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कुलानुगार नहीं अतिजात पुत्र बनने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री ने ठाणं आगम में वर्णित चार प्रकार के पुत्रों का किया वर्णन

गुरु-शिष्य के रिश्ते को भी आचार्यश्री ने बताया पिता-पुत्र की तरह

तेरापंथ प्रबोध के संगान और व्याख्यान से भी श्रद्धालु हुए लाभान्वित

साध्वीवर्याजी ने किया गुरु महिमा का गुणगान



28 अगस्त 2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल) (JTN) : पर्युषण महापर्व की आराधना पूर्ण हो गई। संवत्सरी और क्षमापना जैसे पर्व भी अब एक साल के लिए पूर्ण हो चुके हैं, किन्तु अनवरत व अबाध रूप से कुछ चल रहा है तो वह है जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य, वर्तमान अनुशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण के श्रीमुख से निकलने वाला ज्ञान पुंज। एक ऐसा प्रकाश जो केवल जैन के लिए ही नहीं, अपितु समूचे मानव जाति का कल्याण कर रहा है। एक ऐसे प्रभावी प्रवचनकार जिनकी वाणी से प्रभावित होकर हर कौम मजहबी भेद-भाव को भूल उनकी वाणी को ध्यान से सुनती है, मनन करती है और अपने जीवन में उतार अपने जीवन को सफल बनाने में जुट जाती है। ऐसे महातपस्वी के श्रीमुख से निरंतर बहने वाली ज्ञानगंगा वर्तमान में हुगली नदी के किनारे बसे कोलकाता महानगर के राजरहाट क्षेत्र में निर्मित महाश्रमण विहार परिसर के ‘अध्यात्म समवसरण’ से बह रही है। इस पतित पावनी ज्ञानगंगा में श्रद्धालु डुबकी अपने जीवन को धन्य बना रहे हैं।
          सोमवार को अध्यात्म समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि हमारी सृष्टि में अनेक प्रकार के प्राणी हैं। उनमें से एक प्राणी है मानव। संतान उत्पति की शृंखला ही मानव जाति को आगे से आगे बढ़ा रही है। मानव जाति में विवाह का एक उद्देश्य सन्तान की उत्पत्ति का होता है। लोगों में पुत्र प्राति की इच्छा होती है, ताकि उनका वंशानुक्रम आगे से आगे बढ़ता रहे। ‘ठाणं’ आगम के चौथे स्थान में चार प्रकार के पुत्रों का वर्णन किया गया है-अतिजात, अनुजात, अवजात और कुलानुगार। आचार्यश्री ने चार प्रकार के पुत्रों की विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा कि अतिजात पुत्र अपने पिता से आगे निकल जाता है। वह अपने पिता से ज्ञान में, मंे बल में, शील, मर्यादा, अनुशासन, साधना और प्रतिष्ठा मंे आगे निकल जाता है, वह अतिजात पुत्र होता है जो अपने पिता से भी आगे निकल जाता है। दूसरे प्रकार का पुत्र अनुजात होता है। जो अपने पिता से न तो आगे निकलता है और न ही कम रहता है अर्थात् वह अपनी पैतृक संपदा को बनाए रखता है। उनके मान-प्रतिष्ठा को उनके समान ही सुरक्षित रखता है, वह अनुजात पुत्र होता है। तीसरे प्रकार के पुत्र को अवजात कहा जाता है जो अपने पिता से कम पढ़ने-लिखने वाला, उनसे कम प्रतिष्ठा पाने वाला पुत्र अवजात होता है। चौथे प्रकार का पुत्र कुल का सर्वनाश करने वाला होता है। कुल की गरिमा को गिराने वाला, सारे सुख-वैभव, प्रतिष्ठा को नष्ट करने वाला पुत्र कुलानुगार होता है। इस प्रकार आचार्यश्री ने चार प्रकार के पुत्र में सर्वप्रथम अतिजात पुत्र बनने का प्रयास करना चाहिए और अपने पिता से प्रतिष्ठा, यश, ज्ञान आदि में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। पिता का भी कर्त्तव्य होता है कि वह अपने पुत्र को आत्मनिर्भर बनाए, जो पिता ऐसा करता है वह कृत-कृत्य हो जाता है।

          आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्याजी ने गुरु की महिमा का गुणगान करते हुए लोगों को गुरु की उपासना करने की पावन प्रेरणा प्रदान की। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्षा श्रीमती कल्पना बैद ने वर्ष 2017 का श्राविका गौरव पुरस्कार श्रीमती प्रतिभा दुगड़, वर्ष 2016 का प्रतिभा पुरस्कार श्रीमती हंषा दसाणी, सुश्री यशिका तथा वर्ष 2017 के लिए डा. अंजुला विनाकिया और श्रीमती सूरजबाई बरड़िया को प्रदान करने की घोषणा की।









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