कांटाबांजी ने रचा नव इतिहास।
भारतीय संस्कृति में तप का बहुत महत्व है । तप आत्म प्रदीप है,अन्तर ज्योति है । जो आठ कर्मों को तपाता है वही श्रेष्ठ तप कहलाता है । सामूहिक पचरंगी तप से संघाती कर्मों की महान निर्जरा होती है । संवत्सरी के पश्चात आसोज सुदी में एक साथ चार पचरंगी तप का होना अपने आप में गौरव की बात है ।कांटाबांजी में पहली बार चार पचरंगी एक साथ वं 501 एकासन कर नव इतिहास का सृजन किया है । सहयोगी संत मुनि भरत कुमार जी ने कहा सचमुच मैं पचरंगी तप होना 25 x 4=100 लोग मन मिला तभी यह संभव हुआ है । तप की शक्ति-जगाती अध्यात्म की भक्ति । तपस्वी भाई गजानन्द एवं मयंक जैन ने 8 का तप कर शामिल हुए एवं उनका अभिनंदन कार्यक्रम हुआ । कार्यक्रम में ज्ञानशाला के विद्यार्थियों ने पचरंगी तप की अनुमोदना नमस्कार महामंत्र की थीम पर शानदार प्रस्तुति दी। महिला मंडल द्वारा रोचक नाटिका सबकुछ खाओ लेकिन मेरू माथा मत खाओ लघु नाटिका प्रस्तुत की। कुशल संचालन भाई अंकित जैन ने किया।
0 Comments
Leave your valuable comments about this here :