25.05.2017 कैरापुर, वर्धमान (पश्चिम बंगाल)ः मानवता का संदेश देते जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा व धवल सेना के साथ पश्चिम बंगाल की धरा को अपने चरणरज से पावन कर रहे हैं।
गुरुवार को अपनी धवल सेना के साथ गुस्करा से सुबह की मंगल बेला में आचार्यश्री ने अगले गंतव्य की ओर प्रस्थान किया। आचार्यश्री के बढ़ते कदमों के साथ ही आकाश में बढ़ता सूर्य भी अपनी तेज किरणों से आतंकित करने लगा था, किन्तु समताधारी आचार्यश्री निरंतर गतिमान थे। इस भीषण गर्मी में भी आचार्यश्री ने लगभग पन्द्रह किलोमीटर का विहार कर कैरापुर पहुंचे। कैरापुर स्थित विद्यासागर विद्यापीठ में आचार्यश्री का प्रवास हुआ। विद्यालय परिसर में ही बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित लोगों को आचार्यश्री ने अपनी मंगलवाणी से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि कोई-कोई आदमी भौतिक सुख, काम सुख, इन्द्रिय सुख आदि प्राप्त कर यह सोचता है कि हाथ में आए इन सुखों को क्यों छोड़ा जाए, इसका पूर्ण उपयोग किया जाए। यह विचार भैतिकवादी सोच का हो सकता है। आदमी यह सोचे कि क्या इन भौतिक सुखों के उपभोग से शांति की प्राप्ति हो सकती है क्या? भौतिक सुखों के बाद भी आदमी तनावग्रसित हो सकता है। भौतिक सुखों का क्या भरोसा आज है और कल समाप्त हो जाए। इसलिए आदमी को भौतिकवादी विचारों से निकलकर खुद से पापों से बचाने और शुभ कर्मों में लगाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने साधु को सबसे सुखी बताते हुए कहा कि एक साधु भौतिक सुख-सुविधाओं का त्याग कर भी आनंद में होता है। साधु को राजा की संज्ञा देते हुए कहा कि साधु के लिए पूरी धरती पलंग, आकाश चंदोवा, हाथ तकिया, चंद्रमा उसके लिए दीपक के समान है। आदमी को भौतिक से बचने और स्वयं को वास्तविक सुख अर्थात मोक्ष की प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए। हालांकि परलोक के विषय में कुछ अनिश्चय की स्थिति हो सकती है, किन्तु परलोक है ही नहीं ऐसा भी कोई कहने वाला नहीं है। इसलिए आदमी को अपने आपको पापों से बचाने का प्रयास करना और शुभ कर्मों में लगाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त उपस्थित ग्रामीणों को अहिंसा यात्रा के विषय में अवगति प्रदान की और उन्हें अपने जीवन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति जैसे सूत्रों को अपनाकर अपने जीवन को धन्य बनाने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री के आह्वान पर उपस्थित ग्रामीणों ने आचार्यश्री से अहिंसा यात्रा के संकल्पत्रयी को स्वीकार किया और अपने जीवन को सफल बनाने की दिशा में आगे बढ़ाया। उपस्थित ग्रामीणों ने आचार्यश्री के चरणरज को अपने माथे पर लगाकर आशीर्वाद लिया।
गुरुवार को अपनी धवल सेना के साथ गुस्करा से सुबह की मंगल बेला में आचार्यश्री ने अगले गंतव्य की ओर प्रस्थान किया। आचार्यश्री के बढ़ते कदमों के साथ ही आकाश में बढ़ता सूर्य भी अपनी तेज किरणों से आतंकित करने लगा था, किन्तु समताधारी आचार्यश्री निरंतर गतिमान थे। इस भीषण गर्मी में भी आचार्यश्री ने लगभग पन्द्रह किलोमीटर का विहार कर कैरापुर पहुंचे। कैरापुर स्थित विद्यासागर विद्यापीठ में आचार्यश्री का प्रवास हुआ। विद्यालय परिसर में ही बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित लोगों को आचार्यश्री ने अपनी मंगलवाणी से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि कोई-कोई आदमी भौतिक सुख, काम सुख, इन्द्रिय सुख आदि प्राप्त कर यह सोचता है कि हाथ में आए इन सुखों को क्यों छोड़ा जाए, इसका पूर्ण उपयोग किया जाए। यह विचार भैतिकवादी सोच का हो सकता है। आदमी यह सोचे कि क्या इन भौतिक सुखों के उपभोग से शांति की प्राप्ति हो सकती है क्या? भौतिक सुखों के बाद भी आदमी तनावग्रसित हो सकता है। भौतिक सुखों का क्या भरोसा आज है और कल समाप्त हो जाए। इसलिए आदमी को भौतिकवादी विचारों से निकलकर खुद से पापों से बचाने और शुभ कर्मों में लगाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने साधु को सबसे सुखी बताते हुए कहा कि एक साधु भौतिक सुख-सुविधाओं का त्याग कर भी आनंद में होता है। साधु को राजा की संज्ञा देते हुए कहा कि साधु के लिए पूरी धरती पलंग, आकाश चंदोवा, हाथ तकिया, चंद्रमा उसके लिए दीपक के समान है। आदमी को भौतिक से बचने और स्वयं को वास्तविक सुख अर्थात मोक्ष की प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए। हालांकि परलोक के विषय में कुछ अनिश्चय की स्थिति हो सकती है, किन्तु परलोक है ही नहीं ऐसा भी कोई कहने वाला नहीं है। इसलिए आदमी को अपने आपको पापों से बचाने का प्रयास करना और शुभ कर्मों में लगाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त उपस्थित ग्रामीणों को अहिंसा यात्रा के विषय में अवगति प्रदान की और उन्हें अपने जीवन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति जैसे सूत्रों को अपनाकर अपने जीवन को धन्य बनाने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री के आह्वान पर उपस्थित ग्रामीणों ने आचार्यश्री से अहिंसा यात्रा के संकल्पत्रयी को स्वीकार किया और अपने जीवन को सफल बनाने की दिशा में आगे बढ़ाया। उपस्थित ग्रामीणों ने आचार्यश्री के चरणरज को अपने माथे पर लगाकर आशीर्वाद लिया।
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