नवरात्रि का अनुष्ठान : तपस्या का अमृतपान
27.9.17। हिरियुर । श्रीमती शांतिदेवी सालेचा व श्रीमती चारुल सालेचा ने साध्वीश्री लब्धिश्रीजी से क्रमशः 15 व अठ्ठाई का प्रत्याख्यान किया । नवरात्रि अनुष्ठान का सातवां दिन जप के साथ-साथ तप का भी विशेष महत्व । दोनों का योग सोने में सुहागा । साध्वीश्रीजी ने अपने प्रेरक प्रवचन में कहा कि तप की शक्ति अप्रतिहत है । देवता भी तपस्वी के चरणों में नत है । तन व मन के विकारों को दूर करनेवाला तप एक अचूक औषधि है । तप के द्वारा एक ओर शारीरिक व्याधियां दूर होती है तो दूसरी ओर मानसिक शान्ति व समाधि प्राप्त होती है। तप अनमोल तत्त्व है । तप से हम कर्मों की विपुल निर्जरा कर सकते हैं । साध्वीश्रीजी ने आगे कहा कि हम तपस्या का अनुमोदन करते है। तप अनुमोदना तक ही सीमित न रहें । तपोयज्ञ में अपनी आहुति देकर हमारी झोली को भरते रहें,चूंकि हमारा मन भी प्रसन्न रहे। चातुर्मास में A to Z तप रंगरली छाई रहे। साध्वीश्रीजी ने उपस्थित धर्म परिवार तपस्या के क्षेत्र में नए-नए कीर्तिमान बनाने हेतु आह्वान किया ।


तप का अभिनंदन तपस्या द्वारा
देवराजजी - अठ्ठाई, शांतिदेवी ५, सुशीलजी, सतिश, कमलाबाई, सपनाजी, श्रीमती पारसमलजी आदि ने तेले की तपस्या के संकल्प के साथ तपस्विनी बहनों का साहित्य देकर सम्मान किया । कार्यक्रम का संयोजन श्री देवराजजी ने कुशलतापूर्वक किया ।
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