चंडीगढ, 26 सिंतबर: संयम को अणुव्रत की आत्मा बताते हुए मनीषी संत मुनिश्रीविनयकुमार आलोक ने कहा कि संयम से हटकर अणुव्रत को नहीं देखा जा सकता। व्यक्ति का संकल्प दृढ़ होने पर वह अणुव्रत को ग्रहण कर सकता है। राग मुक्ति जीवन जीने में आनंद है। व्यक्ति राग होने पर त्याग का अभ्यास करें। राग पर त्याग का, भोग पर योग का नियंत्रण रहना चाहिए। ज्ञान.दर्शन.चारित्र मोक्ष से जोडऩे वाली धर्म प्रवृत्तियां है। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक ने अणुव्रत उदबोधन सप्ताह का शुभारंभ करते हुए अणुव्रत भवन तुलसीसभागार में सैक्टर 24सी मे कहे।
मनीषीश्रीसंत ने आगे कहा इंसान आज भौतिकता के सुखों मे इतना उलझ गया है कि उसे अपने आपकी पहचान भी धूमिल कर दी है। जिससे हर जगह मानवता शर्मसार होती नजर आ रही है। राष्ट्र की समूचित समस्याओं का समाधान अणुव्रत है। अणुव्रत मानवता की महक है, चहक है जीवन को अनुतर दिशा प्रदान करने वाला व्यक्ति का लक्ष्य चरित्र और अध्यात्म होना चाहिए जबकि आज लक्ष्य आज पदार्थ पर टिका हुआ है। जब तक पदार्थ से लक्ष्य को नही हटाएंगे तब तक समस्याओ का समाधान न आज मिलेगा और न समय के बाद भी।
अणुव्रत की पृष्ठभूमि संयम के आधार पर टिकी है संयम अर्थात मानवता का उच्च स्तर पर पहुंचना। समाज की अनेकानेक समस्याआें का समाधान संयम है। धर्म का अर्थ है संयम, सात्विकता व पवित्रता है। अक्सर हर क्षेत्र मे इंसान आज बाते ज्यादा और काम कम कर रहा है व्यक्ति दूसरो को जो करने के लिए कहता है वह खुद करता नही व दूसरो को उपदेश देना शुरू कर देता है आज इंसान मे एक दूसरे के पर्दाफाश करने की होड से लगी हुई है जब व्यक्ति दूसरों की तरफ एक उंगुली करता है तो तीन उंगुलियां उसकी खुद की तरफ होती है।
मनीषीश्रीसंत ने कहा अणुव्रत आंदोलन धर्म की प्राणवत्ता का राज है-सुदृढ मर्यादाएं एवं गुरू का अनुशासन।
आगमों को सत्य की कसौटी पर कसकर ही मर्यादाओं का सूत्रपात किया था। अपनी सेवाभावना,समर्पण,विनम्रमता और संगठनों की सुदृता से पूरे विश्व को प्रतिबोध देता हुआ आत्मसााधकों के लिए साधना स्थल हैं,जहां पर निरंतर विकास का प्रतिक्षण प्राप्त होता है। यही कारण है वर्तमान वातावरण में भी तेरापंथ धर्मसंघ अनुशासन और मर्यादा से सुसज्जित,संयम की पराकाष्ठा के लिए एक रोल मॉडल के रूप में दुनिया के सामने प्रस्तुत है। अणुव्रत का मत है कि पहले खुद सुधरो फिर दूसरों को सुधारों। अगर अपने अंदर अवगुण भरे हुए है तो क्या हम दूसरो को अच्छी शिक्षाएं दे सकते है नही वह हमारे मुंह पर ना सही पर पीठ पीछे जरूर कहेगा कि यह खुद तो करता नही ओर हमे करने के लिए कहता है। इसलिए पहले अपने को सुधारों राष्ट्र समाज अपने आप ही सुधर जाएगा।
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