आदर्श कार्यकर्त्ता की अर्हता है आचार शुद्धि,अनुशासन, समर्पण एवं कर्तव्यनिष्ठा- साध्वी सोमलताजी
तेरापंथ भवन उधना में गुजरात स्तरीय कार्यकर्त्ता प्रशिक्षण शिविर में श्री किशनलालजी डागलिया, दिलीपजी सरावगी,घनश्याम जी सोनी का मार्गदर्शन
महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री सोमलताजी जी के सानिध्य में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्वाधान में तेरापंथी सभा उधना द्वारा गुजरात स्तरीय कार्यकर्त्ता प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें महासभा अध्यक्ष श्री किशनलालजी डागलिया, कोषाध्यक्ष श्री रमेश जी सुरतिया,मुख्य अतिथि सेंट्रल एक्सरसाइज एवं जी.एस.टी. के डिप्टी कमिश्नर श्री घनश्याम सोनी, मुख्य वक्ता श्री दिलीप सरावगी,मेवाड़ कॉन्फ्रेंस के अग्रणी श्री सवाईलाल जी पोकरना, उपासक श्रेणी के राष्ट्रीय संयोजक श्री डालमचंद जी नौलखा आदि ने उपस्थित रहकर मार्गदर्शन दिया। कार्यशाला में समग्र गुजरात से 25 सभाओं से लगभग 365 प्रतिनिधि संभागी बने। इस अवसर पर साध्वी श्री सोमलताजी ने कहा कि समाज के विकास में कार्यकर्त्ता की भूमिका बहुत अहम होती है। कार्य तो सभी कार्यकर्ता करते हैं किंतु सभी को 'आदर्श कार्यकर्त्ता' की उपमा नही दी जा सकती। कार्यकर्ता के निर्माण के लिए प्रशिक्षण आवश्यक है। तेरापंथ धर्म संघ मर्यादा एवं अनुशासन की बुनियाद पर अवस्थित है। कार्यकर्ता में सर्वप्रथम आवश्यकता है गहन आस्था की। आस्था के आंख एवं पाँख दोनों होने चाहिए। आज समाज और देश में धर्म के नाम पर जो अंधश्रद्धा और अंधविश्वास का वातावरण दिखाई दे रहा है वह भविष्य के लिए घातक है। आदर्श कार्यकर्ता की अर्हता है- आचारशुद्धि,अनुशासन,समर्पण व कर्तव्यनिष्ठा। आज का मनुष्य बाहर से से भर रहा है लेकिन भीतर से खाली होता जा रहा है । जहाँ ऐसा होता है वहाँ नया विकास व नया प्रकाश अवरुद्ध हो जाता है।साध्वी श्री जी ने महासभा अध्यक्ष श्री किशनलालजी डागलिया व उपासक श्रेणी संयोजक श्री डालमचंद जी नौलखा की सेवाओं की सराहना करते हुए तेरापंथी सभा उधना को भी अंतर्मन से आशीर्वाद प्रदान किये।
साध्वी श्री शकुंतला कुमारीजी ,संचितयशा जी,जागृतप्रभा जी एवं रक्षितयशा जी ने मंगलगीत का संगान किया एवं श्रद्धा विवेक के साथ कार्य करने की प्रेरणा दी। महासभा अध्यक्ष श्री किशनलालजी डागलिया ने कहा- तेरापंथ धर्मसंघ में गुरु की आराधना का सर्वाधिक महत्व है। वर्तमान युग में श्रद्धा और समर्पण के बीच तर्क - वितर्क का वायरस घुस गया है। जिसे दुर करने की जरूरत है। उन्होंने कार्यकर्ताओं को
1-आत्मविश्वास 2- आत्म नियंत्रण 3- आत्मानुशासन इन तीन बातों को निरंतर याद रखने का अनुरोध किया।
मुख्य वक्ता श्री दिलीप जी सरावगी ने कहा - कार्यकर्ता में कार्यशक्ती के साथ - साथ आध्यात्मिक के संस्कार जरूरी है।
मैं कौन हूं ? कहां से आया ? और मेरे जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है। इन बातों का चिंतन एवं स्मरण आवश्यक है। धर्म संघ हमारा प्राण और त्राण है। उसके लिए बलिदान देने के लिए तैयार रहें वहीं सच्चा कार्यकर्ता है।
मुख्य अतिथि श्री घनश्यामजी सोनी ने कहा - वर्तमान युग में लोग भौतिक संपदा के पीछे अंधी दौड़ लगा रहे हैं। राजनेता 75 वर्ष की अवस्था के बाद भी कुर्सी छोडना नहीं चाहते हैं। ऐसे वातावरण में जैन समाज एक नई दिशा निर्देशित कर रहा है। हमें समय के साथ परिवर्तन तो करना चाहिए लेकिन संस्कार रूपी जड़ों का सिंचन भी करते रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं और मेरा के स्थान पर हम और हमारा शब्द का प्रयोग करना चाहिए।
श्री सवाईलालजी पोखरणा ने विचार व्यक्त किए।
केन्द्रीय संयोजक श्री लक्ष्मीलालजी बाफणा ने अपने विचार व्यक्त किए।
तेरापंथी सभा उधना के अध्यक्ष श्री बसंतीलालजी नाहर ने आमंत्रित महानुभावों और समग्र गुजरात के संभागीयों का स्वागत किया। महासभा के कोषाध्यक्ष श्री रमेश जी सुतरिया ने महासभा के कार्यो की विस्तृत जानकारी दी।
तेरापंथी सभा उधना के संरक्षक श्री मोहनलालजी पोरवाड़ महासभा उधना प्रभारी श्री फूलचंदजी छत्रावत, श्री मनोज जी सिंघवी, श्री तनसुखजी चोरडिया, श्री अरूण जी चंडालिया, श्री मुकेश जी बावेल, श्री लादुलालजी नंगावत, श्रीमती सुनिता कुकडा,श्री सुशीलजी मेहता, श्री अशोक जी दुगड, आदि ने भावाभिव्यक्ति की।
मुख्य कार्यक्रम का कुशल संचालन उधना सभा उपाध्यक्ष श्री अर्जुनलालजी मेड़तवाल ने किया। महासभा कार्यसमिति सदस्य श्री अनिल जी चंडालिया, श्री सुरेश जी चपलोत, श्री मिश्रीमलजी नंगावत (उधना सभा के मंत्री) आदि ने विभिन्न सत्रों का संचालन किया। मंगलाचरण तेरापंथ महिला मंडल उधना ने किया। सभा गीत का संगान भजन मंडली, उधना ने किया।।
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