं जब पूरी नहीं होती हैं तो आदमी दुःखी होता है और कामनाओं की पूर्ति के भौतिक सुख थोड़ी देर के लिए प्राप्त होता है, किन्तु उपरान्त पुनः कामनाएं बढ़ जाती हैं और आदमी दुःखी हो सकता है। आदमी कामना और लोभ के कारण दुःख को प्राप्त हो जाता है। सारा दुःख कामना से जुड़ा हुआ है। कामनाओं का अंत वीतरागी व्यक्ति कर सकता है और अपने जीवन को सुखमय बना सकता है।
आचार्यश्री ने तीन प्रकार की कामनाओं का वर्णन करते हुए कहा कि आदमी जब किसी दूसरों को कष्ट पहुंचाने की कामना करे तो वह जघन्य कामना होती है। आदमी जब भौतिक सुखों की प्राप्ति की कामना मध्यम कामना होती है और जब आदमी साधना, मोक्ष आदि की प्राप्ति की कामना करता है तो वह उत्तम कामना होती है। आदमी को जघन्य कामना से बचने का प्रयास करना चाहिए। मध्यम कामना भी जीवन में हो सकती है, लेकिन आदमी को उत्तम कामना को अपने जीवन में लाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने प्रवचन के अंत में ग्रामीणों को अहिंसा यात्रा के विषय में अवगति दी और लोगों को इसके संकल्पों को स्वीकार करने को प्रेरित किया तो उपस्थित ग्रामीणों ने अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार किया। विद्यालय के शिक्षक श्री कामरूल जवान ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। मरोठी परिवार की महिलाओं ने गीत का संगान किया। श्रीमती कल्पना आंचलिया ने भी गीत का संगान कर आचार्यश्री के चरणों में अपने भावसुमन अर्पित किया।
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Om arham
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