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भक्तिमय माहौल में आरम्भ हुआ ध्यान-साधना का महापर्व पर्युषण

- महापर्व का प्रथम दिवस खाद्य संयम दिवस के रूप में हुआ समायोजित -
- महातपस्वी ने श्रद्धालुओं को जीवन में खाद्य संयम रखने का दिया उपदेश -
- आचार्यश्री ने इस मौके पर आरम्भ की ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा -
- धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य के समाधिस्थल का आचार्यश्री ने किया नामकरण -

      19.08.2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल) (JTN) : जैन परंपरा का सबसे बड़ा महापर्व पर्युषण का शुभारम्भ शनिवार को कोलकाता के राजरहाट में निर्मित महाश्रमण विहार के अध्यात्म समवसरण में अध्यात्म जगत के पुरोधा, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता और जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में हुआ। महापर्व का प्रथम दिवस खाद्य संयम दिवस के रूप में समायोजित हुआ। 
कोलकाता में ऐतिहासिक चतुर्मास कर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में शनिवार को पर्युषण महापर्व का शुभारम्भ हुआ। इस महापर्व का प्रथम दिवस खाद्य संयम दिवस के रूप में समायोजित किया गया। अतः आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को अपने जीवन में खाद्य संयम रखने की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि दूध और दूध से उत्पन्न होने वाले पदार्थों यथा दही, घी और मक्खन को आचार्यश्री ने विकृति बताते हुए कहा कि आदमी ज्यादा आसक्ति भाव से इनका अत्यधिक प्रयोग करता है तो उसमें भावात्मक, मानसिक और शारीरिक विकृति उत्पन्न हो सकती है। मान लिया जाए किसी ने ज्यादा दूध का सेवन कर लिया तो उसे दस्त की शिकायत हो सकती है। इसी प्रकार दही, घी और मक्खन का अत्यधिक सेवन भी विकृति उत्पन्न करने वाला हो सकता है। आचार्यश्री ने बालमुनियों के माध्यम से सभी को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि भोजन को जल्दीबाजी में कभी नहीं करना चाहिए। भोजन करते समय न भोजन की प्रशंसा करनी चाहिए और न ही निंदा करनी चाहिए। आचार्यश्री ने साधु-साध्वियों के एक महीने में पांच दिन छह विगय के वर्जन के सिद्धांत का वर्णन करते हुए कहा कि यह सिद्धांत साधु-साध्वियों के साधना के विकास में सहायक हो सकता है। साधुओं को गोचरी के दौरान कभी श्रावकों पर गुस्सा नहीं करना चाहिए। 
आचार्यश्री ने खाने में संयम रखने की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि गृहस्थों को मासांहार से बचने का प्रयास करना चाहिए। रात्रि भोजन का त्याग सर्वथा न हो सके तो रात्रि दस बजे के बाद भोजन न करने का प्रयास करें। जमीकंद से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने जीवन में खाद्य संयम रखने का प्रयास करे तो वह भावात्मक, मानसिक और शारीरिक रूप से अपना अच्छा विकास कर सकता है। आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आज पर्युषण का पहला दिन है पूरे वर्ष में आध्यात्मिक साधना का यह विशेष पर्व है। इसमें सभी को अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने आज के से ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ का शुभारम्भ करते हुए उनके चुने गए 27 भवों में से एक नयसार के भव का भी वर्णन किया। 
आज के दिन तेरापंथ धर्मसंघ चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य के महाप्रयाण दिवस पर आचार्यश्री ने उनका स्मरण किया और उनके जयपुर में बने समाधिस्थल का ‘साधना का प्रज्ञापीठ’ के रूप में नामकरण किया तो गगनभेदी जयघोष से पूरा प्रवचन पंडाल गूंज उठा। उन्हें स्मरण करते हुए मुख्यमुनिश्री ने गीत का संगान किया। साध्वीवर्याजी ने चतुर्थ आचार्यश्री के जीवनवृत्त पर प्रकाश डाला। साध्वी गुप्तिप्रभाजी ने कविता के माध्यम से अपने आराध्य को अपनी भावांजलि अर्पित की। 

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