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अनासक्ति की साधना से कल्याण का मार्ग प्रशस्त - आचार्य महाश्रमण

29.05.2017 हलारा, वर्धमान (पश्चिम बंगाल)ः पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में भगवान वर्धमान के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी अहिंसा यात्रा व धवल सेना के साथ निरंतर जन कल्याण के लिए वर्धमान हो रहे हैं। इसके साथ ही वर्धमान हो रहा है शांति का संदेश, वर्धमान हो रहा है सद्भावना का विचार, वर्धमान हो रहा है नैतिकता का पाठ और वर्धमान हो रहा है नशामुक्ति जीवन जीने के इच्छाशक्ति।
मानवता के कल्याण के लिए तीन महान संकल्पों के साथ शांतिदूत, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी श्वेत सेना के साथ सोमवार को अझापुर के अझापुर उच्च माध्यमिक विद्यालय से मंगल प्रस्थान किया। आज भी सुबह से ही तेज धूप और उमस ने अपना डेरा डाल रखा था तो साथ ही हवा भी बिल्कुल शांत थी। ऐसा महसूस हो रहा था मानों धूप, उमस और हवा मिलकर शांतिदूत के चरणों को थामने का प्रयास कर रहें हों, किन्तु समताधारी आचार्यप्रवर के मुखारविन्द पर इनका कोई प्रभाव नहीं दिखाई दे रहा था। मार्ग में दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं पर आचार्यश्री की आशीष वृष्टि होती जा रही थी और आचार्यश्री के दो कोमल कदम मानवता के कल्याण के लिए बढ़ते जा रहे थे। हालांकि आज कुछ दूरी के बाद मार्ग के किनारे लगे वृक्ष आपस में मिलकर पूरे सड़क मार्ग पर ऐसी छाया कर रखी थी जैसे शांतिदूत के अभिवादन में खड़े हों। लगभग दस किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री जमालपुर के हलारा गांव स्थित सेठिया कोल्ड स्टोरेज परिसर में पधारे। जहां प्रतिष्ठान के मुखिया श्री सोहनलाल सेठिया व परिवार के सभी सदस्यों ने अपने आराध्य देव का अपने प्रतिष्ठान में स्वागत-अभिनन्दन किया।
परिसर में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आदमी के भीतर राग है तो द्वेष का भी जन्म हो सकता है। कर्मों का बंध राग और द्वेष के कारण ही होता है। कर्मों के बंधन का मूल कारण है राग और द्वेष। संसार के सभी प्राणियों के जीवन में दुःख होता है। दुःख की उत्पत्ति का मूल कारण राग-द्वेष है। किसी वस्तु, सामग्री आदि में आसक्ति आदमी के दुःख का कारण बनती है। आदमी अपने पांच इन्द्रियों के द्वारा भोग कर सकता है। इसलिए आदमी को अपने जीवन में राग-द्वेष के भावों से बचने के लिए वीतरागता की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपनी इन्द्रियों संयमित करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने जीवन को संयमित बनाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी साधना के माध्यम से अपनी इन्द्रियों को संयमित कर सकता है और दुःख से मुक्त हो सकता है। आदमी को अनासक्ति की साधना कर कल्याण की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
प्रवचन के अंत में आचार्यश्री ने प्रतिष्ठान में कार्य करने वाले कर्मियों और आसपास के उपस्थित लोगों को आचार्यश्री ने अहिंसा यात्रा के विषय में अवगति प्रदान की और उन्हें अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान किया तो लोगों ने सहर्ष संकल्पत्रयी को स्वीकार किया। अपने प्रतिष्ठान में अपने आराध्य के आगमन से गदगद सेठिया परिवार के लोगों ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त किया। सर्वप्रथम श्री सोहनलाल सेठिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति प्रस्तुत की तो सेठिया परिवार की महिलाओं ने स्वागत गीत का संगान कर अपनी भावाभिव्यक्ति श्रीचरणों में अर्पित की। समणी सौम्यप्रज्ञाजी ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति दी। 

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