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आचरण धर्मयुक्त बना रहे - आचार्य श्री महाश्रमण

30.05.2017 दसघड़ा, हुगली (पश्चिम बंगाल) :  वर्धमान जिले को अपने चरणरज से पावन बनाकर और मानवीय मूल्यों के संदेशों का अभिसिंचन प्रदान कर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के वर्धमान जिले की सीमा को पार कर हुगली जिले की सीमा में मंगल पदार्पण किया। हुगली जिले की सीमा ने मानों शांतिदूत के चरणरज को पाकर इतरा उठी। आचार्यश्री हुगली जिले के दसघड़ा गांव स्थित दसघड़ा हाईस्कूल प्रांगण में पहुंचे। 
मंगलवार को सुबह महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने निर्धारित समय पर अपनी श्वेत सेना के मंगल प्रस्थान किया। आज सूर्योदय से पूर्व ही आसमान बादलों से छा गया था। इस कारण सूर्य अपनी किरणों से धरती को तप्त नहीं बना पाया। सूर्य के बादलों के ओट में छिप जाने के कारण और मंद-मंद बहती हवाओं ने मौसम को सुहावना बना दिया। हालांकि आज का विहारपथ काफी लंबा था, किन्तु ग्रामीण इलाके का यह विहारपथ मौसम की अनुकूलता के कारण सुखद बन गया था। आज के मार्ग के दोनों ओर स्थानीय लोगों द्वारा की जा रही सब्जियों की खेती से पूरी धरती पर एक अलग ही हरियाली छायी हुई थी, मानों वह भी महासंत के नजरों को सुख पहुंचाकर अपने आपको पुण्य का भागी बनाने का प्रयास कर रही थी। सर्पाकार घुमावदार मार्ग और उसके दोनों धरती पर छायी हरियाली लोगों को सहसा ही अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। मेहनती किसान सुबह-सुबह खेतों से सब्जियों को तोड़ बाजार में पहुंचाने में जुटे हुए थे। इन सभी के बीच गुजरती श्वेत सेना अलौकिक दृश्य उत्पन्न कर रही थी। लगभग पन्द्रह किलोमीटर का विहार परिसम्पन्न कर आचार्यश्री अपनी संपूर्ण धवल सेना के साथ दसघड़ा गांव स्थित दसघड़ा हाईस्कूल के प्रांगण में पहुंचे। 
विद्यालय परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने धर्मार्जित व्यवहार को अपने जीवन में जाने की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को अपना आचरण धर्मयुक्त बनाने का प्रयास करना चाहिए। जिस पथ से महापुरुष लोग जाते हैं, वह पथ आदमी के अनुकूल हो सकता है अथवा जिस पथ पर अधिक से अधिक लोग जाते हैं, वह पथ ही सही दिशा में ले जाने वाला बन जाता है। इसलिए आदमी को महापुरुषों द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए और अपने जीवन को सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के अंत में आचार्यश्री ने उपस्थित लोगों को अहिंसा यात्रा के विषय में अवगति प्रदान की और उन्हें अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को ग्रहण करवाया। 

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