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ज्ञान का सार आचरण - आचार्य श्री महाश्रमणजी

19.05.2017 अहमदपुर, वीरभूम (पश्चिम बंगाल)ः झारखंड से पश्चिम बंगाल की सीमा में प्रवेश करने के उपरान्त वीरभूम जिले के सैंथिया नगर में पहला त्रिदिवसीय प्रवास सुसम्पन्न कर अहिंसा यात्रा अपने प्रणेता, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के साथ शुक्रवार को अगले गंतव्य की ओर मंगल प्रस्थान किया। उमस भरी गर्मी और सूर्य की बढ़ती प्रखरता लोगों के तन को भींगो रही थी। इस भयंकर गर्मी और उमस के साथ खराब रास्ता में आग में घी का काम कर रहा था। इन सबके बावजूद समताधारी आचार्यश्री महाश्रमण के कदम बढ़ते रहे और लगभग पन्द्रह किलोमीटर का प्रलंब विहार कर अहमदपुर गांव स्थित आदर्श विद्यालय पहुंचे। जहां विद्यालय के प्रबन्धक श्री शिवनाथ बंधोपाध्याय सहित अन्य विद्यालय के सहयोगियों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया।
इससे पूर्व सैंथिया में तीन दिवसीय पावन प्रवास कर वहां के लोगों के मानस अध्यात्मिकता का संचार कर महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ अहमदपुर स्थित आदर्श विद्यालय में पधारे।
विद्यालय प्रांगण में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने ज्ञान, दया और आचरण का महत्त्व बताते हुए कहा कि जीवन में पहले ज्ञान और उसके बाद दया और आचार। दुनिया में ज्ञान का परम महत्त्व है। आदमी को यथासंभव ज्ञान की आराधना करने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में ज्ञान रूपी सूर्य के बिना अंधकारमय हो जाता है। इसलिए आदमी को निरंतर ज्ञान को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने पांच प्रकार के मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपरयुज्ञान और केवल ज्ञान का वर्णन करते हुए कहा कि इनमें तो केवल ज्ञान परम ज्ञान है। जो केवल ज्ञानी हो उसमें पूर्व के सभी ज्ञान अपने आप समाहित हो जाते हैं। दुनिया के प्रत्येक मानव के पास मतिज्ञान अथवा श्रुतज्ञान या मतिअज्ञान तथा श्रुतअज्ञान होता है। आदमी को अपने ज्ञान को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। किसी का ज्ञान विकसित तो किसी का अविकसित हो सकता है।
परिश्रम कर ज्ञान को अर्जित किया जा सकता है। आदमी अपने ज्ञान को पुस्तकों के अध्ययन से भी बढ़ा सकता है। आदमी ज्ञान के द्वारा किसी को मार्गदर्शन भी दे सकता है। आचार्यश्री ने ज्ञान को अपार बताते हुए कहा कि ज्ञान का कोई पार नहीं और आदमी के एक निश्चित आयुसीमा होती है। इसलिए आदमी को सारभूत ज्ञान ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए और जीवन को सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान के उपरान्त आदमी के जीवन में महत्त्वपूर्ण आचार है या दूसरे शब्दों में आचार को ज्ञान का सार कहा गया है। ज्ञान होने के उपरान्त वह ज्ञान आदमी के आचरण में उतर जाए तो वह ज्ञान सारभूत हो सकता है और ज्ञान की पुष्टता हो सकती है। आदमी को जीवन में ज्ञान और बुद्धि के विकास के साथ आचार का विकास करने का प्रयास करना चाहिए।
अंत में आचार्यश्री के आह्वान पर विद्यालय के प्रबंधक श्री शिवनाथ बंधोपाध्याय सहित अन्य ग्रामीणों ने अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्प स्वीकार किए। श्री बंधोपाध्याय ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति भी दी। अहिंसा यात्रा प्रबन्धन समिति की ओर से विद्यालय के उपयोगार्थ कुछ उपहार भी प्रदान किया गया। 

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