28.05.2017 आझापुर, वर्धमान (पश्चिम बंगाल)ः पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में यात्रायित आचार्यश्री रविवार को सक्तिगढ़ के पार्थसारथी रेस्टूरेंट से प्रातः की मंगलबेला में विहार किया। आज आसमान बिल्कुल साफ था। इस कारण सूर्य अपनी संपूर्ण रश्मियों के साथ चमक रहा था। इस कारण धरती का तापमान समय के साथ बढ़ता जा रहा था। इसके साथ ही बढ़ती उमस भी आम लोगों काफी परेशान करने लगी थी, किन्तु समताधारी आचार्यश्री अपनी लक्ष्य की ओर अविरल गतिमान थे। वहीं कोलकाता के निकट हो जाने से हजारों श्रद्धालु भी आचार्यश्री की सन्निधि में पहुंच चुके थे और अपने आराध्य के साथ इस जनकल्याणकारी यात्रा में शामिल हो चुके थे। आम तौर पर तो आम आदमी ऐसे मौसम में अपने घर से निकलना नहीं चाहते वहीं, इन श्रद्धालुओं को गुरुकृपा का ऐसा बल मिला कि वे भी प्रतिकूल मौसम में अपने आराध्य के साथ विहार में शामिल हो गए। मानों उनके ऊपर गुरु की ऐसी छाया बन गई थी जो इस कठिन मौसम में भी छाया प्रदान कर रही थी। लगभग पन्द्रह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री वर्धमान जिले के आझापुर गांव स्थित आझापुर उच्च माध्यमिक विद्यालय पहुंचे।
विद्यालय परिसर में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को तब तक सेवाधर्म कर लेना चाहिए जब तक बुढ़ापा पीड़ित न करने लगे, इन्द्रियों का बल क्षीण न हो जाए और शरीर में व्याधियां न बढ़ जाएं। आचार्यश्री ने कहा कि सेवाधर्म केवल इच्छा से संभव नहीं हो सकता। सेवा के लिए भावना के साथ शारीरिक सामर्थ्य भी होना अनिवार्य होता है। इसलिए आदमी को शरीर के सक्षम रहते सेवाधर्म करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने कारण बताते हुए कहा कि आदमी जब बुढ़ा हो जाता है तो कान से कम सुनाई देने लगता है। आंखों से दिखाई कम देने लगता है। परिश्रम करने वाली भुजाओं का बल कम हो जाता है। बाल सफेद हो जाते हैं, दांत गिर जाते हैं और पैरों में दर्द होने लगता है तो भला इस अवस्था मंे सेवाधर्म कैसे संभव हो सकता है। किसी आदमी के शरीर में कोई रोग हो जाए या कोई अन्य व्याधि उत्पन्न हो जाए तो भी सेवा करना मुश्किल हो सकता है। आचार्यश्री ने शरीर को व्याधियों का घर बताते हुए कहा कि न जाने शरीर में कौन सी व्याधि आ जाए यह कोई नहीं जानता। इसलिए आदमी जब तक स्वस्थ है, शारीरिक रूप से सक्षम है, इन्द्रियों में शक्ति है आदमी को सेवाधर्म करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी जहां तक संभव हो सके अपने कार्यों को स्वयं करने का प्रयास और दूसरों की भी सहायता करने का प्रयास करे। सेवा से मेवा मिलता है। इसलिए आदमी शरीर के सक्षम रहते सेवाधर्म कर ले और अपने जीवन को सफल बनाने का प्रयास करे। अंत में आचार्यश्री के आह्वान पर उपस्थित ग्रामीणों ने अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार किया और उनका आजीवन अनुपालन करने की भावाना भी व्यक्त की।
विद्यालय परिसर में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को तब तक सेवाधर्म कर लेना चाहिए जब तक बुढ़ापा पीड़ित न करने लगे, इन्द्रियों का बल क्षीण न हो जाए और शरीर में व्याधियां न बढ़ जाएं। आचार्यश्री ने कहा कि सेवाधर्म केवल इच्छा से संभव नहीं हो सकता। सेवा के लिए भावना के साथ शारीरिक सामर्थ्य भी होना अनिवार्य होता है। इसलिए आदमी को शरीर के सक्षम रहते सेवाधर्म करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने कारण बताते हुए कहा कि आदमी जब बुढ़ा हो जाता है तो कान से कम सुनाई देने लगता है। आंखों से दिखाई कम देने लगता है। परिश्रम करने वाली भुजाओं का बल कम हो जाता है। बाल सफेद हो जाते हैं, दांत गिर जाते हैं और पैरों में दर्द होने लगता है तो भला इस अवस्था मंे सेवाधर्म कैसे संभव हो सकता है। किसी आदमी के शरीर में कोई रोग हो जाए या कोई अन्य व्याधि उत्पन्न हो जाए तो भी सेवा करना मुश्किल हो सकता है। आचार्यश्री ने शरीर को व्याधियों का घर बताते हुए कहा कि न जाने शरीर में कौन सी व्याधि आ जाए यह कोई नहीं जानता। इसलिए आदमी जब तक स्वस्थ है, शारीरिक रूप से सक्षम है, इन्द्रियों में शक्ति है आदमी को सेवाधर्म करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी जहां तक संभव हो सके अपने कार्यों को स्वयं करने का प्रयास और दूसरों की भी सहायता करने का प्रयास करे। सेवा से मेवा मिलता है। इसलिए आदमी शरीर के सक्षम रहते सेवाधर्म कर ले और अपने जीवन को सफल बनाने का प्रयास करे। अंत में आचार्यश्री के आह्वान पर उपस्थित ग्रामीणों ने अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार किया और उनका आजीवन अनुपालन करने की भावाना भी व्यक्त की।
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